भारत और बल्गारिया पारस्परिक सांस्कृतिक आदान-प्रदान में भी अग्रणी

Update:2023-04-23 20:04 IST

आनंद वर्धन

पूर्वी यूरोप के खूबसूरत देश बल्गारिया के भारत से हमेशा अत्यंत प्रगाढ़ संबंध रहे हैं। भारत और बल्गारिया पारस्परिक सांस्कृतिक आदान-प्रदान में भी अग्रणी हैं। भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का कायल संपूर्ण विश्व है। यहां की विद्वता, विविधता और सौंदर्य ने दुनिया भर के लोगों को सदा आकर्षित किया है और अतीत से लेकर अब तक यह आकर्षण कायम है। भारत के बारे में विदेषी विद्वान मैक्समूलर ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में‘भारत: जो हमें कुछ सिखा सकता है’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा था -

‘आप विशेष अध्ययन के लिए मानव मन का जो भी क्षेत्र चुनते हैं, चाहे वह भाषा हो, धर्म हो या पौराणिक कथाएं, दर्शन, कानून या रीति-रिवाज, आदिम कला या आदिम विज्ञान, यह सब कुछ आपको भारत में ही प्राप्त होगा। चाहे आप इसे पसंद करें या न करें, क्योंकि मनुष्य के इतिहास में सबसे मूल्यवान और सबसे शिक्षाप्रद सामग्री भारत में, और केवल भारत में ही है।’

निर्विवाद रूप से भारतीय मेधा से सभी प्रभावित रहे हैं। बल्गारिया भी इससे अछूता नहीं है। भारत के स्वतंत्र होने के बाद जब शेष दुनिया से उसके पारस्परिक संबंध प्रगाढ़ हुए तो भारत की संस्कृति और भाषाओं के प्रति भी उन देशों की रुचि जागृत हुई। बल्गारिया में साठ के दशक में हिंदी का अध्यापन शुरू हुआ। आरंभिक तौर पर यहां सन् 1966 से हिंदी पढ़ाई जाने लगी। तबसे आज तक अनेक भारतीय अतिथि प्राध्यापक यहां अध्यापन के लिए आए। हिंदी विषय का अध्यापन यहां भारत विद्या के अंतर्गत किया जाता है। जिन विदेशी विद्वानों ने यहां भारत विद्या के प्रचार प्रसार में योगदान दिया उनमें प्रोफेसर ईवान शिश्मानोव, प्रोफेसर मिहाइल अर्नाऊदोव, प्रोफेसर स्तेफान म्लादेनोव, प्रोफेसर आतानास बोज्कोव, प्रोफेसर ईवान दूरीदानोव, आदि प्रमुख हैं। उसके बाद हिंदी का पाठ्यक्रम सोफिया विश्वविद्यालय में लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया श्रीमती योरदांका बोयानोवा ने। श्रीमती बोयानोवा ने रूस के लोमोनोसोव मास्को राज्य विश्वविद्यालय से भारत विद्या का अध्यययन किया था। हिंदी के प्रति उनका विशेष लगावरहा है। सन् 1982 से बोयानोवा जी ने हिंदी का अध्यापन आरंभ किया। सोफिया विश्वविद्यालय में 1984 में पूर्वी भाषाओं और संस्कृतियों के केन्द्र में भारत विद्या विभाग की विधिवत स्थापना हुई और बल्गारिया में उच्च शिक्षा के स्तर पर हिन्दी और भारतीय संस्कृति का अध्यापन आरम्भ हुआ। तब से आज तक यह विभाग निरंतर हिंदी भाषा और साहित्य के अध्यापन व प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। पूर्वी भाषा और संस्कृतियों के अध्ययन केंद्र के संस्थापक प्रोफेसर एमिल बोएव ने व्यावहारिक हिंदी के विभिन्न पाठ्यक्रमों को योजनाबद्ध तरीके से लागू करने में बहुत सहायता की थी।

