India Gives Hope for Future: भविष्य की चुनौती और आशा

India Gives Hope for Future: अभी हाल में बिलगेट्स ने अपने एक लेख ‘‘विश्व को राह दिखाता भारत‘‘ में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बनने के करीब हैं। यहाँ आप व्यापक स्तर पर समस्यायें सुलझायें बिना अधिकांश समस्याओं को सुलझा नहीं सकते। भारत ने यह सिद्ध किया है कि वह बड़ी चुनौतियों का सामना कर सकता है। देश ने पोलियों को जड़ से मिटा दिया है।

Update:2023-04-27 01:49 IST
India Gives Hope for Future (Pic: Social Media)

India Gives Hope for Future: भारत राष्ट्र के अमृतकाल में, यह विषय अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि हमारे समक्ष की चुनौतियाँ व आशा की किरणों के मघ्य हम क्या आकलन वस्तुनिष्ठ तरीके से कर सकते हैं। आज जहाँ विश्व के अनेक हिस्सों में युद्ध ( खासकर रूस-युक्रेन युद्ध), तनाव, आर्थिक संकट आदि हमारे सामने हैं, तो हम एक राष्ट्र के रूप में कौन सी चुनौतियों व कौन सी आशा की किरणों पर ध्यान केन्द्रित करके, भारत के भविष्य को संवार सकते हैं।
अभी हाल में वर्ष 2020 से लगभग ढ़ाई-तीन वर्ष तक पूरा विश्व, एक ऐसी महामारी के प्रकोप से पीड़ित रहा जिससे निपटना विकसित व साधन-सम्पन्न देशों के लिए भी अत्यन्त कठिन रहा था, परन्तु जिस प्रकार का प्रयास, हमारे देश में कोरोना-रोधी टीके को बनाने व उसे इतनी बड़ी जनसंख्या को लगभग शतप्रतिशत मुफ्त लगवाने का कठिन कार्य सम्पन्न हुआ, उससे हमारी छवि तो पूरे संसार के समक्ष अत्यन्त श्रेष्ठ हुई ही, साथ ही साथ, भारतीय जनमानस का अपने ऊपर भरोसा भी बढ़ा। कोरोना काल में भी भारत की आर्थिक वृद्धि संसार के सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में रही।
निश्चिततः स्वामी विवेकानन्द के भारत के भविष्य पर मद्रास (चेन्नेई) में दिए गये व्याख्यान की याद आना स्वाभाविक है। ‘‘ यह वही भारत है, जहाँ के आध्यात्मिक प्रवाह का स्थूल प्रतिरूप उसके बहने वाले समुद्राकार नद है, जहाँ चिरंतन हिमालय श्रेणीबद्ध उठा हुआ अपने हिम शिखरों द्वारा मानो स्वर्गराज के रहस्यों की ओर निहार रहा है।........ यह वही भारत है जो शताब्दियों के आघात, विदेशियों के शत-शत आक्रमण और सैकड़ों आचार-व्यवहारों के विपर्यय सहकर भी अक्षय बना हुआ हैं।.....अवश्य ही यहाँ बीच-बीच में दुर्दशा और अवनति के युग भी रहें हैं, पर उनकों मैं अधिक महत्व नहीं देता। ‘‘इसी अवनति के भीतर से भविष्य का भारत आ रहा है, यह अंकुरित हो चुका है, उसके नए पल्लव निकल चुके हैं।‘‘ स्वामी विवेकानन्द की उपयुक्त दृष्टि हमारी शाश्वत आशा की किरणों के पुंज का स्त्रोत हैं।
जहाँ एक तरफ हमारे पड़ोस के कई देशों में आर्थिक संकट, खाद्यन्न की कमी आदि स्पष्टतः हाल के समय में दिखाई पड़ी हैं, दूसरी ओर हमारें यहाँ कोरोना काल से अभी तक (दिसम्बर 2023 तक) गरीबों को, लगभग 80 करोड़ लोगो को, मुफ्त खाद्यान्न उपलब्धि का नियोजन कोई आसान बात नहीं हैं। आज विश्व भारत को अधिक सम्मान के लायक समझता है। यह आजादी के 75 वें वर्ष में अत्यन्त आशावाद को जन्म देता है।
