Guru Nanak Jayanti 2022: भारत की दिव्य विभूति-महान संत गुरु नानक देव जी

Guru Nanak Jayanti 2022: महान सिख संत व गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ई में रावी नदी के किनारे स्थित राय भोई की तलवंडी में हुआ था जो ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है।

Written By :  Mrityunjay Dixit
Update:2022-11-08 08:07 IST

Guru Nanak Dev Ji। (Social Media)

Guru Nanak Jayanti 2022: महान सिख संत व गुरु नानक देव जी (Guru Nanak Dev Ji) का जन्म 1469 ई में रावी नदी के किनारे स्थित राय भोई की तलवंडी में हुआ था जो ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है और भारत विभाजन में पाकिस्तान के भाग में चला गया । इनके पिता मेहता कालू गांव के पटवारी थे और माता का नाम तृप्ता देवी था। उनकी एक बहन भी थी जिसका नाम नानकी था । बचपन से ही नानक में प्रखर बुद्धि के लक्षण और सासांरिक चीजों के प्रति उदासीनता दिखाई देती थी । पढ़ाई- लिखाई में इनका मन कभी नहीं लगा। सात वर्ष की आयु में गांव के स्कूल में जब अध्यापक पंडित गोपालदास ने पाठ का आरंभ अक्षरमाला से किया लेकिन अध्यापक उस समय दंग रह गये जब नानक ने हर एक अक्षर का अर्थ लिख दिया। गुरु नानक के द्वारा दिया गया यह पहला दैविक संदेश था।

बालक नानक के साथ होने लगी कई चमत्कारिक घटनाएं

कुछ समय बाद बालक नानक ने विद्यालय जाना ही छोड़ दिया। अध्यापक स्वयं उनको घर छोड़ने आये। बालक नानक के साथ कई चमत्कारिक घटनाएं घटित होने लगीं जिससे गांव के लोग इन्हें दिव्य शक्ति मानने लगे। बचपन से ही इनके प्रति श्रद्धा रखने वाले लोगों में उनकी बहन नानकी गांव के शासक प्रमुख थे। कहा जाता है कि गुरु नानक का विवाह 14 से 18 वर्ष के बीच गुरदासपुर जिले के बटाला के निवासी भाई मिला की पुत्री सुलखनी के साथ हुआ। उनकी पत्नी ने दो पुत्रों को जन्म दिय। लेकिन गुरु पारिवारिक मामलों में पड़ने वाले व्यक्ति नहीं थे। उनके पिता को भी जल्द ही समझ में आ गया कि विवाह के बाद भी गुरु अपने आध्यात्मिक लक्ष्य से पथभ्रष्ट नहीं हुए थे। वे शीघ्र ही अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर अपने चार शिष्यों मरदाना,लहना, नाला और रामदास को लेकर यात्रा के लिए निकल पड़े़।

गुरुनानक देव ने संसार के दुखों को घृणा ,झूठ और छल - कपट से परे

गुरुनानक देव ने संसार के दुखों को घृणा ,झूठ और छल - कपट से परे होकर देखा। इसलिए वे इस धरती पर मानवता के नवीनीकरण के लिए निकल पड़े। वे सच्चाई की मशाल लिए, अलौकिक स्नेह , मानवता की शांति और प्रसन्नता के लिए चल पड़े। वे उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम चारों तरफ गये और हिंदू ,मुसलमान, बौद्धों, जैनियों, सूफियों, योगियों और सिद्धों कें विभिन्न केंद्रों का भ्रमण किया। उन्होंने अपने मुसलमान सहयोगी मर्दाना जो कि एक भाई था के साथ पैदल यात्रा की। उनकी यात्राओं को पंजाबी में उदासियां कहा जाता है। इन यात्राओं में आठ वर्ष बिताने के बाद घर वापस लौटे।

गुरुनानक एक प्रकार से सर्वेश्वर वादी थे। रूढ़ियों और कुप्रथा के तीखे व प्रबल विरोधी थे। उनके दर्शन में वैराग्य के साथ साथ साथ तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक स्थितियों पर भी विचार दिए गए हैं है।

