गुड़ भरा हंसिया: न निगलते बन रहा है और न ही उगलते!

Update:2017-12-15 16:18 IST

आलोक अवस्थी

राजधानी का विवाद न हो गया गुड़ भरा हसिया हो गया... न निगलते बन रहा है और न ही उगलते! इसी ऊहापोह में निकल गया विधानसभा का दो दिन का शीत सत्र, मामला जहां का जहां। मुख्यमंत्री कहते हैं थोड़ ठहरिये। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय कहते हैं कि किसी भी कीमत पर हम दो-दो राजधानियां नहीं बनने देंगे तो बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने पर कटिबद्ध हैं।

गजब तो यह है कि जिनके विधानसभा अध्यक्ष रहते गैरसैंण में विधान भवन का निर्माण शुरू हुआ वही गोविंद कुंजवाल साहब फरमा रहे हैं कि जब भराडीसैंण में एक सत्र ही चलाना है तो इसकी जरूरत क्या है? अरे महाराज आपने अपने कार्यकाल में जब बिना सदन को भरोसे में लिए निर्माण कार्य शुरू कराया था तो तब आपका ज्ञान कहां विश्राम कर रहा था... दीक्षित आयोग की रिपोर्ट जो पूरी तरह से वैज्ञानिक आधार पर गैरसैंण को अयोग्य घोषित कर चुकी थी तो उसे आपने पढऩा जरूरी क्यों नहीं समझा।

दरअसल आप न तो वर्तमान में जीते हैं न इतिहास से सबक लेकर उस पर अमल की हिम्मत जुटा पाते हैं। जैसे पूर्व प्रधानमंत्री और किसान नेता चौधरी चरण सिंह ने कहा था कि जो नेता सही बात को सही और गलत बात को अस्वीकार करने की हिम्मत नहीं रखता है वो नेता नहीं होता!! तब तो आप पर राजनीति सवार थी। अब आपके ज्ञानचक्षु कुछ और बयान कर रहे हैं। यही हाल बीजेपी का है... एन.जी.टी. के बिना परमीशन बनती हुई विधान भवन की बिल्डिंग को आप भी गला बजाते हुए देखते हैं... कितना पैसा बरबाद हुआ है, है कोई इसका हिसाब!! न सड़क है, न रेल है, न पानी है, कुछ है तो बेसिरपैर की राजनीति...।

अब आप इसी गैरसैंण की विधान सभा में एक कानून बना कर ला रहे हैं आप, जिसमें ‘पहाड़ी क्षेत्र’ जिसे उत्तराखंडी सजा मानते हैं को ‘दुर्गम’ कहा जाता है। इसके अलावा राज्य के लोगों के तबादलों को लेकर ‘स्थानांतरण विधेयक’ पास कराया जा रहा है!! राजनीति करनी है तो करो न ‘दुर्गम’ स्थानों को सुविधा देने की...कि पहाड़ का कर्मचारी भी वहां जाने के लिए लालायित हो सके!! सारी ऊर्जा नारे लगाने में लुटाई जा रही है। एक भी नई ‘पर्यटन टाउन’ तक तो बना नहीं सके। तीर्थ स्थलों का क्या हाल!

तीर्थस्थलों का हाल यह है कि एक बार जो चला जाए, वो हाथ जोड़ ले। और सचमुच गैरसैंण की चिंता है तो पहले उसे एक टाउन की तरह तो विकसित कीजिए... रही बात जनभावनाओं की तो इस बार हिम्मत कर के उत्तराखंड की जनता के बीच एक सर्वे करवा लीजिए होश ठिकाने आ जाएंगे... लेकिन मुश्किल तो यही है कि सबने मिलकर गैरसैंण को खिलौना बना दिया है... आओ दाजू, आओ भाई जी खेलें... वो भी सिर्फ दो बार एक बार गरमियों में और एक बार सर्दियों में... बाकी दिन तो फिर वही... कितने दिन चलेगा ये मुख्यमंत्री... और कौन बनेगा मुख्यमंत्री!!

(संपादक उत्तराखंड संस्करण)

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