Delhi Basement Case: कोचिंग सेंटर जवाबदेही आवश्यक
Delhi Basement Case: क्या लगातार धरने पर बैठे छात्रों को न्याय मिलने की आशा की जानी चाहिए? किस तरह से हम देश के युवाओं के साथ, देश के भविष्य के साथ, उनके सपनों के साथ खिलवाड़ करने में जुटे हैं।
Delhi Basement Case: दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर इलाके में सिविल सेवा की तैयारी कर रही कोचिंग के बेसमेंट में पानी भरने से तीन विद्यार्थियों की मौत हो गई। इस खबर ने पूरे देश के छात्रों को भी झकझोर कर रख दिया और देश भर के कोचिंग संस्थानों को कटघरे में खड़ा कर दिया है। क्या उम्मीद की जानी चाहिए? यह मामला भी अन्य मामलों की तरह जल्द ही भूल जाने वाले वाकयों के बस्ते में डाल दिया जाएगा या माननीय सुप्रीम कोर्ट कुछ कठोर और ठोस निर्णय सुनायेगी। क्या लगातार धरने पर बैठे छात्रों को न्याय मिलने की आशा की जानी चाहिए? किस तरह से हम देश के युवाओं के साथ, देश के भविष्य के साथ, उनके सपनों के साथ खिलवाड़ करने में जुटे हैं।
कोचिंग का अर्थ होता है 'एक विकासात्मक प्रक्रिया , जिसमें एक कोच प्रशिक्षण और मार्गदर्शन प्रदान करके छात्रों को विशिष्ट व्यक्तिगत या व्यावसायिक लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता करता है। साथ में, कोच और प्रशिक्षित व्यक्ति अपने लक्ष्यों की ओर प्रगति करने के लिए आवश्यक कौशल और व्यवहार का अभ्यास और निर्माण करते हैं।' इधर पिछले कई सालों में कोचिंग अब मात्र ट्यूशन व्यवस्था नहीं रही बल्कि यह एक उद्योग बन चुका है और जिसका ग्राफ बड़ी ही तेजी से बढ़ता ही जा रहा है। हमारी शिक्षा व्यवस्था की इसे खामी कहें, यह हमारा अपना माइंडसेट कहें या बाजारवाद की नई मार्केटिंग स्ट्रेटजी कहे कि हम बच्चों को स्कूल -कॉलेज में बाद में दाखिला कराते हैं, एक अच्छी कोचिंग की पूछताछ पहले ही करके रखते हैं।
प्रतियोगी परीक्षाओं के छात्रों लिए तो यह और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है कि एक अच्छी नामी-गिरामी कोचिंग ढूंढ कर रखना। नामी-गिरामी का मतलब ? अरे, वही कोचिंग जिसके बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगे हो, जगह-जगह कॉलेज, स्कूलों के बाहर बैनर लगे हों। उस पर सफल विद्यार्थियों की बहुत सारी फोटोज और नाम दिखाई दे रहें हों। जिनके मा--साहब नहीं, नहीं..... मा--साहब तो इतने प्रोफेशनल कहां हुआ करते थे। दो दूनी चार पढ़ाया, कभी मुर्गा बनाया या बेंत या संटी से मार दिया, महीने के अंत में अपनी फीस जेब के हवाले करी और खत्म कहानी। वो नामी-गिरामी कोचिंग सेंटर जिनके सर या मैम रील बनाने में भी एक्सपर्ट हों। विद्यार्थियों के बीच अपनी छवि चमकाने के लिए एनर्जेटिक भी हों, पार्टियों भी देते हों, बड़े-बड़े शिक्षण संस्थानों से टाइ-अप भी रखते हों। यानी कुल मिलाकर सोशल मीडिया पर उनकी इतनी अच्छी पकड़ होनी चाहिए जैसे कि एक यूट्यूब ब्लॉगर की। उनके इतने मोटिवेशनल वीडियो, एजुकेशनल वीडियो जरूर हों कि विद्यार्थी और उसके परिवार को उनमें ही उनके जीवन का द्रोणाचार्य नजर आए।
