Hardayal Library History: दिल्ली में कब तक उपेक्षा होगी, शहीद हरदयाल लाइब्रेरी की!

Hardayal Library History: अंग्रेजों के पढ़ने के शौक के चलते टाउन हॉल में छोटी सी लाइब्रेरी इंस्टीट्यूट शुरू हुई, जो 1911 में यह मौजूदा भवन में स्थानांतरित हो गई। दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के 1919 में नाम से पहचाना जाने लगा।

Written By :  K Vikram Rao
Update:2023-11-23 18:33 IST

Hardayal Municipal Library History 

Hardayal Municipal Library History: हर बुद्धिकर्मी को क्लेश और पीड़ा होगी दिल्ली के पुरातनतम पुस्तकालय हरदयाल म्यूनिसिपल पब्लिक लाइब्रेरी की दुर्दशा के बाबत जानकर। राजधानी के इतिहास का मूक गवाह यह संस्थान दिल्ली महानगरपालिका की अक्षमता और संवेदनहीनता का शिकार है। यह हेरिटेज संस्था है। कर्मचारी बिना वेतन के काम कर रहे हैं। बिजली कट गई है। रोशनदान के नीचे खड़े होकर लोग पढ़ते हैं। वाशरूम दो माह से साफ नहीं किया गया। पीने का पानी नहीं मिलता। लाइब्रेरी के फोन नं. 011-2396-3172 पर जवाब मिला : “उपयोग में नहीं है।”

दुर्लभ किताबों का संग्रह

सर्वाधिक खेदजनक बात यह कि यहां सुरक्षा का अभाव है। हालांकि मेयर इसके अध्यक्ष हैं। यहां की पौने दो लाख पुस्तकों में आठ हजार तो दुर्लभ पांडुलिपियां हैं। अकबर के नवरत्न अबुल फजल (इब्न मुबारक) द्वारा लिखित आईने अकबरी और अकबरनामा है। इनमें मुगलकालीन समाज तथा सभ्यता का बेहतरीन वर्णन मिलता है। अबुल फजल का ही फारसी में महाभारत भी है, जिसमें आकृतियां सुनहरी हैं। सूफी संत ख्वाजा हसन निजामी का फारसी लिपि में लिखा कुरान है। महान ज्योतिष-ग्रंथ भृगु संहिता हैं, जिससे कुंडली तैयार होती है। यहां ब्रिटिश लेखक सर वाल्टर रेले द्वारा 1607 में लिखी : “हिस्ट्री ऑफ द वर्ल्ड (1607) की मूल प्रतियां हैं। इसमें मेसोपोटामिया पर रोम की फतह से क्रमबद्ध इतिहास लिखा गया है। वाल्टर रेले का लंदन में स्टुअर्ट बादशाह जेम्स प्रथम ने सर कलम करा दिया था। रेले को ब्रिटेन ट्यूडर वंश की अविवाहिता महारानी एलिजाबेथ प्रथम का आशिक बताया जाता है। अन्य महत्वपूर्ण पुस्तकों में हैं : 1705 की वोयेज अराउंड द वर्ल्ड (जॉन फ्रैंकिस जेनेली कोरिरि),1828 की तजकीरा अल वकयात(चाल्र्स स्टेवर्ड),1794 की ट्रेवल्स इन इंडिया(विलियम होजेज), 1854 में लिखी गई रिगवेद संहिता (एचएच विल्सन), 1881 में सत्यार्थ प्रकाश(स्वामी दयानंद सरस्वती), 1928 में लिखी गई कुरान ए मजिद और औरंगजेब की मूल रचना की अनुवादित रचना आयते ऑफ कुरान प्रमुख हैं। सवाल है कि यह सब अनमोल कृतियां कब तक बची रहेंगी ? सभी बेशकीमती धरोहर हैं।

काठियावाड भारत का हिस्सा है साबित किया यहीं के दस्तावेज ने

आधुनिक भारत का एक ताजा तरीन किस्सा इस लाइब्रेरी से जुड़ा है। बात है देश के विभाजन के दौर की। मोहम्मद अली जिन्ना अपनी मातृभूमि कहकर सागरतटीय काठियावाड़ (पश्चिमी गुजरात) को अपने इस्लामी राष्ट्र में शामिल करने पर अड़े थे। जूनागढ़ के नवाब की हरकतों से उन्हें बल मिला था। तब इसी हरदयाल लाइब्रेरी में उपलब्ध नक्शे, दस्तावेज और किताबों के आधार पर पाकिस्तान को मानना पड़ा कि बापू की जन्मस्थली काठियावाड़ गुजरात का भूभाग है। भारतीय है।

