जी-7: भारत की चतुराई

जी-7 यानी सात राष्ट्रों के समूह का जो सम्मेलन अभी ब्रिटेन में हुआ, उसमें भारत, दक्षिण अफ्रीका, द. कोरिया और आस्ट्रेलिया को भी अतिथि के रुप में बुलाया गया था

Written By :  Dr. Ved Pratap Vaidik
Published By :  Ashiki
Update:2021-06-15 11:22 IST
G-7 (फोटो-सोशल मीडिया )

जी-7 यानी सात राष्ट्रों के समूह का जो सम्मेलन अभी ब्रिटेन में हुआ, उसमें भारत, दक्षिण अफ्रीका, द. कोरिया और आस्ट्रेलिया को भी अतिथि के रुप में बुलाया गया था। द. कोरिया को इस समूह में न गिनें तो दस-राष्ट्रों के इस समूह ने अनेक अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर सहमति प्रकट की। इस सम्मेलन के संयुक्त वक्तव्य और नेताओं के भाषणों में सबसे ज्यादा जोर इस बात पर दिया गया कि यह समूह दुनिया में लोकतंत्र का सबसे प्रबल पक्षधर है।

भारत को भी इसमें इसीलिए आमंत्रित किया गया कि वह सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस तथ्य पर गर्व प्रकट किया लेकिन असलियत क्या है ? यह ठीक है कि इन सभी देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था है। तानाशाही कहीं नहीं है। बहुपार्टी व्यवस्था है। वोट के दम पर सरकारें वहां उलटती-पलटती रहती हैं लेकिन ये राष्ट्र अपने आप को विश्व लोकतंत्र का ध्वजवाहक कहें, यह तर्क-संगत नहीं लगता। पहली बात तो यह कि ये सात राष्ट्र कौनसे हैं ? ये हैं— अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, कनाडा और जापान ! इनमें से ज्यादातर राष्ट्रों ने एशिया, अफ्रीका और लातीनी अमेरिका में तानाशाहियों को प्रोत्साहित किया है। आज भी गैर-लोकतांत्रिक देशों से इनकी गहरी सांठ-गांठ है। इन्हें अपने राष्ट्रहितों की सुरक्षा से मतलब है। उन राष्ट्रों में कैसी शासन-पद्धति है, इससे उन्हें कुछ लेना-देना नहीं है। जब ये अपने आपको लोकतांत्रिक समूह कहते हैं तो ये अपनी उंगली चीन, रुस, ईरान और क्यूबा की तरफ उठाते हैं, क्योंकि ये ही देश आज इनके प्रतिद्वंदी हैं। यह एक प्रकार से ढका हुआ शीतयुद्ध ही है। यह ठीक है कि फ्रांस के राष्ट्रपति इमेन्युल मेक्रों ने फ्रांस को गुटमुक्त बताया है लेकिन जी-7 का यह सम्मेलन चीन-विरोधी जमावड़ा बनकर ही उभरा है।

हालांकि इस सम्मेलन में जलवायु-सुधार के लिए 100 बिलियन डाॅलर खर्च करने, कोविड वेक्सीन को सर्वसुलभ बनाने, बहुराष्ट्रीय कंपनियों से 15 प्रतिशत टैक्स वसूलने आदि के मुद्दों पर भी प्रस्ताव पारित हुए हैं, लेकिन नेताओं के भाषणों पर यदि आप बारीकी से गौर करें तो उनके चाकुओं की तेज धार चीन पर ही चली है। उन्होंने चीन के उइगरों, हांगकांग, ताइवान और कोविड-फैलाव के मामलों पर इतना ज्यादा जोर दिया है कि मानो यह सम्मेलन चीन-विरोध के लिए ही बुलाया गया था लेकिन भारतीय विदेश मंत्रालय के अफसरों ने संयम दिखाया। उन्होंने मोदी के भाषण में एक पंक्ति भी ऐसी नहीं लिखी, जिससे यह ध्वनित होता हो कि भारत इस सम्मेलन में किसी देश की टांग खींचने के लिए शामिल हुआ है। मोदी ने अपने तीनों मंचों के भाषणों में पर्यावरण-रक्षा के लिए रचनात्मक सुझाव पेश किए और विश्व के असमर्थ राष्ट्रों को कोरोना-रोधी टीके दिलवाने की वकालत की। भारत न तो पहले किसी सैन्य-गुट में शामिल हुआ था और न ही अब वह किसी राजनीतिक गुट में शामिल होने की भूल करेगा।

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)

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