काबुलः पाक आगे, भारत पीछे चले

अफगानिस्तान में इस्लामी अमीरात या तालिबान का राज कायम होना न तो दक्षिण एशिया के लिए अच्छा है और न ही पाकिस्तान के लिए

Written By :  Dr. Ved Pratap Vaidik
Published By :  Suman Mishra | Astrologer
Update: 2021-05-17 03:24 GMT

सांकेतिक तस्वीर (साभार-सोशल मीडिया)

यदि जर्मनी के अखबार 'डेर स्पीगल' में छपी यह खबर सही है तो मानकर चलिए कि अब अफगानिस्तान  ही नहीं, पूरे दक्षिण एशिया के अच्छे दिन आने ही वाले हैं। जो बात मैं पिछले 25-30 साल से अफगानिस्तान ( Afghanistan) और पाकिस्तान (Pakistan ) के प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों से कहता रहा हूं, उसके परवान चढ़ने के लक्षण अब दिखाई पड़ने लगे हैं। तीन दिन पहले मैंने लिखा था कि पाकिस्तान के सेनापति क़मर जावेद बाजवा अचानक काबुल क्यों पहुंच गए हैं।

अब मालूम पड़ा है कि वे अशरफ गनी और डाॅ. अब्दुल्ला की सरकार से तलवार भिड़ाने नहीं, हाथ मिलाने गए हैं। बाजवा ने अफगान नेताओं से कहा है कि अफगानिस्तान में इस्लामी अमीरात या तालिबान का राज फिर से कायम होना न तो दक्षिण एशिया के लिए अच्छा है और न ही पाकिस्तान के लिए। पाकिस्तान के सबसे शक्तिशाली आदमी के मुंह से अगर यह बात निकली है तो इससे अधिक खुशी की बात क्या हो सकती है। पाकिस्तान की छत्रछाया में ही तालिबान आंदोलन पनपा है।

1983 में जब मैं पहली बार पेशावर के जंगलों में मुजाहिदीन नेताओं से मिला था तो वह मुलाकात राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक के कहने से ही हुई थी। उन्हीं में से कई तालिबान नेता बन गए। अब पाकिस्तान में तरह-तरह के तालिबान हैं। कोई क्वेटा शूरा है, कोई पेशावर शूरा है और कोई मिरानशाह शूरा है। अफगानिस्तान में भी तालिबान के कई स्वायत्त गिरोह हैं। मेरी अफगानिस्तान और पाकिस्तान-यात्राओं के दौरान इन तालिबानियों से मेरा बराबर संपर्क बना रहा है।

सांकेतिक तस्वीर (साभार-सोशल मीडिया)


1999 में हमारे अपहत जहाज को कंधार से छुड़वाने में भी इन तालिबान और मुजाहिदीन नेताओं ने हमारी मदद की थी। वे मूलतः भारत-विरोधी नहीं हैं। वे पाकिस्तान के कारण अभी भारत का विरोध करते रहे हैं। वे स्वायत्त और स्वेच्छाचारी हैं। वे सत्ता में आते ही पाकिस्तान के 'पंजाबी राज' को धता बता सकते हैं। पाकिस्तान को यह बात समझ में आ गई है। इसीलिए काबुल की जो गनी-सरकार एकदम भारतपरस्त लग रही थी, अब पाकिस्तान उससे संबंध सुधार रहा है।

अशरफ गनी ने भी साफ़-साफ़ कहा है कि अफगानिस्तान में शांति रहेगी या अराजकता, यह पाकिस्तान के हाथ में है। यह बात मैं अपने प्रधानमंत्रियों से पिछले 40 साल से कहता रहा हूं। यदि भारत पाकिस्तान को आगे करे और खुद पीछे चले तो अफगानिस्तान को दोनों राष्ट्र मिलकर दक्षिण एशिया का स्विटरजरलैंड बना सकते हैं। मुझे खुशी है कि भारत और पाकिस्तान के अफसर गोपनीय तौर पर इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। दोनों देशों के गुप्तचर विभाग दुबई आदि शहरों में गुपचुप मिल रहे हैं।

भारत कश्मीर पर बात करने से मना नहीं करेगा और पाकिस्तान भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया के राष्ट्रों तक पहुंचने के लिए थल मार्ग उपलब्ध कराएगा। यदि ऐसा हो जाए तो अगले दस वर्षों में दक्षिण एशिया यूरोप से भी अधिक संपन्न हो सकता है। मुझे ऐसा लगता है कि यदि भारत और पाकिस्तान मिलकर अफगान-संकट को हल कर लें तो कश्मीर का मसला तो अपने आप ही हल हो जाएगा।

(लेखक, पाक—अफगान मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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