Lok Sabha Election Result 2024: अयोध्या की दर्दनाक पराजय, उत्तर प्रदेश में खिसकती जमीन और भाजपा

Lok Sabha Election Result 2024: लोकसभा चुनाव के नतीजे इस बात के भी संकेत दे रहे हैं कि कई बड़े मुद्दों पर बीजेपी को अपने ही वोटर्स की नाराजगी झेलनी पड़ी। अग्निवीर और पेपर लीक जैसे मुद्दे साइलेंट तौर पर बीजेपी के खिलाफ काम करते रहे।

Written By :  Sanjay Tiwari
Update:2024-06-04 20:42 IST

अयोध्या की दर्दनाक पराजय, उत्तर प्रदेश में खिसकती जमीन और भाजपा: Photo- Newstrack

Lok Sabha Election Result 2024: लोकसभा चुनाव के परिणाम लगभग आ ही गए हैं। इस बार 400 पार के नारे के साथ शुरू हुए भाजपा और एनडीए के प्रचार के बाद अत्यंत विपरीत आए परिणाम ने बहुत चौंकाया है। सबसे दर्दनाक पराजय अयोध्या की सीट पर दिख रही है जिसके बल से ही भाजपा का राजनीतिक ग्राफ इतना ऊपर आया था। अयोध्या के अलावा प्रयागराज की सीट भी भाजपा हार चुकी है। काशी में प्रधानमंत्री की जीत केवल जीत भर ही है। लखनऊ जैसी सीट पर राजनाथ सिंह जैसे राष्ट्रीय नेता की विजय भी केवल विजय ही है। गांधीनगर से अमित शाह की विजय वास्तव में बड़ी दिख रही है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्य नाथ जैसे विराट हिंदू चेहरे के नेतृत्व में भाजपा का लगभग आधी सीटों पर सिमट जाना गंभीर लगता है।

 400 पार का आंकड़ा नहीं हुआ पूरा 

अभी पूरे परिणाम आने बाकी हैं लेकिन अनेक स्थानों पर अच्छी जीत पाकर भी भाजपा केवल उत्तर प्रदेश में इतना पिछड़ गई है कि उसको 272 का आंकड़ा भी नहीं मिल पा रहा है। यह परिणाम निश्चित रूप से विश्लेषण और मंथन तलाश रहा है। एक जून की शाम को एग्जिट पोल के नतीजे आने शुरू हुए तो किसी को अंदाजा नहीं था कि एग्जिट पोल में बीजेपी और एनडीए को ऐसा परिणाम मिलेगा। ज्यादातर एग्जिट पोल ने एनडीए को 350 से ऊपर सीटें दी। कई एग्जिट पोल के नतीजों में तो एनडीए को 400 का आंकड़ा छूते हुए बताया गया। ठीक इसी तरह तीन दिन बाद आए चुनाव नतीजों ने भी अब हर किसी को हैरान कर दिया है। अभी तक की मतगणना के आंकड़े देखें, तो बीजेपी को बहुत बड़ा झटका लगता हुआ नजर आ रहा है। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में बीजेपी बुरी तरह पिछड़ रही है। दूसरी ओर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी सहित विपक्ष के कई दलों ने जबरदस्त वापसी की है।

एक तथ्य तो स्पष्ट है कि केवल मोदी मैजिक के सहारे रहना भाजपा के लिए बहुत भारी पड़ा है। पिछले दो महीनों में बीजेपी और एनडीए में उसके सहयोगी दलों का चुनाव प्रचार देखें, तो एक बात साफ तौर पर नजर आती है कि इन्होंने केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा। चुनावी रैलियों और सभाओं में पार्टी के छोटे-बड़े सभी नेता स्थानीय मुद्दों से बचते हुए नजर आए। पूरा प्रचार केवल और केवल पीएम मोदी के करिश्मे पर टिका था। बीजेपी के प्रत्याशी और कार्यकर्ता भी जनता से कनेक्ट नहीं हो पाए, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा। दूसरी तरफ, विपक्ष लगातार महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों के जरिए सरकार के प्रति नाराजगी को जोर-शोर से उठाता रहा।

