Motherhood: जननी ही मारक हो गई तो तारणहार कौन बनेगा?
Goa Murder Case: पुरुष आज भी महिलाओं को सहकर्मी तो समझता है पर महिला सहकर्मी समझता है। कुछ महिलाओं को मिली आजादी और मुखरता ने भी महिलाओं के व्यवहार को पुरुषों की भांति बना दिया है और उस आक्रामकता को वे पुरुष प्रतिस्पर्धातमकता की नकल करने के लिए कर बैठती हैं।
Motherhood: पिछले दिनों आप सभी ने एक खबर अवश्य पढ़ी होगी। गोवा के एक होटल में अपने 4 साल के बेटे की कथित हत्या के केस में बेंगलुरू स्थित स्टार्टअप दि माइंडफुल आई लैब की सीईओ सुचाना सेठ को पकड़ा गया। जिस समय सुचाना सेठ को पकड़ा गया वह अपने बेटे के शव को बैग में भरकर कैब द्वारा भागने की कोशिश कर रही थी। इंडोनेशिया में रहने वाले पति के साथ तनावपूर्ण संबंधों के कारण उनके बीच तलाक की कार्यवाही चल रही है। हालांकि हत्या के मकसद का अभी तक पता नहीं चल सका है। लेकिन बताया जाता है कि बेटा उसे अपने पति के जैसा ही लगता था । इसलिए सुचाना सेठ ने उसकी हत्या की। बहरहाल कारण जो भी रहे होंगे पुलिस की पूछताछ में जल्दी ही जरूर सामने आ जाएंगे। ऐसा नहीं है कि सुचाना सेठ पढ़ी-लिखी नहीं थी, किसी तरह से वैल सैटल्ड नहीं थी। वर्ष 2021 में जारी 100 काबिल महिलाओं में से एक हावर्ड में रिसर्च फेलो रही सुचाना ने प्लाज्मा फिजिक्स में मास्टर्स और संस्कृत में पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा लिया हुआ है। इस तरह के वाकए, घटनाएं आजकल गाहे-बगाहे पढ़ने को मिल ही जाती हैं, जिनमें महिलाएं परोक्ष-अपरोक्ष रूप से हत्या में, मारपीट में शामिल होती हैं।
इस तरह की घटनाओं को पढ़कर एक ही सवाल मन में उठता है कि आखिर क्या आज की महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक आक्रामक हो चली हैं ? क्या इस बात पर फिर से सोचा जाना चाहिए कि आक्रामकता एक सामाजिक प्रवृत्ति है या जैविक। यूं तो आक्रामकता को लिंग के आधार पर हम किसी के प्रति कम या ज्यादा नहीं कह सकते हैं क्योंकि लिंग आधारित चर्चा हमेशा ही संवेदनशील होती है। स्वाभवतः और प्राकृतिक तौर पर महिलाओं को हमेशा पुरुषों की तुलना में नरम, दयालु, धैर्यशाली स्वभाव का माना जाता है। भारतीय महिलाओं में तो इस तरह के गुणों के बिना महिला को समाज में कोई जगह ही नहीं मिलती रही है। हमारे यहां सभी तरह के त्योहारों को भी कुछ इसी तरह से बनाया गया है कि महिलाओं को अपनी रक्षा, सुरक्षा, जीवन यापन और उससे जुड़ी तमाम खुशियों के लिए अपने पति, पुत्र और भाई की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करनी होती है। तो क्या अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं?
