फुटबाल नहीं, बम का गोला हो! मोहन बागान बनाम ई. बंगाल !!
मोहन बागान से हमदर्दी इसलिए भी हुई क्योंकि वह केवल दस खिलाड़ियों के बल पर खेली। अनिरुद्ध थापा को 62वें मिनट में मैच से बाहर किए जाने के बाद मोहन बागान के बाकी मुकाबला दस खिलाड़ी ही बचे थे।
यदि पर्व छठी का हर्षोल्लास और तेरहवीं का रंजोगम एक साथ देखना हो तो कोलकाता के विवेकानंद युवा भारतीय क्रीड़ांगन (साल्ट लेक) में दिखेगा। खासकर जब फुटबॉल का डूरंड कप फाइनल होता है। विशेषतया जब प्रतिस्पर्धी टीमों का उद्वेग और उत्साह अधिक देखना हो तो मोहन बगान और ईस्ट बंगाल की भिड़ंत हो। यह मुकाबला परसों (3 सितंबर 2023) हुआ था। दोनों पुराने लड़ाइयों की 22 वर्ष बाद आमने-सामने टक्कर हुई थी। जीजान से प्रत्येक खिलाड़ी खेला था। करीब दो दशकों बाद मोहन बगान ने खिताब हासिल किया। भले ही मात्र एक गोल की विजय से। दोनों चिर-प्रतिद्वंद्वी भावना और तनाव से भरे थे। खेल के मैदान में तो दोनों में आपसी प्रतियोगी भावना उभरी। मगर दर्शक पूर्णतया विभाजित थे। मानो रणयुद्ध हो रहा हो। पराजित ईस्ट बंगाल-समर्थक नम नेत्रों से थे। कई तो आंसू पोछ रहे थे। इतना तादात्म्य ? अपार सहानुभूति! मानो खुद खिलाड़ी हों, मैदान में।
Also Read
उन्माद तब बढ़ गया जब मोहन बागान की ओर से एक गोल कर दिया गया। गोल किया 31-वर्षीय ऑस्ट्रेलियन पेशेवर फुटबॉलर दिमित्रियोस पेट्राटोस जो इंडियन सुपर लीग क्लब मोहन बागान एसजी के लिए फॉरवर्ड के रूप में खेलते हैं। पेट्राटोस यूनान के हैं। एक फुटबॉल परिवार से आते हैं। उनके पिता एंजेलो सिडनी ओलंपिक एफसी के लिए एक डिफेंडर के रूप में खेलते थे। उनकी छोटी बहन पानायियोटा पहले 2021 में न्यूकैसल डब्ल्यू-लीग टीम के लिए खेलती थीं। उनके छोटे भाई माकी न्यूकैसल के लिए खेलते थे। उनकी सबसे छोटी बहन अनास्तासिया वर्तमान में सिडनी ओलंपिक एफसी में खेल रहे हैं।
मोहन बागान से हमदर्दी इसलिए भी हुई क्योंकि वह केवल दस खिलाड़ियों के बल पर खेली। अनिरुद्ध थापा को 62वें मिनट में मैच से बाहर किए जाने के बाद मोहन बागान के बाकी मुकाबला दस खिलाड़ी ही बचे थे। हालांकि पेट्राटोस ने 71वें मिनट में एकल प्रयास से गोल दागकर मोहन बागान को बढ़त दिलाई जो निर्णायक साबित हुई। इस दौरान ईस्ट बंगाल के गोलकीपर प्रभसुखन सिंह गिल मूकदर्शक ही बने रह गए। यह मोहन बागान का 17वां डूरंड कप खिताब है।
इस पूरी प्रतिस्पर्धा में बड़ी याद आई सिक्किमी गोलंदाज बाईचुंग भूटिया की। भारतीय फुटबॉल में वे वही थे जो ध्यानचंद हॉकी में और तेंदुलकर क्रिकेट में रहे। बाईचुंग स्ट्राइकर के रूप में खेलते थे। फुटबॉल में उनकी शूटिंग कौशल की वजह से उन्हें अक्सर “सिक्किमी स्निपर” नाम दिया जाता है। भूटिया को "भारतीय फुटबॉल के लिए भगवान का उपहार" बताया जाता है। वे पहले भारतीय खिलाड़ी थे जिन्होंने तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थन में ओलंपिक मशाल-रिले का बहिष्कार किया। भारतीय फुटबॉल में अपने योगदान के लिए भूटिया के नाम पर एक फुटबॉल स्टेडियम है। उन्होंने अर्जुन पुरस्कार और पद्मश्री जैसे कई पुरस्कार भी पाये हैं।
