Hindu Dharam Faith: आस्था के केंद्रों को खिलवाड़ का केंद्र न बनाएं, बहुत बुरा हो रहा इसका असर

Hindu Dharam Faith: हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण का महीना प्रारंभ हो चुका है। श्रावण महीना अर्थात शिव की पूजा का महीना‌। ऐसे में जब भक्तों की आस्था अपने सुंदर रूप में होती है तब भक्ति का प्रवाह होता है।

Update: 2023-07-16 13:00 GMT
Hindu Dharam Faith (Photo - Social Media)

Hindu Dharam Faith: हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण का महीना प्रारंभ हो चुका है। श्रावण महीना अर्थात शिव की पूजा का महीना‌। ऐसे में जब भक्तों की आस्था अपने सुंदर रूप में होती है तब भक्ति का प्रवाह होता है। पौराणिक काल से ही राजा- महाराजाओं, साधुओं , ऋषियों, तपस्वियों, हमारे पूर्वजों और मनीषियों के द्वारा देवी-देवताओं के विग्रह की स्थापना और धार्मिक स्थलों का निर्माण अपने तन और मन दोनों की शुद्धता, चित्त की शांति और अपने आराध्य से साक्षात्कार के उद्देश्य से कराया जाता रहा है। ये मंदिर मात्र ईंट- पत्थर के भवन नहीं है। धार्मिक अनुष्ठानों द्वारा स्थापित ये मंदिर, शिवालय आस्था का केंद्र होने के साथ-साथ चैतन्यता और ऊर्जा का भी केंद्र होते हैं, जहां दर्शनार्थी और भक्त जाकर जागृत अवस्था में ही स्वयं की अनुभूति कर पाते हैं। चूंकि श्रावण का महीना है तो भोले के मंदिरों और भोले के भक्तों की जय-जयकार का महीना चल रहा है। बर्फानी बाबा अमरनाथ से लेकर बैजनाथ धाम तक, केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक हर जगह बम भोले की ही गूंज है। इसके अतिरिक्त सभी मंदिरों में चाहे वे किसी भी देवी -देवता के हों, भक्तों से अटे पड़े हैं।

बीते सप्ताह में घटित कुछ घटनाओं के कारण दो मंदिर सुर्खियों में रहे। देश के सोलह ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा केदारनाथ धाम पिछले कुछ सालों से ही लगातार चर्चा में बना हुआ है। आज से दस साल पहले 16 जून, 2013 को उत्तराखंड में बादल फटने से आई विनाशकारी बाढ़ में केदारनाथ धाम के आसपास का क्षेत्र पूरी तरह तबाह हो गया था। एक समय ऐसा लगा कि अब बाबा केदार के दर्शनों को कौन जाएगा, जहां भीषण प्राकृतिक आपदा ने कितनी ही हजारों जाने ले ली थी। पर कुछ समय की शांति के बाद यह धाम प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट का हिस्सा बना और यहां पुनर्निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ जो कि अभी भी चल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की बाबा केदारनाथ के प्रति भक्ति जगजाहिर है। 18 मई, 2019 में प्रधानमंत्री मोदी ने यहां रूद्र गुफा में 17 घंटे का ध्यान लगाया था, तब मीडिया ने खूब जोश-खरोश के साथ इसे कवर किया था। इसके पुनर्निर्माण और मीडिया के द्वारा इस घटना को इतनी प्रमुखता दिए जाने के बाद से ही केदारनाथ धाम भक्तों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है। अब इसकी यात्रा सिर्फ आस्था की यात्रा नहीं रह गई है, जहां गृहस्थ जीवन पूरा करके वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करने वाले लोग जाते थे। यह भी अब सोशल मीडिया के समय में हाईटेक कवरेज पा रही है। हाल ही में वायरल हुए एक वीडियो में यूट्यूबर राइडरगर्ल विशाखा द्वारा अपने प्रेमी को प्रपोज करने और रिंग पहना कर गले मिलने का वीडियो सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हो रहा है।

इसके पहले मंदिर के गर्भ गृह में एक महिला द्वारा पंडितों के उपस्थिति में ही बाबा केदार के शिवलिंग पर नोटों की बारिश का वीडियो भी वायरल हुआ था। आश्चर्य है कि मंदिर के गर्भ गृह में जहां फोटो तक लेना निषिद्ध होता है, वहां वीडियो कैसे बनाया जा रहा था और बाबा के प्रति भक्तों की श्रद्धा का खिलवाड़ कर, बाबा के ऊपर नोटों की बारिश की जा रही थी। हो क्या गया है लोगों की आस्था को? कुछ फॉलोअर्स बढ़ाने का जुनून इन यूट्यूबर्स को, इन इनफ्लुएंसर्स को किस हद तक ले जाता है, यह शोचनीय विषय है। शायद वे भक्ति का अर्थ ही नहीं समझते हैं या वे भक्तों की आस्था और श्रद्धा तथा धार्मिक परंपराओं से खिलवाड़ करने को ही भक्ति मानते हैं। दरअसल आज के समय में ये यात्राएं धार्मिक न रहकर पिकनिक या तफरीह की यात्राएं अधिक होती जा रही हैं। मंदिरों की अपनी गरिमा, अपनी भक्ति भावना होती है और यह स्थान दिखावे और चमक- धमक वाले होने की जगह शांति और श्रद्धा की अनुभूति वाले होने चाहिए। अपने प्रेम का इजहार करना अच्छी बात है। वे कोई पहले प्रेमी जोड़े नहीं होंगे जिन्होंने मंदिर में अपने प्रेम का इजहार किया है। बहुतों की गृहस्थ जीवन की डोर मंदिरों के आंगन और प्रांगण में ही परवान चढ़ी है। लेकिन शालीनता, श्लीलता, सामाजिक मर्यादा का, आसपास के लोगों की उपस्थिति का ध्यान नहीं रखना कौन सा प्रेम सिखाता है? अगर केदारनाथ मंदिर समिति इस तरह की रील्स बनाने वालों पर प्रतिबंध की मांग करती है तो वह बिल्कुल ठीक है। क्योंकि ये शांत पहाड़, शांत मंदिर ऊटपटांग वीडियो बनाने के लिए नहीं बल्कि भक्ति के लिए हैं, अपने आराध्य से साक्षात्कार करने के लिए हैं। यह बात अच्छी तरह से भक्तों को भी समझ लेनी चाहिए और पंडित- पुजारियों को भी।

