'स्वच्छ भारत मिशन' भी मूलतः पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा हुआ ही एक आयाम है

संपूर्ण ब्रहमांड में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ज्ञात गृह है, जहां पर्यावरण उपस्थित है और जिसके कारण जीवन उपस्थित है।

Written By :  Arjun Ram Meghwal
Published By :  Raghvendra Prasad Mishra
Update: 2021-06-04 10:07 GMT

पर्यावरण से संबंधित सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार–सोशल मीडिया)

Environment Day: संपूर्ण ब्रहमांड में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ज्ञात गृह है, जहां पर्यावरण उपस्थित है और जिसके कारण जीवन उपस्थित है। 5 जून को प्रतिवर्ष पर्यावरण संरक्षण के पवित्र ध्येय का स्मरण करने के उद्देश्य से विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। जब से मानव सभ्यता प्रारंभ हुई है, तब से लेकर आज तक पर्यावरण संरक्षण एक महत्वपूर्ण विषय रहा है।

भारतीय दर्शन में प्रकृति के साथ जीने की जीवन पद्धति को अपनाया गया है, इसीलिए भारतीय दर्शन प्रकृति के साथ संबध स्थापित करता है। अथर्ववेद में कहा गया है कि 'माता भूमिः, पुत्रोेहं पृथिव्याः' अर्थात यह धरा, यह भूमि मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूं।

पर्यावरण संरक्षण पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता जाए, इसके लिए पर्यावरण संरक्षण को धर्म से भी जोड़ा गया और ऐसी उद्घोषणा भी की 'कहते हैं सारे वेद पुराण, एक पेड़ बराबर सौ संतान।' मानव सभ्यता के विकास क्रम में जब इस जानकारी से साक्षात्कार हुआ कि पेड़ों से हमें ऑक्सीजन मिलती है एवं जो कार्बन डाई ऑक्साइड मनुष्य छोड़ता है, उसे पेड़ ग्रहण करते हैं, तो पेड़ और मनुष्य के मध्य तादात्म्य स्थापित हो गया।

भारतीय सभ्यता संस्कृति में प्रकृति और पर्यावरण को पूज्य मानने की परंपरा बहुत पुरानी है, जिसका उदाहरण हम सिंधु घाटी सभ्यता में मिले प्रकृति पूजा के प्रमाणों, वेदिक संस्कृति के प्रमाणों में देख सकते हैं। भारतीय जन जीवन में वृक्ष पूजन की परंपरा भी रही है। पीपल के वृक्ष पूजा एवं उसके नीचे बैठकर ज्ञान प्राप्ति करना एवं समाज जीवन की चर्चा करना पंरपरा का हिस्सा रहा है। भारतीय संस्कृति में विशेषकर उत्तरी भारत में एक पूनम को पीपल पूनम भी कहा जाता है। इसी प्रकार वैशाख पुर्णिमा को बुद्ध पुर्णिमा के नाम से जाना जाता है। कालान्तर कुछ ऐसा कालखण्ड भी आया जिसमें भारतवर्ष गुलाम हुआ। मनुष्य की श्रेष्ठ चीजों का भी पतन हुआ। भौतिक सुख-सुविधाओं के आकर्षण में प्रकृति का दोहन प्रारंभ हुआ और मनुष्य ने पेड़-पौधों का काटना प्रारंभ किया।

भौतिक सुख की आकांक्षा ने पूरे विश्व में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया। विकास की अंधी दौड़ में जंगल कम होते गए, कार्बन और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता गया। पृथ्वी के सामान्य तापमान में वृद्धि होने लगी। संपूर्ण विश्व में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या महसूस की जाने लगी। जिसके प्रारंभिक दुष्परिणाम दुनिया के देशों ने मौसम परिवर्तन, कहीं बाढ़, कहीं सूखा, ग्लेशियरों का पिघलना, समुंद्री जल स्तर का बढ़ना और जैव विविधता में कमी आदि रूपों में महसूस किया।

ऐसे समय हमें मानव सभ्यता के संरक्षण के लिए पहले पर्यावरण संरक्षण पर गंभीरता से ध्यान केन्द्रित करना होगा। हमें अपनी प्राचीन पर्यावरण संरक्षण की परंपराओं पर पुनः विचार करना होगा। कार्बन उत्सर्जन को कम करना होगा, व्यापक वनीकरण के प्रयास करने होंगे। पर्यावरण संरक्षण को अपनी नीतियों का प्रमुख हिस्सा बनाना होगा। भारत सरकार की वर्तमान नीतियां पर्यावरण संरक्ष्ण के लिए प्रतिबद्ध हैं। भारत प्रांरभ से ही पर्यावरण संरक्षण के वैश्विक उपायों, सम्मेलनों एवं समझौतों का हिस्सा रहा है। स्टोकहोम सम्मेलन से लेकर पेरिस समझौते तक भारत पूर्ण समर्पण के साथ इनके साथ खड़ा रहा है।