संत साहित्य में नानक ने नारी को दिया है उच्च स्थान

संत साहित्य में नानक ने नारी को उच्च स्थान दिया है। इनके उपदेश का सार यही होता था कि ईश्वर एक है। हिंदू, मुसलमान दोनों पर ही इनके उपदेशों का प्रभाव पड़ता था। कुछ लोगों ने ईर्ष्या वश उनकी शिकायत तत्कालीन शासक इब्राहीम लोदी से कर दी जिसके कारण कई दिनों तक कैद में भी रहे। कुछ समय बाद जब पानीपत की लड़ाई में इब्राहीम लोदी बाबर के साथ लड़ाई में पराजित हुआ तब कहीं जाकर गुरुनानक कैद से मुक्त हो पाये। जीवन के अंतिम दिनों में गुरु नानक देव की ख्याति बढ़ती चली गयी तथा विचारों में भी परिवर्तन हुआ। उन्होनें करतारपुर नामक एक नगर को बसाया था।

''केवल अद्वितीय परमात्मा की ही पूजा होनी चाहिए''

अपने दैवीय वचनों से उन्होंने उपदेश दिया कि केवल अद्वितीय परमात्मा की ही पूजा होनी चाहिये। कोई भी धर्म जो अपने मूल्यों की रक्षा नहीं करता वह अपने निम्न स्तर के विकास को दर्शाता है और आने वाले समय में अपना अस्तित्व खो देता है । उनके संदेषका मुख्य तत्व इस प्रकार था - ईश्वर एक है, ईश्वर ही प्रेम है , वह मंदिर में है, मस्जिद में है और चारदीवारी के बाहर भी वह विद्यमान है।

ईश्वर की दृष्टि में सारे मनुष्य समान

ईश्वर की दृष्टि में सारे मनुष्य समान हैं । वे सब एक ही प्रकार जन्म लेते हैं और एक ही प्रकार अंत काल को भी प्राप्त होते हैं। ईश्वर भक्ति प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। जिसमें जाति- पंथ ,रंगभेद की कोई भावना नहीं है। 40वें वर्ष में ही उन्हें सतगुरु के रूप में मान्यता मिल गयी। उनके अनुयायी सिख कहलाये। उनके उपदेशों के संकलन को जपुजी साहिब कहा जाता है। प्रसिद्ध गुरू ग्रंथ साहिब में भी उनके उपदेश संदेश हैं।सभी सिख उन्हें पूज्य मानते हैं और भक्ति भाव से उनकी पूजा करते हैं।

वे पवित्रता की मूर्ति थे उन्होंने पवित्रता की शिक्षा दी: कवि ननिहाल सिंह

कवि ननिहाल सिंह ने लिखा है कि, "वे पवित्रता की मूर्ति थे उन्होंने पवित्रता की शिक्षा दी। वे प्रेम की मूर्ति थे उन्होंने प्रेम की शिक्षा दी। वे नम्रता की मूर्ति थे, नम्रता की शिक्षा दी। वे शांति और न्याय के दूत थे । समानता और शुद्धता के अवतार थे। प्रेम और भक्ति का उन्होंने उपदेश दिया। गुरु नानक जी ने संदेश दिया कि वह सर्वश्रेष्ठ ईश्वर सब का परमेश्वर है।"

गुरु नानक जी ने समाज को महिलाओं का सम्मान करने की दिये शिक्षा व उपदेश

गुरु नानक जी के दर्शन, उनकी शिक्षाओं और ब्रह्मांड, आकाशगंगा और इन विषयों पर उनकी गहरी अंतर्दृष्टि के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। 500 साल पहले आकाशगंगा की जानकारी लाखों चन्द्रमाओं सूर्य और ग्रहों से घिरी पृथ्वी के उनके मित्र ने उस समय के लगभग सभी विद्वानों को अचंभित किया था। गुरु नानक जी ने समाज को महिलाओं का सम्मान करने की शिक्षा व उपदेश दिये। गुरु नानक जी में साहस और पारदर्शिता के साथ महिलाओं को पुरूषों से श्रेष्ठ बताया। संत गुरु नानक मानव रूप में एक ईश्वरीय आत्मा थे।

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