India - Taliban Dialogue : शुभ है भारत-तालिबान संवाद
India - Taliban Dialogue : भारत सरकार और तालिबान के बीच संवाद कायम होना चाहिए।
India - Taliban Dialogue : मुझे खुशी है कि कतर में नियुक्त हमारे राजदूत दीपक मित्तल (Deepak Mittal) और तालिबानी नेता शेर मुहम्मद स्थानकजई (Sher Muhammad Sthanakzai) के बीच दोहा में संवाद स्थापित हो गया है। भारत सरकार और तालिबान के बीच संवाद कायम हो, यह बात मैं बराबर पिछले एक माह से लगातार लिख रहा हूं और हमारे विदेश मंत्रालय से अनुरोध कर रहा हूं। पता नहीं, हमारी सरकार क्यों डरी हुई या झिझकी हुई थी। तालिबान शासन के बारे में जो शंकाएं भारत सरकार के अधिकारियों के दिल में थीं और अब भी हैं, बिल्कुल वही शंकाएं पाकिस्तानी सरकार के मन में भी हैं। इसका अंदाज मुझे पाकिस्तान के कई नेताओं और पत्रकारों से बातचीत करते हुए काफी पहले ही लग गया था।
आज उन शंकाओं की खुले-आम जानकारी पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के बयान से सारी दुनिया को मिल गई है। कुरैशी ने कहा है कि वे तालिबान से आशा करते हैं कि वे मानव अधिकारों की रक्षा करेंगे। अंतरराष्ट्रीय मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करेंगे। पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने तो यहां तक कह दिया है कि पाकिस्तान अकेले ही तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देगा। उन्होंने साफ - साफ कहा है कि अफगान सरकार को मान्यता देने के पहले वह क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय जगत के रवैए का भी ध्यान रखेगा। पाकिस्तान सरकार का यह आधिकारिक बयान बड़ा महत्वपूर्ण है।
यदि आज के तालिबान पाकिस्तान के चमचे होते तो पाकिस्तान उन्हें 15 अगस्त को ही मान्यता दे देता और 1996 की तरह सउदी अरब और यूएई से भी दिलवा देता। लेकिन उसने भी वही बात कही है, जो भारत चाहता है यानी अफगानिस्तान में अब जो सरकार बने, वह ऐसी हो, जिसमें सभी अफगानों का प्रतिनिधित्व हो। पाकिस्तान को पता है कि यदि तालिबान ने अपनी पुरानी ऐंठ जारी रखी तो अफगानिस्तान बर्बाद हो जाएगा। दुनिया का कोई देश उसकी मदद नहीं करेगा। पाकिस्तान खुद आर्थिक संकट में फंसा हुआ है। पहले से ही 30 लाख अफगान वहां जमे हुए हैं। यदि 50 लाख और आ गए तो पाकिस्तान का भट्ठा बैठते देर नहीं लगेगी।
पाकिस्तान के बाद सबसे ज्यादा चिंता किसी देश को होनी चाहिए तो वह भारत है, क्योंकि अराजक अफगानिस्तान से निकलने वाले हिंसक तत्वों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ होने की पूरी आशंका है। इसके अलावा भारत द्वारा किया गया अरबों रुपये का निर्माण-कार्य भी अफगानिस्तान में बेकार चला जाएगा। इस समय अफगानिस्तान में मिली-जुली सरकार बनवाने में पाकिस्तान भी जुटा हुआ है । लेकिन यह काम पाकिस्तान से भी बेहतर भारत कर सकता है क्योंकि अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में भारत की दखंलदाजी न्यूनतम रही है जबकि पाकिस्तान के कई अंध-समर्थक और अंध-विरोधी तत्व वहां आज भी सक्रिय हैं। भारत ने दोहा में शुरुआत अच्छी की है। इसे अब वह काबुल तक पहुंचाए।