पिछले दशक का किस्सा है। दिल्ली मेट्रो के लिए पुराने इलाके में खुदाई हो रही थी। तब (6 जुलाई 2012) चंद मध्यकालीन ढांचे दिखे। मंदिर था या मस्जिद ? इस पर अलग-अलग दावे लगे। इस हरदयाल लाइब्रेरी में रखे मुगलकालीन किताबों से पता चला कि बादशाह शाहजहां ने उस स्थान पर 1650 में अकबराबादी मस्जिद बनवाई थी। उसी के अवशेष मिले थे। समाधान तुरंत हुआ। वर्ना इसमे भी बाबरी मस्जिद जैसा बवाल उठ खड़ा होता। शाहजहां की कई बेगमों में खास थीं अकबराबादी जिसके नाम पर यह महल था। इसे 1857 में अंग्रेजों ने ध्वस्त कर दिया था। ध्वस्त मस्जिद के मलबे को बिक्री के लिए रखा गया था। किसी तरह सैयद अहमद खान ने मलबे को खरीदा और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के निर्माण में इसका इस्तेमाल किया। यह नेताजी सुभाष पार्क के समीप है।

इससे जुड़ी घटना भी है। यूं तो भारतीय इतिहास में तक्षशिला, नालंदा और विश्व में बगदाद, इस्तांबुल, एलेक्जेंड्रिया आदि आक्रामकों द्वारा ध्वस्त किए जाते रहे। पर दिल्ली का यह डेढ़ सौ वर्ष पुराना पुस्तकालय प्रशासनिक कोताही का खामियाजा भुगत रहा है, जब से इसकी नींव 1864 में पड़ी थी।

ऐसे बदला स्वरूप

अंग्रेजों के पढ़ने के शौक के चलते टाउन हॉल में छोटी सी लाइब्रेरी इंस्टीट्यूट शुरू हुई, जो 1911 में यह मौजूदा भवन में स्थानांतरित हो गई। दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के 1919 में नाम से पहचाना जाने लगा। इसे पहले हार्डिग लाइब्रेरी के नाम से भी पुकारते थे। फिर हरदयाल लाइब्रेरी के नाम से जाना जाता है। इस पुस्तकालय का नाम महान राष्ट्रभक्त और क्रांतिकारी लाला हरदयाल के नाम पर रखने का महत्व है। लाला हरदयाल भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के उन अग्रणी क्रान्तिकारियों में थे जिन्होंने विदेश में रहने वाले भारतीयों को देश की आजादी की लडाई में योगदान के लिये प्रेरित व प्रोत्साहित किया।

इस उपेक्षित लाइब्रेरी भवन का रुचिकर इतिहास जानकर वेदना और ज्यादा होती है। दो सदी बीते चांदनी चौक को इस भवन और 1866 में सवा लाख में निर्मित कर यूरोपियन क्लब बनाया गया था। मलका विक्टोरिया की प्रतिमा भी लगाई गई थी। यहीं पर दिल्ली कॉलेज और लाइब्रेरी भी बनी थी। फिर मलका विक्टोरिया की मूर्ति हटाकर स्वामी श्रद्धानंद की मूर्ति लगी थी। इसका नाम मूलतः लॉरेंस इंस्टिट्यूट था। पुस्तकालय 1902 में बना। इसी स्थल पर दिसंबर 1912 में हाथी पर सवार वायसराय हार्डिंग पर बम फेंका गया था। वे बच गये थे। बम कांड में स्वतंत्रता सेनानी मास्टर अमीरचंद, भाई बालमुकुंद, मास्टर अवध बिहारी और बसंत कुमार विश्वास को फांसी दे दी गई। ये स्वतंत्रता सेनानी हरदयाल के साथी थे। अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद 1970 में हार्डिंग लाइब्रेरी का फिर नामकरण हुआ। स्वतंत्रता सेनानी हरदयाल का नाम दिया गया।

राष्ट्रीय धरोहर बचाने और विरासत के संरक्षण में हर समय सरकारें जुटी रहती हैं। मगर दिल्ली में नहीं। वर्ना यह लाला हरदयाल पब्लिक लाइब्रेरी पर प्रशासनिक अनुकंपा कब की हो चुकी होती। अब क्या महापौर, दिल्ली के उपराज्यपाल और केंद्रीय गृहमंत्री को राष्ट्र के प्रति उनके कर्तव्य का बोध भी कराना पड़ेगा ?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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