अभी हाल में बिलगेट्स ने अपने एक लेख ‘‘विश्व को राह दिखाता भारत‘‘ में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बनने के करीब हैं। यहाँ आप व्यापक स्तर पर समस्यायें सुलझायें बिना अधिकांश समस्याओं को सुलझा नहीं सकते। भारत ने यह सिद्ध किया है कि वह बड़ी चुनौतियों का सामना कर सकता है। देश ने पोलियों को जड़ से मिटा दिया है। एच आई वी संक्रमण घटा है। गरीबी में कमी आई है। बाल मृत्युदर घटी है। स्वच्छता और वित्तीय संवाओं का दायरा बढ़ा है। यह कैसे संभव हुआ? भारत ने विश्व को राह दिखाने वाला ऐसा नवाचार वाला तरीका अपनाया, जिनमें सुनिश्चित किया गया कि समाधान उन लोगों तक पहुँचे, जिन्हे उनकी आवश्यकता हैं।...... स्मरण रहें कि दुनिया अन्य देशों की भाँति,भारत के पास भी सीमित संसाधन ही हैं, लेकिन उसने दिखाया है कि इसके बावजूद कैसे प्रगति की जा सकती है।‘‘
अभी कुछ ही दिन पहले अमरीका का प्रसिद्ध बैंक ‘‘सिलिकान वैली बैंक‘‘ के दिवालिया होने का समाचार आया था। उसके बाद ‘‘सिल्वर गेट‘‘ और ‘‘सिगनेचर बैंक‘‘ के भी डूबने, की खबर आयी। विश्व की सबसे बड़ी विकसित अर्थव्यवस्था, अमरीका की आर्थिक आधार शक्ति बैंकिंग सेक्टर की कठिनाइयाँ आगे और भी बढ़ सकती हैं। अभी हाल में, बैंक के प्रदर्शन और क्रेडिट गुणवत्ता के आधार पर, फरवरी 2023 में ‘‘सिलिकान वैली बैंक‘‘ की फोब्स पत्रिका ने 100 सर्वश्रेष्ठ बैंको की तालिका में 20वाँ स्थान दिया था।
परन्तु इसके विपरीत हमारे देश की बैंकिंग व्यवस्था, बहुत हद तक लचीली तथा छोटे-छोटे झटकों को सहने की क्षमता रखती है। अभी आज भी यह समाचार मिला है कि भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास को इन्टरनेशनल पब्लिकेशन सेन्ट्रल द्वारा वर्ष 2023 के लिए ‘‘गवर्नर ऑफ द ईयर‘‘ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह भारत की बैंकिंग व्यवस्था के प्रति हमारे विश्वास को जगाता है। भारत में क्रेडिट कार्ड का ऋण बढ़ने के बावजूद, बैंकों का एनपीए यानी फँसे हुये ऋण की स्थिति, नियन्त्रण में हैं। आरबीआई के नियम, भारतीय बैंको को सुरक्षा चक्र प्रदान करते हैं।
फिर भी, चूँकि विश्व-अर्थव्यवस्था में वित्तीय समस्यायें लगातार बढ़ रहीं है, इसलिए वित्तीय नीति के निर्माताओं, बजट प्रक्रिया निर्माण, योजनाओं के कार्यान्यवन, ऋण की मात्रा, उसके भुगतान की स्थिति, मँहगाई की स्थिति, आदि पर सतर्क दृष्टि रखने की जरूरत सतत रहेगी। राजकोषीय घाटें की मात्रा, उसके पुर्नभुगतान आदि, को सतत रूप से ध्यान में रखना होगा। यद्यपि भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत हद तक खतरें से बाहर है।
भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या पर दो प्रकार की विचार धारायें दिखाई पड़ती हैं । एक तरफ तो भारत की युवा शक्ति, अन्य देशों की युवाओं की जनसंख्या से तुलनात्मक रूप सं ज्यादा हैं । जिसका आर्थिक वृद्धि पर सकरात्मक प्रभाव पड़ता है। परन्तु इसका एक अन्य पहलू भी है। बढ़ती हुई जनसंख्या से, कृषि योग्य भूमि की प्रति व्यक्ति उपलब्धता, निवास के लिए स्थान, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, रोजगार की समस्या, प्रदूषण आदि पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
ऐसी प्रत्याशा है कि कुछ वर्षों में, भारत विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन जायेगा। यद्यपि पिछले दशकों में, जनसंख्या वृद्धि की दर में थोड़ी कमी हुई है, परन्तु यदि समय रहते नियन्त्रण के प्रयास नहीं किए गये तो आने वाले भविष्य में देश की सामाजिक-आर्थिक पर न केवल बड़े दुष्प्रभाव पड़ेगें, वरन् पर्यावरण की दृष्टि से भी भविष्य में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि जब एक बच्चा इस संसार में आता हैं, तो आते ही इस सीमित धरती और पर्यावरण के संसाधनों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दोहन आरंभ हो जाता है।