क्या महिलाएं भी पुरुषों की तरह सक्रिय रूप से आक्रामक हो रही हैं या वे परिस्थिति वश कम या अधिक आक्रामक होती हैं? आक्रामकता कभी-कभी आत्मरक्षा के लिए भी होती है। कभी आक्रामकता शारीरिक होती है तो कभी मौखिक तो कभी गैस लाइटिंग सहित। महिलाएं आजकल साइबर आक्रामक भी होती जा रही हैं। आखिर क्या कारण है कि महिलाएं विशेषकर किशोर लड़कियां अधिक आक्रामक होती जा रही हैं? परिवारों का टूटना, माता-पिता के बीच अलगाव, माता -पिता का अकारण हस्तक्षेप, परिवार में भेदभाव, हिंसक शब्दों का प्रयोग, महिलाओं को ज्यादा दबा कर रखना, अपनी ही मां के साथ दुर्व्यवहार होते देखना आदि ऐसे कारण होते हैं जो किशोर होती लड़कियों ने देखे होते हैं। ये बातें उनके दिमाग में घर कर जाती हैं। कुछ को यह बातें दब्बू या डरपोक बना देती है़ तो कुछ में वह प्रतिशोध की, हिंसा की भावना उकसा देती हैं। साथ ही साथ अब समय बदलता जा रहा है जिसमें लिंग भूमिका की बदलती अपेक्षाओं के कारण लड़कियों में आक्रामक व्यवहार करने या हमला करने की संभावनाएं अधिक बलवती हो गई हैं। वे अब अपने कैरियर को लेकर अधिक चेष्टावान हो गई हैं। कुछ महिलाओं को मिली आजादी और मुखरता ने भी महिलाओं के व्यवहार को पुरुषों की भांति बना दिया है। और उस आक्रामकता को वे पुरुष प्रतिस्पर्धातमकता की नकल करने के लिए कर बैठती हैं। इसी कारण महिला अपराधियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।
एक कारण यह भी होता है महिलाओं के आक्रामक होने का कि महिलाएं आगे बढ़ रही हैं ,पढ़ रही हैं, आधुनिक विचारों को भी अपना रही हैं। पर पुरुष क्या वह मानसिक तौर पर आगे बढ़ रहा है? वह आज भी महिलाओं को सहकर्मी तो समझता है पर महिला सहकर्मी समझता है। उसकी दृष्टि में वह आज भी लिंग आधारित सहकर्मी है, उसने देखने का नजरिया आज भी नहीं बदला है। पुराने दिनों की बात है जब कुछ महिलाएं विशेष कर निम्न मध्यम वर्गीय महिलाएं कहीं भी जहां इकट्ठी हो जाती थीं, वहां कुछ देर में लड़ाई- झगड़ा, तू-तू , मैं-मैं की आवाज आनी शुरू हो जाती थीं। यह तू- तू, मै-मैं अब जब महिलाएं ऑफिस में, समूहों में काम कर रही हैं तब कार्यस्थली पर दिखाई देने लगी है। उनके बीच में ईर्ष्या की भावना अधिक बलवती हो चली है। एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में वे मौखिक आक्रामक होती जा रही हैं।
फिलहाल आक्रामकता लिंग आधारित विषय था, आज भी है। लेकिन यह सोचना होगा कि महिलाओं में बढ़ती आक्रामकता के वास्तविक कारण क्या हैं? इसे कैसे रोका जाए या नियंत्रित किया जाए। स्त्री द्वेष को महसूस करें, वास्तविक दुनिया में महिला आक्रामकता को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखने की आवश्यकता है क्योंकि अगर जननी ही मारक हो गई तो तारणहार कौन बनेगा।
(लेखिका पूर्वोत्तर के अग्रणी हिंदी समाचार पत्र 'दैनिक पूर्वोदय' में छः वर्षों से नियमित रूप से साप्ताहिक स्तंभ लेखन कार्य। विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों और पुस्तकों में प्रेरक साहित्य लेखन, विशेष रूप से स्त्री विमर्श विषयों पर स्वतंत्र लेखन कार्य। काव्य रचना, साक्षात्कार, अनुवाद, समीक्षा आदि विधाओं में लेखन। दूरदर्शन गुवाहाटी, नार्थ ईस्ट लाइव आदि चैनलों एवं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के कार्यक्रमों में सक्रिय उपस्थिति। ईमेल: anshusarda11@gmail.com)