Hate Speech: बोली का जवाब गोली से क्यों ?

Hate Speech: भारत में सात कानून पहले से ऐसे बने हैं, जो नफरती भाषण और लेखन को दंडित करते हैं ।

Written By :  Dr. Ved Pratap Vaidik
Update:2022-10-12 10:18 IST

Supreme Court (photo: social media )

Hate Speech: भारत के सर्वोच्च न्यायालय में नफरती भाषणों के खिलाफ कई याचिकाओं पर आजकल बहस चल रही है। उन याचिकाओं में मांग की गई है कि मज़हबी लोग, नेताओं और टीवी पर बहसियों के बीच जो लोग घृणा फैलानेवाले जुमले बोलते और लिखते हैं, उनके खिलाफ सरकार सख्त कानून बनाए और उन्हें सख्त सज़ा और जुर्माने के लिए भी मजबूर करे।

असलियत यह है कि भारत में सात कानून पहले से ऐसे बने हैं, जो नफरती भाषण और लेखन को दंडित करते हैं लेकिन नया सख्त कानून बनाने के पहले असली सवाल यह है कि आप नफरत फैलानेवाले भाषण या लेखन को नापेंगे किस मापदंड पर! आप कैसे तय करेंगे कि फलां व्यक्ति ने जो कुछ लिखा या बोला है, उससे नफरत फैल सकती है या नहीं? किसी के वैसा करने पर कोई दंगा हो जाए, हत्याएं हो जाएं, जुलूस निकल जाएं, आगजनी भड़क जाए या हड़ताल हो जाए तो क्या तभी उसकी उस हरकत को नफरती माना जाएगा? यह मापदंड बहुत नाजुक है और उलझनभरा है।

हमारी अदालतें मामूली मामले तय करने में बरसों खपा देती हैं तो ऐसे उलझे हुए मामले वह तुरंत कैसे तय करेगी? यदि कोई किसी जाति या मजहब या व्यक्ति या विचार के विरुद्ध कोई-बहुत जहरीली बात कह दे और उस पर कोई दंगा न हो तो अदालत और सरकार का रवैया क्या होगा? ऐसे सख्त कानून का दुष्परिणाम यह भी हो सकता है कि कई मुद्दों पर खुली बहस ही बंद हो जाए। किसी नेता, पार्टी, विचारधारा, धर्मग्रंथ या देवी-देवताओं की स्वस्थ और तर्कसंगत आलोचना का भी लोप हो जाए। यदि ऐसा हुआ तो यह नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन तो होगा ही, देश में पाखंड, अंधविश्वास और धूर्त्तता की भी अति हो जाएगी। ऐसा होने पर महर्षि दयानंद, डा आंबेडकर, फ्रेडरिक नीट्जे और बट्रेंड रसेल जैसे सैकड़ों विद्वानों के ग्रंथों पर प्रतिबंध लगाना होगा। इसीलिए भारत में हजारों वर्षों से शास्त्रार्थ की खुली परंपरा चलती रही है, जिसका अभाव हम यूरोप और अरब जगत में सदा से देखते आ रहे हैं।

पिछले दो-तीन सौ साल में ईसाई जगत तो काफी उदार हुआ है लेकिन हम अरबों की, नकल क्यों करें? जिसको जिस धर्मग्रंथ या धर्मपुरूष या जाति या पार्टी या नेता के खिलाफ जो कुछ बोलना हो, वह बोले लेकिन उसके जवाबी बोल को भी वह सुने, यह जरुरी है। बोली का जवाब गोली से देना कहां तक उचित है? जो बोली के जवाब में गोली चलाए, उसको सजा जरुर मिलनी चाहिए लेकिन यदि अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लग जाएगा तो भारत, भारत नहीं रह जाएगा। यदि बोली के जवाब में नागरिक गोली न चलाएं तो सरकार भी अपना गोला क्यों चलाए? गोली और गोला बोली के विरुद्ध नहीं, दंगाइयों के विरुद्ध चलने चाहिए। जो नफरती या घृणास्पद भाषण या लेखन करते हैं, वे अपनी इज्जत खुद गिरा लेते हैं।

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