अग्निवीर और पेपर लीक का मुद्दा 

एक और भी बड़ा कारण रहा है बीजेपी के पारंपरिक मतदाताओं की नाराजगी। लोकसभा चुनाव के नतीजे इस बात के भी संकेत दे रहे हैं कि कई बड़े मुद्दों पर बीजेपी को अपने ही वोटर्स की नाराजगी झेलनी पड़ी। अग्निवीर और पेपर लीक जैसे मुद्दे साइलेंट तौर पर बीजेपी के खिलाफ काम करते रहे। वोटर्स के बीच सीधा संदेश गया कि सेना में चार साल की नौकरी के बाद उनके बच्चों का भविष्य क्या होगा? पेपर लीक के मुद्दे पर युवाओं की नाराजगी को समझने में बीजेपी ने चूक की। पुलिस भर्ती परीक्षा के मुद्दे पर यूपी के लखनऊ में हुआ भारी विरोध प्रदर्शन इसका गवाह है। पार्टी के नेता ये मान बैठे थे कि केवल नारेबाजी से वो अपने समर्थकों और वोटर्स को खुश कर सकते हैं।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि 400 सीट लेकर संविधान बदलने और आरक्षण खत्म कर देने के विपक्ष के नरेटिव ने काफी हद तक आरक्षित और दलित वर्ग को इंडी गठबंधन से जोड़ लिया। महंगाई के मुद्दे ने इस चुनाव पर बहुत ही गहरा असर डाला। पेट्रोल-डीजल से लेकर खाने-पीने की चीजों पर लगातार बढ़ रही महंगाई ने सरकार के खिलाफ एक माहौल पैदा किया। विपक्ष इस मुद्दे के असर को शायद पहले ही भांप गया था, इसलिए उसने हर मंच से गैस सिलेंडर सहित रसोई का बजट बढ़ाने वाली दूसरी चीजों की महंगाई को मुद्दा बनाया। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने बढ़ती महंगाई के लिए आर्थिक नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कई बार प्रधानमंत्री मोदी पर सीधा हमला बोला।

दूसरी तरफ, बीजेपी नेता और केंद्र सरकार के मंत्री महंगाई के मुद्दे पर केवल आश्वासन भरी बातें करते हुए नजर आए। इस लोकसभा चुनाव में बेरोजगारी के मुद्दे ने एक बड़े फैक्टर के तौर पर काम किया। विपक्ष ने हर मंच पर सरकार को घेरते हुए बेरोजगारी के मुद्दे पर जवाब मांगा। यहां तक कि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में वादा कर दिया कि अगर उनकी सरकार केंद्र में बनती है, तो तुरंत 30 लाख सरकारी नौकरियां दी जाएंगी। मंगलवार को घोषित चुनाव नतीजे साफ तौर पर संकेत दे रहे हैं कि राम मंदिर, सीएए लागू करने की घोषणा और यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसे मुद्दे भी बीजेपी को बेरोजगारी के खिलाफ बने माहौल के नुकसान से नहीं बचा पाए।

बीजेपी से नाराज क्यों हुए मतदाता 

बीजेपी को इस चुनाव में स्थानीय स्तर पर भी भारी नाराजगी झेलनी पड़ी। कई सीटों पर टिकट बंटवारे की नाराजगी मतदान की तारीख तक भी दूर नहीं हो पाई। कार्यकर्ताओं के अलावा सवर्ण मतदाताओं का विरोध भी कुछ सीटों पर देखने को मिला। कुल मिलाकर कहा जाए तो बीजेपी इस चुनाव में केवल उन मुद्दों के भरोसे रही, जो आम जनता से कोसों दूर थे।

यहां एक बहुत बड़ा कारण रहा लगातार सांसद रह चुके चेहरों को ही फिर से उतार देना। इन चेहरों को जनता बिलकुल भी देखना नहीं चाहती थी लेकिन कई ऐसे थे जो दो से तीन बार या उससे भी अधिक टर्म सांसद रह चुके थे और उनकी स्थिति क्षेत्र में बिल्कुल अलोकप्रिय रही। इधर मौसम की तल्खी ने अलग से सबको उदासीन कर दिया। सरकार, संगठन और कार्यकर्ता के बीच ठीक से समन्वय इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि सभी अतिविश्वास में थे।

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