अब भारतीय जनमानस में चेतना जागृत करने के लिए, सामाजिक स्तर पर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है, जिससे परिवार का आकार संतुलित रखने की प्रवृत्ति बढ़े। परिवार का आकार बहुत बड़ा होने पर , भविष्य में देश के समक्ष संसाधनों की समस्या होगीं । जनसंख्या-वृद्धि दर व देश के संसाधनों के मध्य संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता है, जिससे आने वाली पीढ़ियों का जीवन स्तर, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रौद्योगिकीय उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो।
एक अत्यन्त आशाजनक, भारतीय मॉडल सफलता के कीर्तिमान स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। आज भारत की डिजिटल क्रान्ति की अच्छी शुरूआत हो चुकी हैं । आज भारत की लगभग 80 प्रतिशत आबादी वित्तीय समावेशन प्राप्त कर सकी हैं । वित्तीय लेनदेन से लेकर, पीएफ निकासी, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस व भूमि रिकार्ड सत्यापन जैसी सरकारी सेवाओं का आसान होना हमारी आशा जगाता है। डिजिलाकर जैसी सुविधाओं तक आसान पहुँच से कतार में लगे बिना ही स्कूल व कालेज के अंकपत्र तुरन्त प्राप्त किए जा सकते हैं।
जनधन-आधार- और मोबाइल के बढ़ते प्रचार@प्रसार व उपयोग की क्षमता का परिणाम यह है कि सुपात्र लाभार्थियों को शतप्रतिशत नकदी का अंतरण का लाभ दिया जा रहा है। इससे शासन-प्रशासन में पारदर्शिता बढ़ी है। यूपी आई से सेकेंडों में वित्तीय लेनदेन संभव हुआ है। वर्ष 2022 में (वित्तीय वर्ष) ही 8840 करोड़ रूपये के वित्तीय डिजिटल लेनदेन में, यू पी आई की 52 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। निश्चित तौर पर डिजिटल पब्लिक इन्फ्रस्ट्रक्चर से अधिक पारदर्शी, सक्षम ओर समतापूर्ण समाज बनने में मदद मिलेगी।
जल संरक्षण, एक ऐसा विषय है, जिसपर ध्यान देने की आवश्यकता है। पिछले कुछ वर्षों से वैश्विक स्तर पर पानी की बढ़ती खपत और इस कारण से आसन्न संकट भी विमर्श का विषय बना हुआ है। कुछ विशेषज्ञों का विचार है कि तीसरा विश्वयुद्ध, पानी की कमी के कारण हो सकता है। पूरे विश्व में जितना भूजल प्रतिवर्ष निकाला जाता है, उसका लगभग 25 प्रतिशत भारत ही खर्चता है।
नीति आयोग के अनुसार, भारत के 21 शहरों का भूजल प्रदूषित हो चुका हैं । इसमें दिल्ली-एनसीआर भी शामिल हैं। नोएडा जैसे बड़े शहरों का भूजल स्तर पिछले पाँच वर्ष में करीब 1.5 मीटर नीचे जा चुका है। अगर परिस्थितियाँ नहीं सुधरी तो समस्या गंभीर हो सकती हैं।
इसी समस्या पर दृष्टि डालने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुये भारत सरकार अपनी ‘‘हर घर-नल योजना‘‘ इसी दिशा में प्रयास कर रही है। परन्तु जल संरक्षण का विषय, केवल सरकार के प्रयासों से ही सफलता नहीं वरन् सामाजिक जागरूकता बढ़ाने की भी आवश्यकता है। एक आम भारतीय को यह अवश्य सोचना चाहिए कि वह प्रत्येक दिन कितना पानी खर्च करता है। साथ जल के पुनः उपयोग के प्रयास भी सरकारी व व्यक्तिगत स्तर पर किए जाने की जरूरत है। वृक्षारोपण के द्वारा भी न केवल पर्यावरण में सुधार होगा, वरन् जल संरक्षण में भी मदद मिलेगी। सामाजिक चेतना की जलसंरक्षण हेतु जगाना ही समय की आवश्यकता है।
