रामचरितमानस की चौपाई ढोल, गंवार.. मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने नहीं, समुद्र ने कहा था

Hriday Narayan Dikshit: दक्षिण भारत में ऋषि कंबन ने रामकथा लिखी है। पहली रामकथा महर्षि वाल्मिकि ने लिखी थी। इसे रामायण की संज्ञा मिली।;

Written By :  Hriday Narayan Dixit
Update:2023-01-19 18:06 IST
Dhol, Gavar.. Maryada Purushottam Ram did not say, the sea said

ढोल, गंवार .. मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने नहीं, समुद्र ने कहा था: Photo- Social Media

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Hriday Narayan Dikshit: श्रीराम भारत के मन का धीरज हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम भी हैं। भारत की अनेक भाषाओं में रामकथा लिखी गई है। दक्षिण भारत में ऋषि कंबन ने रामकथा लिखी है। पहली रामकथा महर्षि वाल्मिकि ने लिखी थी। इसे रामायण की संज्ञा मिली। वाल्मीकि परंपरा में आदिकवि हैं। मध्य काल में महाकवि तुलसीदास ने रामचरितमानस लिखी। रामचरितमानस में प्राचीन दर्शन है। समाज विज्ञान है। भक्ति का अथाह सागर है। ऐसी लोकप्रिय पुस्तक दुनिया के किसी भी देश में नहीं मिलती। भारत के गांव-गांव रामचरितमानस पढ़ी और गायी जाती है।

डॉ. राम मनोहर लोहिया समाजवादी थे। उन्होंने "राम, कृष्ण और शिव" में राम के व्यक्तित्व पर तथ्यपरक भावप्रवण टिप्पणी की है। लोहिया ने लिखा है रामायण के सभी पात्र अश्रुलोचन हैं। सभी पात्र आंसू बहाते दिखाई पड़ते हैं। उन्होंने राम, कृष्ण और शिव को भारत के तीन स्वप्न बताया था। राम के व्यक्तित्व का केंद्र मर्यादा है। कृष्ण में प्रेम की पूर्णता है और शिव में उन्मुक्तता। लोहिया रामचरितमानस को रामायण कहते थे। डॉ. लोहिया ने चित्रकूट में विश्व रामायण मेला लगवाया था। समाजवादी लोहिया राम पर मोहित थे और आज के कथित समाजवादी रामचरितमानस से कथित अप्रिय प्रसंग निकालकर देश का वातावरण खराब करते हैं।

बिहार के शिक्षा मंत्री ने रामचरितमानस पर आक्रमण किया है। रामचरितमानस इतिहास के मध्य काल की रचना है। तब लोगों में निराशा थी। सांस्कृतिक तत्वों के निंदक भी थे। तुलसीदास ने रामचरितमानस में ऐसे निंदकों को प्रणाम किया है। वे रामचरितमानस की शुरुआत में सभी अग्रजों का स्मरण करते हैं। वाल्मीकि सहित सभी विद्वानों को प्रणाम के बाद कहते हैं, "मैं उनको भी प्रणाम करता हूं जो अकारण दाएं बाएं किया करते हैं। ऐसे लोग परहित की हानि को अपना लाभ मानते हैं। दूसरों के उजड़ जाने पर प्रसन्न होते हैं। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएं।"  तुलसीदास ने कहा है कि वे परंपरागत ग्रंथों के शुभ तत्व के आधार पर रामचरितमानस लिख रहे हैं। उनका ध्येय दुखों कष्टों को दूर करना और समाज को प्रेरित करना है। इस कथा में रामराज्य का आदर्श है। गाँधी जी ने रामराज्य को आदर्श बताया था। तुलसी के अनुसार यह कथा, "मंगल करनि कलिमल हरनि" है।

ढोल गंवार शूद्र पशु नारी

शिक्षा मंत्री ने "ढोल गंवार शूद्र पशु नारी" की चैपाई को स्त्री अपमान से जोड़ा है। यह चैपाई राम कथा में श्रीराम का कथन नहीं है। कथा प्रसंग को बढ़ाने के लिए तुलसीदास का कथन भी नहीं है। श्रीराम समुद्र तट पर खड़े हैं। लंका तक पहुंचने के लिए समुद्र से रास्ता मांग रहे हैं। लेकिन समुद्र रास्ता नहीं दे रहा है। श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं, "विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीति/बोले  राम सकोप ताब बिनु भय होय न प्रीत।" लक्ष्मण से कहते हैं कि धनुष बाण लाइए। कुटिल विनय से प्रभावित नहीं होते। मोहग्रस्त के सामने ज्ञान मीमांसा का कोई अर्थ नहीं। यह ऊसर में बीज बोने जैसा है। यह सब कहने के बाद श्रीराम समुद्र पर आक्रमण की घोषणा करते हैं। समुद्र कहता है प्रभु ने ठीक किया जो मेरा मार्गदर्शन किया। ढोल गंवार पशु और नारी सीधी बात नहीं मानते। यह वक्तव्य श्रीराम का नहीं है। यह टिप्पणी समुद्र की है।

भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में नायक के लिए उदात्त चरित्र और आदर्श गुणों के होने की शर्त रखी है। खलनायक के बारे में कहा है कि उसे तत्कालीन समाज व्यवस्था और आदर्श का विरोधी होना चाहिए। खलनायक की पराजय और नायक की विजय भारतीय नाट्य परंपरा का सुस्थापित सिद्धांत है। लेकिन समुद्र द्वारा कही गई चैपाई के माध्यम से रामचरितमानस पर लांछन लगाया जा रहा है। रामचरितमानस में नारी सम्मान का शिखर है। राम ने किष्किंधा के राजा बालि को मार दिया था। घायल बालि ने राम से पूछा, "मैं बैरी सुग्रीव पियारा। अवगुण कवन नाथ मोहि मारा। श्रीराम का उतर ध्यान देने योग्य है, "अनुज वधू भगिनी सुत नारी। सुन सठ ये कन्या समचारी। इनहि कुदृष्टि विलोकई जोई। ताहि बधे कुछ पाप न होई।" स्त्रियों से छेड़खानी आदि की घटनाओं पर कानूनों को कड़ा करने की मांग उठती है। रामचरितमानस में सीधे मृत्युदण्ड की बात कही गई है।

