कुपोषण के खिलाफ जंग
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 30 अगस्त 2020 को प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा था कि राष्ट्र और पोषण बहुत ही निकटता से जुड़े हुए हैं।
टिकाऊ और समावेशी विकास के लिए पोषण एक महत्वपूर्ण शर्त होती है। पोषण मानव संसाधन को विकास की चुनौतियों का सामना करने के उपयुक्त बनाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 30 अगस्त 2020 को प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा था कि राष्ट्र और पोषण बहुत ही निकटता से जुड़े हुए हैं। उन्होने ‘‘यथा अन्न तथा मनम्’’ कहावत का उल्लेख करते हुए कहा था कि मानसिक और बौद्धिक विकास सीधे हमारे भोजन की गुणवत्ता से जुड़े है।
बच्चों को उचित पोषण देने के लिए मां को उचित पोषण प्राप्त करने की आवश्यकता
उन्होंने कहा कि भोजन और उचित पोषण बच्चों और छात्रो को उनकी अधिकतम क्षमता हासिल करने और उनकी ताकत का प्रर्दशन करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते है। उन्होंने जोर देकर कहा कि बच्चों को अच्छी तरह से पोषण देने के लिए मां को उचित पोषण प्राप्त करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पोषण का मतलब केवल आहार लेने भर से नही है, बल्कि शरीर को लवण, विटामिन आदि जैसे आवश्यक पोषक तत्व भी उपलब्ध कराना है।
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प्रधानमंत्री ने कहा कि एक कक्षा में जैसे क्लास मॉनिटर होता है, वैसे ही न्यूट्रिशन मॉनिटर भी होना चाहिए। इसी तरह रिपोर्ट कार्ड की तरह एक पोषण कार्ड भी जारी किया जाना चाहिए। उन्होने बताया कि पोषण माह के दौरान, एक भोजन और पोषण प्रश्नोत्तरी के साथ-साथ मेम प्रतियोगिता का आयोजन मायगांव पोर्टल पर किया जाएगा। उन्होंने श्रोताओं को इसमें भाग लेने के लिए कहा है।
बच्चों के लिए सबसे जरूरी मां का दूध
प्रधानमंत्री की ये बातें काफी महत्वपूर्ण हैं। देश मे व्याप्त कुपोषण की स्थिति को उन्होंने काफी गम्भीरता से लिया। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे की 2015-16 की रिपोर्ट मे कहा गया है कि भारत मे पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में 35 दशमलव 7 प्रतिशत बच्चे कम वजन के थे तथा 38 दशमलव 4 प्रतिशत बच्चे कुपोषित और 21 प्रतिशत गम्भीर रूप से कुपोषित थे।
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इनमें भी साढ़े सात प्रतिशत बच्चे अत्यंत गम्भीर रूप से कुपोषित थे। इसी सर्वे रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ 41 दशमलव 6 प्रतिशत बच्चों को जन्म लेने के एक घण्टे के भीतर स्तनपान कराया गया था। स्तनपान बच्चों के पोषण और उनमें प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने के लिए रामबांण माना गया है। 54 दशमलव 9 प्रतिशत बच्चों को जन्म से 6 माह तक मां का दूध मिला था। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार बच्चे को जन्म से एक घण्टे के भीतर मां का दूध पिला देना चाहिए तथा 6 महीने तक उन्हे सिर्फ मां के दूध पर ही रखा जाना चाहिए।
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यहां तक की पानी देने की भी आवश्यकता नही रहती। 6 महीने के बाद बच्चों को पूरक आहार दिया जाना चाहिए जो बहुत आवश्यक है। लेकिन इसी सर्वे रिपोर्ट के अनुसार जो अब तक की अंतिम रिपोर्ट है, 42 दशमलव 7 प्रतिशत बच्चों के बाद ही 6 महीने से पूरक आहार दिया गया। इसी तरह 6 महीने से लेकर 59 महीने तक के बच्चों के इस राष्ट्रीय सर्वे में पाया गया कि 58 दशमलव प्रतिशत बच्चे रक्ताल्पता यानी अनेमिया से ग्रस्त थे।