मोहन बागान का पिछला डूरंड कप ख़िताब 2000 में आया था। उन्होंने 2004, 2009 और 2019 के फाइनल में जगह बनाई थी, लेकिन तीनों मौकों पर हार का सामना करना पड़ा। साल 2004 के फाइनल में वे ईस्ट बंगाल से 2-1 से हार गए थे। मोहन बागान और पूर्वी बंगाल के बीच प्रतिद्वंद्विता "कोलकाता डर्बी" एक शताब्दी से चल रही है, और यह अब भी उतनी ही तीव्र है जितनी तब थी। मोहन बागान और ईस्ट बंगाल के बीच प्रतियोगिता की जड़ें न केवल भारत में खेले जाने वाले फुटबॉल के खेल में बल्कि वहां रहने वाले लोगों की संस्कृति और इतिहास में भी गहरी हैं।
डूरंड कप फाइनल की खेल भावना देखकर नाज होता है कि भारतीय खिलाड़ियों में बड़ी मात्रा में उदारता, सहानुभूति और उत्सर्ग की भावना झलकती है। स्वार्थ तो कतई नहीं। यदि यही खेल भावना सियासत में हो तो भारत की विकास गति ज्यादा तेज होगी। खेल जगत से एक उदहारण। उस दिन 7 फरवरी 1999 में फिरोजशाह कोटला मैदान (दिल्ली) में पाकिस्तान से भारत का क्रिकेट मैच हुआ। इतिहास सिर्फ यही बताएगा कि अनिल राधाकृष्ण कुम्बले नामक लेग स्पिनर ने दसों विकेट लेकर एक विश्व रिकार्ड रचा था। मगर इतिहास में शायद दर्ज नहीं हुआ होगा कि जवागल श्रीनाथ, सदगोपन रमेश और कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन ने कितना उत्सर्ग किया, अपने हित का मोह छोड़ा और साथी कुम्बले को इतिहास-पुरुष बनाया। जब कुम्बले ने नौ विकेट ले लिए थे तो मत्सर भावना इन सबको पीड़ित कर सकती थी, डाह जला सकती थी। श्रीनाथ अपना बारहवां ओवर, 2436वीं गेंद, फेंक रहे थे। यह उनके जीवन की कठिनतम घड़ी रही होगी। वह अपना 341वां विकेट सुगमता से ले सकते थे।
बल्लेबाज भी कमजोर वकार युनुस था। वह गेंद तो तेज फेंक सकता था मगर गेंद ठीक से खुद खेल नहीं सकता था। सधे हुए गेंदबाज श्रीनाथ ने दो गेंद ऐसी फेंकी ताकि युनुस के आस-पास तक उसका टिप्पा भी न पड़े। वेस्टइंडीज से आए अम्पायर स्टीव बकनौर ने दोनों को वाइड बाल करार दिया। कप्तान अज़हर ने श्रीनाथ के कान में फुसफुसा दिया था कि विकेट मत लेना ताकि अनिल कुम्बले दस विकेट लेने का कीर्तिमान रच सके। वकार युनुस ने एक कैच भी दिया, मगर सद्गोपन रमेश ने उसे लेने की कोशिश तक नहीं की। लक्ष्य था कि कुम्बले की घातक गेंद से वकार युनुस को आउट किया जा सके। कोटला मैदान में कुम्बले की मदद करना सभी दसों खिलाड़ी अपना धर्म मान रहे थे। फिर आया कुम्बले का सत्ताईसवां ओवर। अब तक वह अपनी लैंथ और लाइन काफी सुधार चुका था। शार्टलैंथ गेंद से बल्लेबाज़ को भांपने और खेलने के क्षण कम मिलते हैं। अपने ऊंचे कद का लाभ लेते हुए, हाड़तोड़ मेहनत करते हुए अनिल ने अपनी कलाई का करिश्मा दिखाया। कालजयी प्रदर्शन किया। ऐतिहासिक क्षण आया जब कप्तान वसीम अकरम ने कुम्बले की गेंद को हिट किया| मगर वह शार्ट लेग पर लक्ष्मण की हथेली में समा गई। उसका यह 234वां, कोटला मैदान में इकत्तीसवां विकेट था। कुम्बले ने इतिहास रच डाला। साथियों की बदौलत। तो ऐसी होती है, खेल में उत्सर्ग की भावना।