हिजाब! अथवा पिंजड़े में आजादी!

हिजाब अचानक हक सा हो गया ? पांच राज्य विधानसभाओं के चुनाव के ऐन वक्त पर ! फिर नाराये—तकबीर लगाने की जरुरत भी आन पड़ी।

Written By :  K Vikram Rao
Published By :  Vidushi Mishra
Update:2022-02-16 19:15 IST

हिजाब पर विवाद 

हिजाब अचानक हक सा हो गया ? पांच राज्य विधानसभाओं के चुनाव के ऐन वक्त पर ! फिर नाराये—तकबीर लगाने की जरुरत भी आन पड़ी। मानों किसी जंग का ऐलान हो। मजहबी हकूक की यादें ताजा क्यों हो गयीं? किन्तु होना भी चाहिये। बहुसंख्यक हिन्दुओं ने इस्लाम को जो खतरे में डाल दिया है। मगर पाकिस्तान के टीवी ने तो इस ''हिजाबी जनसंघर्ष'' को भारत का षडयंत्र बताया है।

वह सच बोल रहा होगा क्योंकि निजामे मुस्तफा का सच्चा पालक इस्लामी जम्हूरियाये पाकिस्तान ही है। भारतीय दारुल हर्ब नहीं। हालांकि काबिले—गौर विषय यह है कि एशिया में केवल तालिबानी अफगानिस्तान और अचेह प्रांत (हिंदेशिया) में ही हिजाब अनिवार्य है। बड़े इस्लामी राष्ट्र सीरिया, मिस्र, मोरक्को, मालद्वीप, सोमालिया, ब्रूनी इत्यादि में ही हिजाब अनिवार्य नहीं है।

हक भी मजहबी

हिजाब वाजिब है, तो तीन तलाक, बिना मुआवजें के, बुर्का तथा बिना मर्द के घर से बाहर निकलना सभी पर ऐसा लागू हों। पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरेशी ने तो कर्नाटक में हिजाब पर पाबंदी को मुसलमानों पर भीषण जुल्म बताया। उदाहर्णार्थ पाकिस्तानी शियाओं पर सुन्नी हुकूमत जो करती रही है ! उसकी परिणति क्या ?

यदि हिजाब धार्मिक जरुरत है तो फिर डिस्को में जाना, स्कर्ट पहनना, क्रीम—पाउडर, लिपस्टिक लगाना सभी हराम है। मगर कर्नाटक में वह इन्कलाबी युवती जिसने इस हिजाब आंदोलन का बिस्मिल्लाह किया था बाद में सार्वजनिक स्थलों पर बिना हिजाब की थिरकती नजर आयी थी। नीचे फोटो प्रकाशित है। ''तस्वीर तेरी झूठ नहीं बोलेगी, दिल भी बहला न सकेगी।''

मगर यहां समस्या हिजाब की लम्बाई—चौड़ाई से भी ज्यादा विकराल हो जायेगा। गत सप्ताह अलीगढ़ के धर्मसमाज कालेज के छात्र भगुवा परिधान पहन कर ''जय श्री राम'' का नारा बुलन्द करते कक्षा में बैठ गये। उन्होंने इसे धार्मिक कर्तव्य बताया। (चित्र देखें)। कही नागा साधु और दिगंबर जैन भी कालेज में प्रवेश ले ले तो? उनका हक भी मजहबी है।

कुछ समय पहले रोम (इटली) के एक मजिस्ट्रेट ने एक बलात्कारी को बेगुनाह मानकर रिहा कर दिया था। उनका तर्क यह था कि युवती तंग जीन्स पहने थी जिसे खोलना कठिन है। अत: जोरजबरदस्ती मुमकिन नहीं है। इस पर दुनियाभर की महिलाओं ने विरोध व्यक्त किया था। उससे हिजाब का ताल्लुक इन सिकुड़े जीन्स से इतना ही है कि खुद अकीतमंदों ने कहा था कि ''हिजाब और बुर्का न पहनने से युवतियां बलात्कारियों का टार्जेट बन सकतीं हैं।''

मुस्लिम लड़कियों के भविष्य से खिलवाड़

इस बीच प्रियंका वाड्रा ने एक कांग्रेसी चुनावी रैली में मुस्लिम छात्राओं द्वारा हिजाब धारण करने को उनकी मुक्त पसंद बतायी। अतिज्ञानी राहुल गांधी ने तो यहां तक कह डाला कि ''हिजाब से वंचित कर, हम इन मुस्लिम लड़कियों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं।''