हिंदी के प्रचार प्रसार का जो कार्य यहां शुरू हुआ था उसमें विदेश मंत्रालय के अधिकारी और हिंदी के जानकार द्रागोवेस्त गोरानोव और बोरिस्लाव कोस्तोव ने भी सहयोग किया और अध्यापन कार्य भी किया। वह बाद में स्वयं भारत में बुल्गारिया के राजदूत बनकर गए। यह हिंदी के लिए सम्मान की बात है। क्रमश: यहां अध्यापकों की संख्या बढ़ती गई और हिंदी का अध्यापन सुचारु रूप से आगे बढ़ सका। डाक्टर बोर्याना कामोवा, प्रोफेसर डाक्टर तात्याना एव्तिमोवा, प्रोफेसर डाक्टर मिलेना ब्रातोएवा, सुश्री वान्या गानचेवा, डॉक्टर गलीना सोकोलोवा, श्रीमती वाल्या मारिनोवा, सुश्री नादेज्दा रोजोवा आदि ने भारत विद्या विभाग में न केवल हिंदी का अध्यापन किया बल्कि अनेक भारतीय रचनाओं का अनुवाद भी किया। यहां अध्ययन कर चुके कुछ विद्यार्थी विदेश विभाग में भी काम कर रहे हैं और कुछ हिन्दी अध्यापन का कार्य भी कर रहे हैं। विभाग के अध्यापकों ने बल्गेरियाई विद्यार्थियों के लिए उच्च हिंदी शिक्षण नाम से पुस्तकें भी तैयार की हैं जो विद्यार्थियों के लिए उपयोगी हैं। यहां अध्यापन कर रहे अनेक अध्यापक भारत में किसी न किसी संस्थान या परियोजना के अंतर्गत अध्ययनरत रह चुके हैं। इनमें से अनेक को हिंदी जगत से जुड़े सम्मानों से सम्मानित भी किया जा चुका है। ये अध्यापक देश विदेश में आयोजित होने वाले परिसंवादों और संगोष्ठियों जो हिंदी भाषा और साहित्य से संबंधित होती हैं, में निरंतर भाग लेते हैं और अपने ज्ञान के क्षितिज का विस्तार भी करते चलते हैं।

हिंदी के प्रति और भारत के प्रति इनका जो लगाव है वह अप्रतिम है। इनसे बातचीत कर ऐसा लगता है कि ये जितने बल्गारिया के हैं उतने ही भारतीय मानस के साथ भी एकमेक हैं और भारतीयता तथा भारतीय परंपरा का सम्मान करने के साथ-साथ उनमें रचे बसे भी हैं। वे भारतीय त्योहारों के बारे में विद्यार्थियों को बताते भी हैं और जो त्योहार यहाँ भारतीयों द्वारा मनाए जाते हैं उनमें सम्मिलित भी होते हैं। एक और महत्वपूर्ण बात बल्गारिया में यह भी है कि यहां 40 से अधिक हिंदी फिल्मों का अनुवाद भी हो चुका है और प्रेक्षण भी। हिंदी के अनेक टी.वी.सीरियल यहां आज भी लोकप्रिय हैं जैसे बालिका वधू ,उतरन आदि। बल्गारिया की बुजुर्ग महिलाएं नियमित रूप से इन टीवी सीरियलों को देखती हैं । अनेक नायक, नायिकाएं जो हिंदी सिनेमा के पर्दे पर सक्रिय हैं उनसे यहां के लोग भलीभांति परिचित हैं।