विश्व अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति में भी, भारत की स्थिति विशेषतः भारत में पूँजी निवेश के लिए बहुत सकारात्मक स्थिति है। यह कोई छोटी बात नहीं हैं कि वर्ष 2021-22 में भारत को रिकार्ड स्पर पर 84 अरब डालर का विदेशी विनिवेश मिला है। जब पूरे संसार में आर्थिक मन्दी का माहौल है। विश्व अर्थव्यवस्था में गिरावट हो रही है, तब विदेशी निवेशकों द्वारा भारत को एफ़डीआई के लिए प्राथमिकता देना भारत के अच्छी खबर है।
भारत का स्टॉक एक्सचेंज फरवरी 2023 में दुनिया के पाँच सबसे बड़े एक्सचेंजों मे चमकता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत के पास, विदेशी मुद्रा भंडार का दुनिया का चौथा सबसे बड़ा स्टाक है। भारत की आर्थिक विकास दर छह प्रतिशत से अधिक के दायरे में है। भारतीय घरेलू बाजार और अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है। भारत दुनिया की पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इन सब से ऐसी आशा करना उचित होगा कि भारत विकसित राष्ट्र बनने की राह पर है।
आर्थिक मोर्चे पर जो संकेत मिल रहे हैं, वे कभी-कभी ऐसे संकेत देते हैं, जिनसे आने वाले समय में चुनौतियाँ बढ़ने के आसार दिखते हैं, तो कुछ सूचक बिन्दु ऐसे हैं, जो आशा भी जगाते हैं। वर्ष 2022-2023 में कुल निवेश का आँकड़ा जीडीपी के 34 प्रतिशत के बराबर पहुँच गया, जो विगत एक दशक में सबसे उच्च स्तर पर है। बेहतर होते बुनियादी ढ़ाँचे से निजी निवेश को भी हौसला मिल रहा हैं । इलेक्ट्रानिक्स और स्टील जैसे क्षेत्रों में आ रही तेजी इसकी पुष्टि करता है।
दैनिक उपभोग की वस्तुओं यथा खाद्यान्नों व दूध की कीमतें बढ़ रही हैं । खासकर मध्यम वर्ग व गरीब वर्ग के आर्थिक हितों पर कठिनाई आने की संभावना दिखती हैं । यूक्रेन युद्ध व मौसम की मार इस कठिनाई को और बढ़ा रही है। इसलिए रिजर्व बैंक व मौद्रिक नीति के सन्दर्भ में गम्भीर चिन्तन की आवश्यकता है। यदि आवश्यक हो तो अर्थव्यवस्था के लिए कड़वी दवा की भी आवश्यकता है। यह ध्यान देने योग्य विषय है।
कुछ सकारात्मक समाचार भी आशा जगाते हैं। अभी हाल में जम्मू-कश्मीर में खोजे गये लीथियम का भंडार हमारे इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण को सस्ता बनायेगा। लीथियम का उपयोग प्रतिदिन इस्तेमाल होने वाले मोबाइल की बैटरी बनाने में होता है। अगर जम्मू-कश्मीर में पाये गये, लीथियम के उपयोग में हम सफल रहे तो इलेक्ट्रिक वाहनों की मैन्युफ़ैक्चरिंग में शीर्ष स्थान पर पहुँच सकते हैं। भारत में हाल में खोजे गये लीथियम का अनुमानित भण्डार 59 लाख टन है।
वर्ष 2022 में, भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा वाहन बाजार बन गया है। चीन और अमेरिका के बाद, भारत की यह स्थिति हमारे आर्थिक भविष्य की उम्मीद सकारात्मक रूप से जगाती है।
भारत में लोकतंत्र की परम्परा, हजारों वर्षों की परम्परा रही है। हमारे यहाँ सहयोग, समन्वय एवं सहअस्तित्व पर आधारित, सांस्कृतिक विचार-प्रवाह व जीवन दर्शन से हुआ है। श्रुति, स्मृति, पुराण महाकाव्यों आदि में जन, प्रजा, गण, कुल, ग्राम, सभा, समिति, परिषद, संघ, निकाय जैसे अनेक शब्द मिलते हैं।