पीएम मोदी ने की राष्ट्रीय पोषण अभियान की शुरूआत
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बहुत ही व्यापक सोच वाले नेता रहे हैं। कुपोषण की स्थिति को उन्होने निकट से देखा और इसे जड़ से समाप्त करने के लिए 8 मार्च 2018 को राजस्थान के झुंझन से राष्ट्रीय पोषण अभियान की शुरूआत की। यह एक व्यापक अभियान है। बुनियादी स्तर पर प्रसूता महिलाओं, गर्भास्थ शिशुओं, नवजातों और बच्चों को स्वास्थ्य सुविधाएं, टीके तथा पोषण उपलब्ध कराना इस अभियान के दायरे में आता है।
केन्द्र सरकार ने राज्य सरकारों की मदद से इस महा अभियान को शुरू किया है। प्रधानमंत्री का मानना है कि 2022 तक इसके लक्ष्यों को प्राप्त कर लिया जाना चाहिए। सितम्बर महीने को पोषण माह के रूप में मनाया जाना शुरू हुआ। हांलाकि यह अभियान वर्ष पर्यन्त पूरे जोर शोर से जमीनी स्तर पर चलाया गया। अभियान के तहत प्रथम वर्ष में देश के 315 जिलों, द्वितीय वर्ष में 235 जिले और तीसरे वर्ष में बाकी सभी बचे जिले लिए जायेंगे।
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महिला और बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार इस अभियान का नोडल मंत्रालय है। इसमे कई अन्य मंत्रालय भी जुड़े है। तथा लक्ष्यों की समय से प्राप्त करने के लिए कार्य कर रहे है। तीन चरणों मे चलाए जाने वाले इस अभियान के तहत कुपोषण में 2 प्रतिशत, रक्ताल्पता में 3 प्रतिशत तथा कम वजन के शिशु जन्म मे 2 प्रतिशत की कमी लाना है। यह प्रतिवर्ष का लक्ष्य है। कुपोषण को 2020 तक 38 दशमलव 4 प्रतिशत से घटा कर 25 प्रतिशत तक लाना है।
प्रधानमंत्री मोदी इस ओर दे रहे ध्यान
प्रधानमंत्री ने इसे जन जागरूकता के साथ भी जोड़ा। 30 अगस्त 2020 को ‘‘मन की बात’’ कार्यक्रम के जरिये उन्होंने कहा था कि जन आन्दोलन इस अभियान को आगे ले जा रहा है। उन्होने कहा कि बच्चों में पोषण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रतियोगिताएं आयोजित कराने के लिए स्कूलों को इस जन आंदोलन से जोड़ा गया। मीडिया ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
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सूचना और प्रसारण की विभिन्न इकाइयों यथा पत्र सूचना कार्यालय, दूरदर्शन, आकाशवाणी और आउटरीच ब्यूरों ने विभिन्न तरीके से पोषण अभियान के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया। जन्म से पहले 1000 दिन काफी महत्वपूर्ण होते है और बच्चों और माताओं को इस दौरान विशेष रूप से पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। यह बात मीडिया के जरिए लोगो तक पहुंचायी गयी।
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पोषण अभियान की सफलता में आशा बहुओं , ए एन एम दी दी तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्मियों की भूमिका काफी सराहनीय रही है। प्रधानमंत्री की मंशा के अनुरूप इन्होने घर-घर जाकर लोगो को जागरूक किया तथा सेवा पहुंचायी । कुशल नेतृत्व और सभी की भागीदारी से यह महाअभियान आज इस पड़ाव तक आ गया है। उम्मीद है कि वर्ष 2022 तक अभियान के लक्षयों को भी हासिल कर लिया जायगा।