गणेश शंकर विद्यार्थी: कुछ याद उन्हें भी कर लो...
25 मार्च, 1931 को क्रांतिकारी पत्रकार दिवंगत गणेश शंकर विद्यार्थी की हत्या साम्प्रदायिक उन्मादियों द्वारा कर दी गई थी।
शैलेन्द्र दुबे (Shailendra Dubey)
आज ही के दिन 25 मार्च, 1931 को प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रांतिकारी पत्रकार दिवंगत गणेश शंकर विद्यार्थी की हत्या साम्प्रदायिक उन्मादियों द्वारा कर दी गई थी। सांप्रदायिकता के विरुद्ध लड़ने वाले एक जुझारू पत्रकार एवं स्वाधीनता आंदोलन के अग्रणी नेता की सांप्रदायिक उन्मादियों द्वारा की गई दुखद हत्या भगत सिंह को दी गई फांसी के तीसरे दिन ही हुई थी।
दिवंगत गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने अनेक कठिनाइयों और अंग्रेजो के उत्पीड़न, अत्याचार, बार—बार जेल भेजे जाने के बावजूद भी पत्रकारिता की अलख जगाए रखी। उन्होंने तत्कालीन अधिनायकवादी ब्रिटिश सत्ता के आगे कभी समझौता या समर्पण नहीं किया। निर्भीक पत्रकारिता के साथ ही भूमिगत क्रान्तिकारियों के लेख, विचार छद्म नाम से "प्रताप" में प्रकाशित कर क्रान्ति की मशाल जलाई। भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद के लेख भी प्रताप में छद्म नाम से प्रकाशित होते थे। महाराणा प्रताप के जीवन और चरित्र से प्रेरित होकर उन्होंने "प्रताप" नामक दैनिक समाचार पत्र निकाला जो पूर्व में दैनिक न होकर मासिक पत्रिका के रूप में निकाला गया था।
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वे बाल गंगाधर तिलक एवं महात्मा गांधी को अपना राजनीतिक गुरु मानते हुए अपने जीवन के अंतिम समय तक स्वतंत्रता आंदोलन को वैचारिक दिशा और दृढ़ता प्रदान की। उन्होंने अपने समय की पत्रकारिता को क्रांतिकारी जनोन्मुखी और उद्देश बोध युक्त बनाया। राज सत्ता उनका दमन करने में सफल नहीं हो पाई और उनको खरीदने के बारे में तो अंग्रेज़ी हुकूमत सोच भी नहीं सकती थी। उनके अनेक शिष्यों ने बाद में आजाद भारत में भी सार्थक पत्रकारिता को प्रेरित और प्रोत्साहित किया, जो गिरते गिरते आज गर्त की तलहटी तक पहुच गई है।
वर्तमान पत्रकारिता के दौर में शायद ही कोई पत्रकार दिवंगत गणेश शंकर विद्यार्थी को अपना आदर्श मानने को तैयार हो। यदि 5 प्रतिशत पत्रकार भी उनके आदर्शों के पर चलने के लिए निष्ठावान हो जाए तो निश्चय ही आज की पत्रकारिता की दिशा और दशा दोनों जनोन्मुख हो सकती है। भाषाई पत्रकारिता के उच्च मानदंड उन्होंने स्थापित किये। दिवंगत गणेश शंकर विद्यार्थी को उनके शहीदी दिवस पर शत शत नमन हार्दिक श्रद्धांजलि।
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