यहां के अध्यापक और विद्यार्थी अध्ययन के साथ-साथ अनुवाद का कार्य भी बड़े मनोयोग से करते हैं। हिंदी की अनेक कविताओं, कहानियों और उपन्यास आदि का बल्गेरियाई भाषा में अनुवाद किया जा चुका है। जिन लेखकों की रचनाओं के अनुवाद किये गए हैं उनमें प्रमुख हैं- प्रेमचंद, निर्मल वर्मा, अज्ञेय, कमलेश्वर, मोहन राकेश आदि। सोफिया विश्वविद्यालय के पूर्वी भाषाओं और संस्कृतियों के केन्द्र के 20 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर 2004 में सोफिया विश्वविद्यालय में एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। इस अवसर पर एक ग्रंथ का प्रकाशन किया गया जिसमें अन्य भाषाओं के साथ अनेक नामचीन भारतीय रचनाकारों की अनूदित रचनाएं सम्मिलित की गईं। इन रचनाकारों में राजेंद्र यादव, केदारनाथ सिंह, कुंवर नारायण, कृष्ण बलदेव वैद, अश्विनी, मंगलेश डबराल, जसवंत सिंह बिरदी, आनंद वर्धन, मुशर्रफ आलम जौकी, हनीफ कुरैशी,हृदय लानी, पूण शर्मा पूर्ण, मेहरुन्निसा परवेज, माझी राय, हरदर्शन सहगल, जितेन ठाकुर, अनीता देसाई आदि सम्मिलित थे। भारत विद्या विभाग ने हिंदी और बल्गारिया भाषा का एक कोष तैयार करने में भी रुचि दिखाई है। इस दिशा में अभी भी निरंतर कार्य जारी है। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा निरंतर हिंदी के अध्यापकों का चयन कर उन्हें विश्व के अनेक देशों में हिंदी के अध्यापन के लिए भेजा जाता है। बल्गारिया का सोफिया विश्वविद्यालय भी इस योजना से लगातार लाभान्वित होता रहा है। यहां अध्यापन करने आए अतिथि प्राध्यापकों ने भी बल्गारियाई रचनाकारों की अनेक रचनाओं का हिन्दी में अनुवाद किया और बल्गारिया को केन्द्र में रखकर और बल्गारिया के विषय में भी लिखा। प्रख्यात बाल साहित्यकार डाक्टर श्रीप्रसाद भी बल्गारिया प्रवास पर आये थे और उन्होंने एक डायरी लिखी ‘बनारस से बल्गारिया- मेरी डायरी’।

सोफिया विश्वविद्यालय में तो हिंदी का अध्यापन होता ही है, यहां 1997 में पूर्व पश्चिम भारत विद्या न्यास की स्थापना भी की गई जिसकी अध्यक्ष योरदांका बोयानोवा हैं। विश्व हिंदी दिवस के आयोजनों में भी पूर्व पश्चिम न्यास का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह न्यास पूरी तरह गैर सरकारी है। इस प्रकार सोफिया विश्वविद्यालय का भारत विद्या विभाग और पूर्व पश्चिम भारत विद्या न्यास निरंतर हिंदी के माध्यम से भारत और बल्गारिया के पारस्परिक सांस्कृतिक और राजनैतिक संबंधों को मजबूत करने में सेतु की भूमिका निभा रहा है। यहां स्थित भारतीय दूतावास नेे भी इस दिशा में सदैव सकारात्मक रुख अपनाया है। भारत विद्या विभाग और भारत के राजदूतावास के सहयोग से एक दीवार पत्रिका ‘मैत्री‘ का शुभारंभ किया गया था जिसके छ: अंक प्रकाशित हुए थे। वर्तमान में भारतीय दूतावास की राजदूत पूजा कपूर हैं जो स्वयं भारत विद्या विभाग के कार्यक्रमों में विशेष रुचि लेती हैं। आगरा स्थित केंद्रीय हिंदी संस्थान में प्रतिवर्ष यहां के विद्यार्थी भारत सरकार की छात्रवृत्ति पर अध्ययन करने के लिए जाते हैं। बल्गारिया में हिंदी के अध्ययन से भारत के प्रति न केवल लोगों की रुचि जागृत हुई है बल्कि वे भारत को निकट सेे जानना और समझना भी चाहते हैं।

(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,वर्धा के पूर्व प्रो-वीसी हैं)

Tags:    

Similar News