वैदिक साहित्य का अध्ययन करने पर, दो प्रकार की गणतंत्रात्मक व्यवस्थायें दिखाई पड़ती हैं। एक-जिसमें राजा निर्वाचित किया जाता था। दूसरा-जिसमें राज्य की शक्ति, सभा या परिषद में निहित होती थी। वैदिक काल में राजा का निर्वाचन, समिति में एकत्र होने वाले लोगो द्वारा किया जाता था। समिति, सार्वजनिक कार्यों को सम्पादित करने वाली संस्थाओं में प्रमुख थीं । यह जन सामान्य का प्रतिनिधित्व करती थी। यही सभा समिति के अधीन कार्य करती थी। समिति और सभा की सदस्यता, जन्म के बजाय, कर्म के आधार पर होती थी।
महाभारत व रामायण में ऐसे अनेक उल्लेख हैं, जिसमें राजा के निर्णय की प्रक्रिया में प्रजा की राय तथा जनपद के प्रतिनिधियों के परामर्श की महती भूमिका रहती थी। राजा दशरथ व कुलगुरू वशिष्ठ, भावी राजा राम को उपदेश देते हैं कि प्रजा के हित की निरंतर चिन्ता करनी है, मंत्रियों, सेनापतियों तथा अधिकारियों से निरन्तर विचार-विमर्श, राजा के प्रमुख कर्त्तव्य होते हैं। रामायण के बालकाण्ड के सातवें सर्ग में राजा दशरथ के यशस्वी होने का कारण, राज्य के मंत्रिमण्डल की सहभागिता थी।
महाभारत के शांति पर्व के अध्याय 107-108 में गणराज्यों की विशषताओं का विस्तृत विवरण मिलता है। इसमें कहा गया है कि जब एक गणतंत्र के लोगों में एकता होती है तो वह शक्तिशाली हो जाता है। और उसके लोग समृद्ध हो जाते हैं। ..इसी पर्व में पितामह भीष्म, युधिष्ठिर को लोककल्याणी राज्य की स्थापना का उपदेश देते हुये कहते हैं कि राजा को प्रजा के हित की रक्षा एवं धर्म का अनुसरण करना चाहिए तथा उसे सभासदों, व प्रजाजनों के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए।
अर्थात पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में लोकतंत्र के तत्व अत्यन्त मजबूती से थे। हाँ, मध्यकाल के पहले, मध्यकाल व आगे के काल, जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से पुनः प्रस्फुटित हुई। हाँ हजार वर्षों की गुलामी के काल में, हमारी लोकतंत्रात्मक मूल्यों पर चोट की गई थी। फिर भी वह आज जागृत है।
भूतकाल के गर्भ में ही, भविष्य के बीज होते हैं। स्वतंत्रता के 75 वे वर्ष तक भारत में न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व को स्थापित करने में खासी सफलता दिख रही है।
व्यक्ति से ही समाज का निर्माण होता है, परन्तु संस्थाओ की भूमिका भी समाज-निर्माण में महत्वपूर्ण होती है। यह बात धीरे-धीरे समाज में विकसित हो रही है।
भारत राष्ट्र का अत्यन्त गौरवशाली इतिहास रहा है। हमें अपने उज्जवल भविष्य के लिए आर्थिक, समाजिक प्रयासों के साथ-साथ सामंजस्य व बन्धुत्व को और भी विकसित करने की महती आवश्यकता हैं। आज हमारे पास अत्यन्त महत्वपूर्ण मानव पूँजी हैं, जिसका उपयोग हमें विवेकपूर्ण दृष्टि रखना होगा।
भारतीय संस्कृति में अनेकता में एकता मूलतः निहित है। हमारी युवा पीढ़ी को यह जानने की आवश्यकता है कि वे उन मनीषियों की पवित्र भूमि पर जन्म लिए हैं, जिन्होने समस्त मानवता को संदेश दिया है। अथर्ववेद के पृथ्वी-सूक्त में कहा गया है- ‘‘माता-भमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः‘‘ अर्थात भूमि माता है, मैं उनका पुत्र हूँ। ऐसी संकल्पना ही भारत को राष्ट्र के रूप में साकार करती है। हमारी मातृभूमि की सुगंध विशिष्ट प्रकार की है। पृथ्वी से उत्पन्न इस गंध की राष्ट्रीय विशेषता हैं।
हमें अपनी युवा पीढ़ी को राष्ट्र के मूल संस्कारों से जोड़ने में और सार्थक प्रयास करें तो हमारा भविष्य उज्जवल व आशा से भरा होगा।
( लेखक भारतीय रेल सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व प्राध्यापक रहे हैं। )

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