वर्ष 2015 में पेरिस समझौते में विश्व के 196 देशों ने लक्ष्य निर्धारित किया कि वैश्विक औसत तापमान को इस सदी के अंत तक औद्योगिकीकरण के पूर्व के समय के तापमान के स्तर से 2 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक नहीं होने देना है। यह लक्ष्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की मात्रा को सीमित करने पर आधारित है। भारत इस समझौते का महत्वपूर्ण अंग है। इसी के अनुसार भारत ने भी अपने लक्ष्य निर्धारित किए है। भारत ने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के तहत वर्ष 2030 तक अपनी उत्सर्जन तीव्रता को 2005 के मुकाबले 33-35 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा है।

भारत ने पौधारोपण और वन क्षेत्र में वृद्धि के माध्यम से वर्ष 2030 तक 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर कार्बन सिंक बनाने का भी वादा किया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रारंभ किया गया 'स्वच्छ भारत मिशन' भी मूलतः पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा हुआ ही एक आयाम है। प्रधानमंत्री जब लाल किले से सिंगल यूज प्लास्टिक के विरुद्ध अभियान की घोषणा करते हैं तो वस्तुतः वे पर्यावरण संरक्षण के महत्वपूर्ण पहलू को ही चिन्हित करते है।

पर्यावरण संरक्षण के ये प्रयास सरकार एवं जन-भागीदारी से ही फलीभूत होंगे। भारत का संविधान अनु. 21 के तहत जीवन जीने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। भारत के सर्वाेंच्च न्यायालय द्वारा अपने निर्णयों में जीवन जीने की स्वंतत्रता के तहत गरीमामयी जीवन की जीने की बात कहते हुए स्वच्छ पर्यावरण प्राप्त करने को भी मूल अधिकार के रूप में व्याख्यायित किया है। भारतीय संविधान के भाग-4 में नीति निर्देशक तत्वों के अन्तर्गत भी अनु. 48 (क) के अनुसार यह अपेक्षा की गई है कि राज्य पर्यावरण का संरक्षण और संर्वधन करें और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करें। जहां भारतीय संविधान अधिकारों की बात करता है एवं राज्य से पर्यावरण संरक्षण की अपेक्षा करता है, तो वहीं संविधान द्वारा नागरिकों के कर्तव्य भी स्पष्ट किए गए हैं।

नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्यों के तहत अनु. 51 (क) (7) में कहा गया है कि प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव आते है, की रक्षा करें और संवर्द्धन करें तथा प्राणी मात्र के लिए दया भाव रखें। इस प्रकार स्पष्ट है कि हम सरकार एवं जन-भागीदारी के समन्वित प्रयासों से पर्यावरण संरक्षण के निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। जब हम पर्यावरण संरक्षण की बात करते हैं तो मुझे मध्यकाल में भक्तियुग के कुछ संतों का स्मरण भी होता है, जिन्होंने प्रकृृति और पर्यावरण की रक्षा की बात कही और पेड़-पौधों के महत्व को समझाया और उनसे शिक्षा ग्रहण करने के लिए भी उपदेश दिए। सूरदास कहते हैं कि—

मन रे वृक्षन से मति ले, मन तू वृक्षन से मति ले।

काटे वाको क्रोध न करहीं, सिंचत न करहीं नेह।

धूप सहत अपने सिर ऊपर, और को छांह करेत।।

जो वाही को पथर चलावे, ताही को फल देत।

मैं इस अवसर पर गुरू जम्भेश्वर, संत जसनाथ, सुंदरलाल बहुगुणा और अमृता देवी बिश्नोई का भी विशेष स्मरण करना चाहूंगा। गुरु जम्भेश्वर जी विश्नोई समाज के आराध्य हैं एवं उन्होंने प्रकृति संरक्षण एवं प्राणिमात्र के प्रति दया भाव का संदेश दिया। संत जसनाथ ने वृक्षों के महत्व को रेखांकित करते हुए पौधारोपण को प्रोत्साहित किया। सुंदरलाल बहुगुणा के चिपकों आन्दोलन से हम सभी परिचित है कि किस प्रकार उन्होंने पेड़ों का संरक्षण किया। अमृता देवी के सर्वोत्तम बलिदान को कौन भूल सकता है, जिनके नेतृत्व में पेड़ों को कटने से बचाने के लिए 363 लोगों ने अपने प्राणों की आहूति दी। आज के इस विश्व पर्यावरण दिवस पर मैं इन सभी महान आत्माओं को अपना नमन निवेदित करता हूं।

प्रकृति के सब जीवों में मानव जीवन श्रेष्ठ है। विवेकशील होने के कारण मानव जीवन को यह श्रेष्ठता हासिल है। क्या हम श्रेष्ठता की श्रेणी में नहीं रहना चाहते हैं। अपने अनुभवों का विश्लेषण करना हमें श्रेष्ठ बनाता है। चिन्तन, मनन और मंथन की प्रक्रिया हमें श्रेष्ठ बनाती है। आइये हम स्वतः स्वप्रेरणा से प्रकृति को बचाने का प्रयास करें और हम सभी विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में यह प्रण लें कि हम सभी प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे। अधिक से अधिक पौधारोपण करेंगे एवं पेड़ नहीं कटने देंगे। सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग नहीं करेंगे और पर्यावरण संरक्षण से जुडे़ लक्ष्यों को प्राप्त करने में अपना योगदान देंगे।

(लेखक केंद्रीय राज्यमंत्री हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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