दूसरी घटना गुवाहाटी स्थित विश्व प्रसिद्ध मां कामाख्या मंदिर की है, जहां एक दर्शनार्थी के परिवार और पंडे की बहस का वीडियो दो दिन से वायरल हो रहा है, जिसके विरुद्ध मंदिर के पंडों ने कामाख्या देवालय से मंदिर में मोबाइल फोन और कैमरा ले जाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की है। यह सिर्फ अकेले कामाख्या मंदिर की ही बात नहीं है, जहां पंडे-पुजारियों और भक्तों के बीच नोकझोंक हुई हो। यह लगभग प्रत्येक बड़े देवस्थान की, देवालय की स्थिति है, चाहे मथुरा -वृंदावन जाइए, हरिद्वार- ऋषिकेश जाइए, जगन्नाथपुरी जाइए, किसी भी ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ चले जाइए। मैं यह बिल्कुल भी नहीं कहती कि मंदिर का हर पंडित, पुजारी बहस करने वाला या भक्तों के साथ दुर्व्यवहार करने वाला होता है पर अधिकांशतः अनुभव यही कहता है। इनमें भी दो तरह का वर्गीकरण है। या तो वे बहुत अधिक पैसे वाले हो चुके हैं और उनको आने वाला हर भक्त अपने लिए कैश देने की मशीन लगता है और दूसरे वे जिनके जीविकापार्जन का साधन मात्र यह दक्षिणा ही है जिसके कारण एक निश्चित आय न होने से वे भक्तों से इस तरह की मांग करते हैं। आखिर अन्य पेशेवर सेवाओं की तरह यह भी तो एक तरह की सेवा है जिसका दक्षिणा के रूप में भक्तों को मूल्य चुकाना ही होता है। इसके लिए भी कुछ नियम बना दिए जाएं तो अच्छा होगा। प्रत्येक तरह की पूजा के लिए एक उपयुक्त, न्यूनतम राशि तय कर दी जाए, जिससे भक्तों को भी असुविधा न हो और पंडितों के बीच भी यह क्लेश का कारण न बने। इस घटना के प्रति असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व शर्मा गंभीर दिखाई देते हैं क्योंकि हाल ही में भाजपा शासित मध्यप्रदेश में एक भाजपा नेता से संबंधित व्यक्ति का एक आदिवासी युवक पर पेशाब करने का वीडियो वायरल हुआ है, जिसके कारण शिवराज सरकार और पूरी अफसरशाही हिल उठी है। मुख्यमंत्री शर्मा इस तरह का कोई भी जोखिम अपने प्रदेश के लिए और अपनी गद्दी के लिए तो नहीं उठाना चाहेंगे।

मंदिरों और विवादों का न तो यह कोई पहला उदाहरण है और न ही आखिरी होगा। चाहे पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के द्वारा प्रसिद्ध जगन्नाथ पुरी मंदिर के दर्शन के समय उनके दलित समुदाय से होने के कारण वहां उपस्थित खुंटिया मेकाप सेवकों द्वारा उनका रास्ता बाधित करने की घटना रही हो या मंदिरों द्वारा पूर्ण सरकारी नियंत्रण हटाने की मांग को लेकर न्यायालय की टिप्पणियां, कभी न्यायालय द्वारा मंदिरों के पुजारियों को लेकर 'पुजारी की जाति धर्म का अभिन्न अंग नहीं' जैसे आदेश या किसी मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक तो कहीं जाति- धर्म के आधार पर मंदिरों में पूजा और प्रवेश पर रोक। हमें यह समझना होगा कि मंदिर आस्था के केंद्र हैं, जहां आराध्य के दर्शन के लिए श्रद्धा, भाव और आस्था प्रबल होनी चाहिए, भक्तों और पंडितों दोनों की। सोशल मीडिया और यूट्यूबर्स को भी मंदिरों का मंदिर के रूप में ही वर्णन करना चाहिए, किसी तरह के रोमांटिक या पर्यटक स्थल के रूप में नहीं। इस भौतिक दुनिया में श्रद्धा का महत्व कम होता जा रहा है, इसलिए कुछ भौतिक बुराइयों पर जितनी जल्दी अंकुश लगाया जा सके तो बेहतर होगा। धर्मावलंबियों को भी चाहिए कि वे अपने आस्था के केंद्रों को खिलवाड़ के केंद्र बनाने से बचाएं।

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