प्रियंका की बात मानी जा सकती है क्योंकि वह स्वयं नयी दिल्ली में वोट डालने बूथ पर गयीं थीं तो काले स्कर्ट और बिना बांहों की ब्लाउज पहने थीं। यूं यूपी के गांवों में वह लम्बी साड़ी और पूरी बाहोंवाला ब्लाउज पहनकर वोट मांगती हैं। उनकी दादी की भी स्टाइल ऐसी ही थी। अमेरिका गयीं थी तो आकर्षक अंग प्रदर्शन था, भले ही भारत में घूंघट निकाल लें। इनका जवाबी तर्क यही है कि वस्त्र पहनना निजी चाहत है। किसी का दबाव नहीं हो।

अत: हिजाब पर भी यहीं तर्क लागू होता है। गमनीय है कि शिक्षा संस्थानों में ड्रेस को यूनिफार्म कहा जाता है। अर्थात समान पोशाक। भेदभाव से परे। पुणे के मुस्लिम सत्य शोधक मंडल के संस्थापक, विचारक मिंया हमीद दलवाई की उक्ति काफी वजनदार है : ''भारतीय मुसलमान यदि निजामे मुस्तफा और शरियत के अनुसार रहे तो इस्लामी लीबिया में जा कर बसें। भारत तो सेक्युलर गणतंत्र है।''

अब हिजाब की भांति मद्यपान का प्रश्न भी देख लें। शराब को इस्लाम में निषिद्ध कहा गया है। पीना पाप है, गुनाह है। मगर हर शायर सूरज ढलते ही जाम टकराता है । अक्सर दिन में ही। किसी शायर की बड़ी क्रांतिकारी पंक्ति थी कि '' आंचल को परचम बना दो।'' मगर आज भी बहन बेटी को जायदाद में हिस्सा नहीं दिया जायेगा। मौलवी द्वारा यौन शोषण हेतु हलाला वैध है। ईमेल पर तीन तलाक वाजिब है।

सरासर महिला संहार 

यहां एक बात दकियानूसी हिन्दुओं की बाबत भी । अफीम खिलाकर विधवा को पति की चिता पर आज भी राजपूती राजस्थान में जबरन जला डालते है, ताकि स्वर्ग (वस्तुत: नरक) में वे दम्पत्ति बने रहें। इसी का मध्ययुग में विकृत आकार था जौहर का। सरासर महिला संहार होता था।

यहां आजाद भारत की मुस्लिम राजनेत्रियों का भी जिक्र हो। बड़ी दहाड़ रहींं हैं पक्ष में। एक भी नहीं दिखती न संसद में, न इस चुनावी सभा में जो हिजाब धारण किये हो। आठ सदी पूर्व दिल्ली पर काबिज इस्लामी शासक को देखें।

एक रानी हुयीं थीं। बदायूं में जन्मी, नाम था ममलूक वंश की सुलताना रजियात—उद—दुनिया—बा—दीन (शमसुद्दीन इल्तुतमिश की बेटी) जो हिजाब नहीं पहनती थी (तस्वीर देखें)। उसी दौर में इंग्लैण्ड के तख्त में दासीपुत्री एलिजाबेथ प्रथम (ट्यूडर वंशवाली) भी थी। रजिया इतिहास में अमर हैं।

दूसरी जनाना शासिका थी बेनजीर भुट्टो—जरदारी जो इस्लामी पाकिस्तान की वजीरे आजम तथा अपने से चन्द वर्ष बड़े राजीव गांधी की सखा रही थी। उस दौर में भारत—पाक रिश्ते बड़े उम्दा और मधुर थे। आक्सफोर्ड तथा हार्वर्ड में शिक्षिता बेनजीर ने भी कभी हिजाब नहीं लगाया। तो गम की मारी शाह बानो की इन वंशजों को हिजाब लगाने से क्या फायदा मिलेगा?

आजादी मांगने से नहीं मिलती। छीनी जाती है। अर्थात नेहरु ने हिन्दु नारियों (1955) को तो जालिम पतियों से मुक्ति दिलाई। मगर मक्का में जन्मे मौलाना आजाद निश्क्रिय रहे। सुधार हेतु कामयाब नहीं रहे। नतीजा आज के कर्नाटक कालेज है।

पिंजड़े के आदी तोते और आसमान पर उड़ते तोते में कितना फर्क है। सेक्युलर भारत के मुस्लिम युवतियों के लिये अवसर चयन का विकल्प है। वर्ना आदत पड़ जाती है तो गुलामी प्रिय हो जाती है। जवाब कर्नाटक से आयेगा।

Tags:    

Similar News