हाउडी मोदी: विश्व विजेता मोदी के इस दौरे से हमने क्या पाया

यह बात ठीक है कि अभी सटीक आकलन में दिक्कत आ सकती है क्योंकि कुछ लोगों के लिए तय करना सरल और सहज नहीं होता। लेकिन इस बात से सहमत भी नहीं हुआ जा सका कि बिना किसी मतलब के इतना बड़ा आयोजन हुआ यानी ये एक नाटक था। अगर नाटक था तो भी दो देशों द्वारा मिलकर किये गए इस ड्रामे के कुछ निहितार्थ जरूर होंगे।

Update:2023-06-18 09:00 IST

पंडित रामकृष्ण वाजपेयी

दोस्तों मैने फेसबुक पर एक सवाल किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंफ की एक नए अंदाज में परवान चढ़ती दोस्ती क्या कुछ नया इतिहास बनाएगी? इस पर मेरे तमाम मित्रों की प्रतिक्रिया आईं। वस्तुतः किसी ज्वलंत विषय या घटनाक्रम पर इस तरह के सवालों का उद्देश्य एक दूसरे के विचार या नजरिये से वाकिफ होना होता है। इसका मायने यह भी है कि समाज में इसको किस नजरिये से देखा जा रहा है। हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। लेकिन उस प्रतिक्रिया का कोई आधार भी होना चाहिए।

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इस ड्रामे के कुछ निहितार्थ जरूर होंगे

यह बात ठीक है कि अभी सटीक आकलन में दिक्कत आ सकती है क्योंकि कुछ लोगों के लिए तय करना सरल और सहज नहीं होता। लेकिन इस बात से सहमत भी नहीं हुआ जा सका कि बिना किसी मतलब के इतना बड़ा आयोजन हुआ यानी ये एक नाटक था। अगर नाटक था तो भी दो देशों द्वारा मिलकर किये गए इस ड्रामे के कुछ निहितार्थ जरूर होंगे।

विदेशी अखबारों का नजरिया भी हमारे सामने है जैसे अमेरिकी मीडिया संस्थान यूएसए टूडे ने इसे मोदी-ट्रंफ का ब्रोमांस बताया और इसी हेडलाइन से छापा। हाउडी मोदी में दोनो ही नेता एक दूसरे का गुणगान करने में लगे थे। क्या इसका मायने ये है कि दोनो को ही एक दूसरे की जरूरत है। शायद इसी लिए यूएसए टूडे ने इसे मोदी-ट्रंफ का ब्रोमांस बताया है।

वाशिंगटन पोस्ट का मानना है कि ट्रंफ ने ईगो को दरकिनार कर इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। खासकर मौजूदा समय में ट्रंफ की विदेश नीति को लेकर अमेरिका में काफी तनाव है। ट्रंफ के ईगो की वजह से अमेरिका का काफी नुकसान हो रहा। अखबार ने लिखा है कि ट्रंप अपने ईगो को छोड़कर इस मेगा शो में शामिल हुए। खबर की हेडलाइन है ह्यूस्टन में ट्रंफ का असामान्य रूप देखने को मिला।

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हाउडी मोदी पॉप फ्रांसिस के बाद किसी विदेशी नेता का सबसे बड़ा कार्यक्रम

बीबीसी ने इस खबर को ऐतिहासिक रैली हेडलाइन दिया है। गौरतलब है कि हाउडी मोदी अमेरिका के इतिहास में पॉप फ्रांसिस के बाद किसी विदेशी नेता का सबसे बड़ा कार्यक्रम रहा। इस 90 मिनट के शो में 400 परफॉर्मर्स थे। द गार्जियन के मुताबिक दोनों देशों का प्रतिनिधित्व दक्षिणपंथी नेता करते हैं।

इसके बावजूद अखबार को ट्रंफ युग के मानकों के अनुसार, हाउदी मोदी शो के दौरान दोनों नेताओं की मुलाकात काफी अजीब थी। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी धरती पर उन्हें इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए बुलाया और ट्रंफ ने खुशी-खुशी इसे स्वीकार लिया। कुछ अजीब था।

गौरतलब 'द वाल स्ट्रीट' जर्नल का कथन भी है जिसमें कहा गया कि दोनो नेताओं का संयुक्त रूप से साथ आना भारत-अमेरिका के बीच बढ़ रहे रणनीतिक महत्व को रेखांकित करता है। दो बड़े लोकतांत्रिक देश एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभुत्व की महत्वाकांक्षा पर लगाम लगाने के लिए अहम है।

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ट्रंप के लिए भारतीय अमेरिकी समुदाय का वोट पाना आसान नहीं होगा

द वाल स्ट्रीट जर्नल का यह नजरिया भी काबिले गौर है कि ट्रंप की नजर अमेरिका में भारतीय समुदाय के बढ़ रहे मतदाताओं पर है और वह 2016 के मुकाबले 2020 में इस समुदाय का ज्यादा से ज्यादा वोट चाहते हैं। जर्नल ने यह भी कहा है कि ट्रंफ भारतीय अमेरिकी लोगों से जुड़ने से मिलने वाले लाभ को समझते हैं क्योंकि इस समुदाय का योगदान 21वीं सदी में दोनों देशों की समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है। यह दोनो देशों के बीच संबंध प्रगाढ़ होने की एक वजह हो सकती है लेकिन मूल वजह नहीं।

'द न्यूयॉर्क टाइम्स' ने लिखा है कि दोनों नेता अमेरिका में भारतीय मतदाताओं के बीच इस दृष्टिकोण के साथ गए कि वह अपने देश को 'दोबारा महान' बनाएंगे। इसमें मोदी दूसरी पारी शुरू कर चुके हैं जबकि ट्रंफ इसके लिए लालायित हैं। अखबार ने यह भी कहा है कि भले ही मोदी ट्रंप के साथ हों लेकिन ट्रंप के लिए भारतीय अमेरिकी समुदाय का वोट पाना आसान नहीं होगा क्योंकि भारतीय अमेरिकी जनता डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवारों के लिए मतदान करती है।

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ये वक्त बताएगा कि यह दोस्ती क्या गुल खिलाएगी

ऐसे में आलोचना बच नहीं पाएंगे। कहना सही हो सकता है। लेकिन अभी बहुत कुछ सामने आना बाकी है। ये वक्त बताएगा कि यह दोस्ती क्या गुल खिलाएगी लेकिन फिलहाल तो मोदी के इस विदेश दौरे को भारत का एक बड़ा वर्ग भी सफल मान रहा है। इंतजार जरूरी है। दोनो देशों को दोनो की जरूरत है। ग्लोबल विलेज का तकाजा भी यही है।

यदि हमारा पड़ोसी मुल्क भी आतंकवाद से दूरी बनाकर इस घटनाक्रम से सबक लेकर अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने पर जोर दे तो शायद अपनी जनता का अधिक भला कर पाएगा।

इसके अलावा जलवायु परिवर्तन शिखर बैठक और संयुक्त राष्ट्र के समक्ष भारत की धमक, पाकिस्तान का बेनकाब होना भी मोदी के इस दौरे से जुड़े हुए पहलू हैं जो कहीं न कहीं भारत सशक्त बना रहे हैं।

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