Krishna Janmashtami 2023: मौलाना हसरत मोहानी का श्रीकृष्ण प्रेम

Krishna Janmashtami 2023: मौलाना हसरत मोहानी ने ये तब लिखा जब सन् 1923 ई मे जन्माष्टमी पर मथुरा में श्रीकृष्ण के दर्शन को हाजिर न हो सके थे।

Update:2023-09-06 15:28 IST
Krishna Janmashtami 2023 (photo: social media )

Krishna Janmashtami 2023: "हसरत" की भी कबूल हो, मथुरा में हाजिरी... सुनते है आशिको पे, तुम्हारा करम है आज। मौलाना हसरत मोहानी ने ये तब लिखा जब सन् 1923 ई मे जन्माष्टमी पर मथुरा में श्रीकृष्ण के दर्शन को हाजिर न हो सके थे। ये सब हसरत मोहानी की श्रीकृष्ण के प्रति अद्भुत भक्ति करने व साधक होने का प्रमाण है।

मौलाना हसरत मोहानी के मुताबिक उनके यहाँ इस्लाम के बुजुर्गों के अतिरिक्त जिसका नाम बार बार आया है वह नाम है " श्रीकृष्ण जी का है "। वह लिखते है - " श्रीकृष्ण के बाब में फकीर अपने पीर और पीरो के पीर हजरत सय्यदाना अब्दुल रज्जाक बांसवी रहमतउल्ला के मसलके आशिकी का पैरव है "। उनका कहना था कि कुरान शरीफ में वर्णन है कि अल्ला ने दुनिया के हर हिस्से मे हादी ( पैगम्बर ) सही रास्ता बताने के लिए भेजे है। हिन्दुस्तान में वो श्रीकृष्ण को ' श्रीकृष्ण जी महराज अलैहिस्लाम पैगम्बरे हिन्दुस्तान' कहते थे और यही वजह है कि करीब करीब हर साल जन्माष्टमी के दिन मथुरा जाकर कृष्ण जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते थे। वह बरसाना, नन्दगाँव और मथुरा बराबर जाया करते थे। हजरत सय्यद अब्दुल रज्जाक बांसवी के सम्बंध मे हसरत के परिवार के एक सदस्य ने लिखा-

मोरा प्यारा कन्हैया विराजत है, मोहे बृज भई बांसा नगरी,

वाकी चौखट मै पलकन झाडूं, जहाँ सीस धरे दुनिया सारी।

हसरत मोहानी साहब भी लिखते है-

विरह की मारी निपट दुखयारी,

ताकन कबलग दूर से नइया

पार उतार पिया से मिलाओ,

रज्जाक पिया बांसेनगर के बसइया

बांसेनगर के फिरंगी महल के,

एकई नाम के दुई दुई कन्हैया

रज्जाक, वहाब पिया बिन हसरत,

हमरी व्यथा काहे कौन सुनइया।

मौ.हसरत मोहानी ने श्रीकृष्ण जी पर अवधी और उर्दू दोनों में शायरी की है-

विरह की रैन कटे न पहाड़,

सूनी नगरिया पड़ी है उजाड़

निर्दयी श्याम परदेस सिधारे,

हम दुखयारिन छोड़ छाड़ |

उर्दू शायरी मे यों कहा है ...

बरसाना और नन्दगांव मे भी,

देख आये है जलवा किसी का

पैगामे हयाते जावेदां था,

हर नगमा कृष्ण बांसुरी का

वह 'नूरे सियाह' था कि हसरत,

सरचश्मा फरोगे आगही का।

( नूरे सियाह - श्रीकृष्ण जी के श्याम रंग का प्रतीक है )

फिर कहा है कि --

मथुरा नगर है आशिकी का,

दम भरती है आरजू उसी का

हर जर्रा सर जमीने गोकुल ,

वारा है जमाले दिलबरी का |

एक जगह और भी लिखते हैं हसरत साहब --

मन तोसे प्रीत लगाई कन्हाई,

काहू और की सुरति अब काहे को आई

तन मन धन सब वार के हसरत

मथुरा नगर चली धूनी रमाई।

मौलाना हसरत मोहानी के तीन 'एम' मशहूर थे। एक एम मक्का, दूसरा एम मथुरा और तीसरा एम मास्को। हसरत मोहानी ने मक्का जाकर 12-13 बार हज किया। प्रत्येक जन्माष्टमी व अन्य अवसरो पर मथुरा जाते थे। मक्का उनका विश्वास, मथुरा से उन्हें मोहब्बत और मास्को को राजनीतिक रुप से आवश्यक समझते थे। उनका इस्लाम पर पक्का विश्वास था लेकिन दूसरो के विश्वास और धर्म का आदर हसरत साहब करते थे। तीन एम से उनका हिन्दुस्तानी मुसलमानों को संदेश है कि वो अपने ईमान पर कायम रहते हुए हिन्दुस्तान की परम्पराओ से जुड़े रह सकते है और साथ मे समाजवाद के द्वारा ही वो मानवता की सेवा कर सकते है। मौ. हसरत मोहानी साहब को मोहन (श्रीकृष्ण ) की प्रिय बांसुरी को बजाना भी प्रिय था वैसे वो सितार भी बजाते थे। मौलाना हसरत मोहानी साहब लीडर होने के साथ साहित्य व पत्रकारिता के मानक भी बने, आजादी की लड़ाई मे उनका अहम रोल रहा वह संविधान निर्मात्री सभा के भी सदस्य रहे।

हसरत साहब का बकलम खुद का परिचय

दरवेशी ओ इंकलाब मसलक है मेरा,

सूफी मोमिन हूँ इश्तिराकी मुस्लिम

(लेखक: अनूप कुमार शुक्ल, कानपुर इतिहास समिति के महासचिव हैं)

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