संस्कृति और दर्शन में कुछ शाश्वत तत्व होते हैं। कुछ विषय तात्कालिक और समकालीन होते हैं। विवेचना करते समय देश काल का भी ध्यान रखना चाहिए। रामचरितमानस के प्रति करोड़ों लोगों के ह्रदय में आदर है। ऐसे ग्रंथों के सारवान विषय का विरोध औचित्यपूर्ण नहीं है। रामचरितमानस में वैदिककालीन संस्कृति और दर्शन के तत्व हैं। मर्यादा के तत्व अनुकरणीय हैं। भारतीय संस्कृति में निरंतरता है। वैदिककाल, उत्तरवैदिककाल व महाकाव्यकाल तक शाश्वत सत्यों की दृष्टि से एक जैसे हैं। इन्हें समग्रता में ही जांचना और विवेचन करना सही होगा। हिन्दू दर्शन में तर्क के द्वार कभी बंद नहीं हुए। रामचरितमानस के रचनाकाल के समय भी काशी के विद्वानों ने टिप्पणियां की थीं। लेकिन रामचरितमानस की लोकप्रियता पर ऐसी टिप्पणियों का प्रभाव नहीं पड़ा। ताजा टिप्पणी भी अतिशीघ्र कालकलवित हो जाएगी। टिप्पणीकारों को देखना चाहिए कि इंडोनेशिया, कम्बोडिया, थाईलैंड आदि देशों में भी रामकथा है।

मनुस्मृति पर बवाल

दुनिया राम को नहीं भुला सकती और न रामचरितमानस को। मनुस्मृति पर भी जब कब शोर मचता है। इसका मुख्य कारण वैदिककाल से लेकर अब तक मनु की उपस्थिति पर ध्यान न देना है। ऋग्वेद में भी मनु का उल्लेख है। ऋग्वेद में कहा गया है कि मनु हमारे पूर्वज हैं। ऋग्वेद वाले मनु ग्रामणी भी हैं। ग्रामणी शब्द ग्राम प्रमुख के लिए आया है। शतपथ ब्राह्मण में जलप्लावन की कथा के अनुसार मनु प्रातःकाल नदी के किनारे थे। एक छोटी मछली आई। उसने मनु से कहा कि बहुत बड़ी बाढ़ आने वाली है। आप हमारा पालन पोषण करें। जब मैं बड़ी हो जाउंगी तब बाढ़ से तुम्हारी रक्षा करुँगी। कथा के अनुसार जलप्रलय हुई। मछली ने मनु को नाव में बैठाया और बहुत दूर पर्वत तक मनु को पहुँचाया। जयशंकर प्रसाद ने कामायनी में इस कथा को आधार बनाया है। इसके अतिरिक्त एक कथा और भी है कि अराजकता बढ़ी। पीड़ित लोगों का प्रतिनिधिमण्डल मनु से मिला। प्रतिनिधिमण्डल ने मनु से राजा बनने का अनुरोध किया। मनु नहीं माने।

बाद में राज काज चलाने के लिए उन्हें एक निश्चित अन्न अधिशेष देने का आश्वासन दिया गया। राजा के रूप में उनकी बात मानने का भी संकल्प किया गया। राजव्यवस्था के जन्म की सबसे प्राचीन कथा यही है। यूरोपीय सामाजिक समझौते का सिद्धांत ताजा है और मनु वाली घटना अतिप्राचीनकाल की है। श्रीकृष्ण गीता के चौथे अध्याय में अर्जुन को ज्ञान परंपरा समझाते हैं। वे कहते हैं कि प्राचीनकाल में यह ज्ञान सूर्यदेव विवस्वान को मिला था। उन्होंने यह ज्ञान मनु को दिया था। और मनु ने इक्ष्वाकु को। मनु भारत की ज्ञान परंपरा के प्रतिष्ठित नायक हैं। मनुस्मृति का रचनाकाल बहुत पुराना नहीं है। यह स्मृति है धर्मग्रन्थ नहीं है। बाध्यकारी भी नहीं है।

जाति वर्ण की व्यवस्था के जन्मदाता मनु नहीं हैं- डॉ० आंबेडकर

"डॉ० आंबेडकर ने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में 1916 में कहा था कि, "जाति वर्ण की व्यवस्था के जन्मदाता मनु नहीं हैं।" मुद्दारहित राजनैतिक नेता मनुस्मृति और रामकथा पर आरोप लगाकर प्रतिष्ठित होना चाहते हैं। दूसरे सरसंघचालक मा० स० गोलवलकर ने 'विचार नवनीत' ('बंच ऑफ थॉट्स') लिखा था। 'विचार नवनीत' राष्ट्रवाद पर परिश्रमपूर्वक लिखी गई पुस्तक है। इससे सहमत या असहमत होना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है। रामचरितमानस, मनुस्मृति और विचार नवनीत मजहबी ग्रन्थ नहीं हैं। अच्छी बात है। ये मजहबी ग्रन्थ होते तो टिप्पणीकारों के अनर्गल वक्तव्य पर संग्राम छिड़ जाता।

( लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं ।)

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