विद्यार्थी भी अब स्कूल जाने की कम ही इच्छा रखते हैं क्योंकि वह भी जानते हैं कि यह सब अभी कोचिंग में भी पढ़ाया ही जाएगा। खासकर 11वीं व 12वीं के विद्यार्थी। क्योंकि इस समय में काफी सारे विद्यार्थी विशेषकर विज्ञान विषय वाले विद्यार्थी जिन्हें मेडिकल, इंजीनियरिंग की परीक्षाओं की तैयारी करनी होती है, किसी बहुत प्रसिद्ध कोचिंग संस्थान में दाखिला लेने के साथ ही डमी स्कूल में भी दाखिला लेते हैं। हर माता-पिता की भी इच्छा होती है कि उनका बच्चा किसी एक प्रोफेशनल कोर्स में अपना कैरियर जरूर बना ले और इस करियर को बनाने की चाह में वह अपनी काफी सारी आय भी उसमें लगा देते हैं।
बजाए यह देखने के कि कोचिंग वाले जो इतना उनसे उनके बच्चे को प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने के लिए पैसा ले रहे हैं, वहां वह क्या सुविधाएं दे रहे हैं। एक अच्छी कोचिंग में पढ़ने के लिए ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थी उसमें एडमिशन लेना चाहते हैं और संचालकों का क्या, उन्हें तो ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थियों को अपने यहां ठूस लेना होता है ।उसके लिए चाहे उन्हें छोटे-छोटे कमरों में ही कक्षाएं चलनी पड़ रही हों या बेसमेंट को ही एक क्लास के तौर पर प्रयोग किया जाना पड़ रहा हो। उन्हें तो अपना धंधा चमकाना है और यह माता-पिता की मजबूरी होती है, विद्यार्थियों की मजबूरी होती है कि उन्हें इस तरह के शोषणकारी व्यवस्था का सामना करना ही पड़ता है। उसके बाद भी क्या गारंटी की छात्र प्रतियोगी परीक्षा में निकल ही जाएगा?
कोचिंग व्यवसायों में अच्छा- खासा बड़ा निवेश होने लगा है । कई -कई कोचिंग क्लासेस तो किसी 3-4 स्टार होटल के जैसे सुविधाएं देती हैं। वह उसके लिए उतनी ही मोटी फीस भी चार्ज करती हैं। अब आपकी जितनी जेब आपको इजाजत देती है आप उतने ही बड़े कोचिंग संस्थान में, उतने ही ज्यादा सुविधाओं वाले कोचिंग संस्थानों में दाखिला ले लेते हैं। समस्या इससे नहीं है कि कोचिंग वाले कितनी फीस ले रहे हैं, समस्या इस बात की है कि इतनी फीस लेने के बाद भी क्या वह उतनी सुविधाएं छात्रों को दे पाते हैं? क्या वह उसे उस स्तर की पढ़ाई करवा पाते हैं? क्या वह छात्रों को मानसिक तौर पर और शारीरिक तौर पर इतना शोषित तो नहीं कर रहे हैं कि वह अनैतिक दिखाई देने लगे ? कोचिंग सेंटर कोठरी नहीं है, कोचिंग सेंटर बच्चों को करियर बनाने के लिए, छात्रों का आगे पथ प्रदर्शन करने के लिए एक सहायक उपक्रम है।
और अब जरूरी है कि कोचिंग केंद्रों के विषय में कड़े नियम, कठोर संहिता लागू की जाए, उनके लिए भी मानक बनाए जाएं और उनको भी हमेशा सर्विलांस में रखा जाए। छात्रों को और उनके परिवार वालों को भी विरोध का स्वर उठाना आना होगा और ऐसे कोचिंग संस्थानों को न कहना ना होगा जहां पर मूलभूत सुविधाएं भी न हो और किसी परेशानी, किसी आपदा की दृष्टि में उनका बच्चा वहां से जीवित वापस आने की जगह हमेशा के लिए नींद में सोए हुए रूप में वापस न आए।
(लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं )