महाराणा प्रताप, योगी आदित्यनाथ और महानता

महाराणा का जीवन जनजीवन का प्रतीक है। जितनी जनस्वीकार्यता महाराणा प्रताप को मिली उतनी किसी अन्य को नहीं मिली। कहा जाता है कि समान गुण धर्म के लोगों को समान गुण धर्म के लोग पसंद आते हैं तो निश्चय ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की महाराणा प्रताप को महान मानने की अवधारणा सही है।

Update:2020-05-09 12:43 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

आज महाराणा प्रताप की जयंती है। महाराणा प्रताप का संघर्ष, हर उस सच्चे और निष्ठावान व्यक्ति का संघर्ष है जो हमें सच्चे अर्थों में हमें मनुष्य होने के गौरव का अहसास कराता है। इसीलिए जब जब किसी चीज से मानव अस्तित्व को खतरा होता है तब तब सहज महाराणा प्रताप की याद आने लगती है। आज कोरोना संकट में जब संपूर्ण मानव जाति भयभीत है तब अजेय से दिखने वाले कोरोना को हराने के लिए महाराणा प्रताप की अकबर के खिलाफ अपनाई गई युक्तियां हमारे सामने आ जाती हैं।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महाराणा प्रताप को महान मानते हैं। लेकिन महाराणा प्रताप क्यों महान थे। वो कौन से मानवीय गुण थे जिन्होंने उन्हें महान बनाया। इस पर जब एक नजर डालते हैं तो महाराणा प्रताप का पूरा चरित्र हमारे सामने सजीव हो उठता है।

क्या है मानव धर्म

दरअसल जब हम कहते हैं कि हर व्यक्ति या वस्तु का अपना धर्म होता है। जैसे सूरज का गर्मी देना, चांद का शीतलता देना, नदियों का बहना, आग का जलाना, चिड़ियों का चहचहाना लेकिन मनुष्य या मानव का धर्म क्या है। मानव धर्म क्या है। मानव धर्म है मानवीय मूल्यों और जन पक्षधरता के निकट होना। हम जितने इनके निकट होंगे उतना ही महानता के करीब। महाराणा प्रताप अपने इन्हीं गुणों के कारण महान हुए।

आज जब ये कहा जाता है कि लोग समर्थ व्यक्ति के ही पीछे खड़े होते हैं लेकिन महाराणा प्रताप के पीछे पूरा मेवाड़ क्यों खड़ा था जबकि प्रताप की वजह से पूरा मेवाड़ उजड़ गया था, सालों तक वहां अन्न का दाना नहीं उपजा। फिर भी मेवाड़ ने राणा प्रताप का साथ क्यों नहीं छोड़ा।

दलित चेतना के उन्नायक

ये महाराणा प्रताप का ही साहस था कि अछूत माने जाने वाले दलित धांगर बिरादरी के लोगों को अपनी सेना में शामिल किया और सेना की अगली कतार में चलने का गौरव भी दिया। बावजूद इसके वह राजपूत बिरादरी के कोप का शिकार नहीं हुए। किसी ने उन्हें अपने धर्म से बाहर नहीं निकाला। जबकि महाराणा की यह पहल किसी भी वंचित समुदाय को योद्धा बनाने की युगांतकारी पहल थी। जनपक्षधर्ता की दृष्टि से ये राणा प्रताप की बहुत बड़ी पहल थी।

दूसरे महाराणा प्रताप ने अपने बचपन से ही भीलों को हमेशा सम्मान दिया। ऐसा नहीं है कि उस समय के समाज में बुराइयां नहीं थीं या जातीय शिष्टाचार नहीं था। लेकिन प्रताप ने इन सभी को दरकिनार कर भीलों के साथ एक पंगत में बैठकर भोजन करके पूरे समाज को नई दिशा दी।

भीलों की स्वामी भक्ति

यही कारण है कि महाराणा प्रताप को भीलों की स्वामी भक्ति मिली। भीलों का शौर्य मिला। और यह सब राणा प्रताप के समतामूलक विचारों से ही संभव हुआ। इतना ही नहीं मुगलों से युद्ध में पूरी जिंदगी लगाने देने के बावजूद सामाजिक समरसता और सौहार्द की दिशा में एक कदम आगे बढ़ते हुए महाराणा प्रताप ने अफगान पठान हकीम खां सूर के दल को अपने हरावल दस्ते की कमान सौंपी। ये कुछ ऐसे गुण हैं जो महाराणा प्रताप को महान बनाते हैं।

जीवन परिचय पर एक नजर

वैसे महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 में हुआ था। महाराणा प्रताप का नाम प्रताप सिंह था। वह मेवाड़ के 13वें राजा थे। देश के उत्तर पश्चिम में स्थित मेवाड़ आज कल राजस्थान राज्य का हिस्सा है। महाराणा प्रताप का जन्म हिंदू राजपूत फैमिली में हुआ था।

प्रताप के पिता का नाम राजा उदय सिंह था और मां का नाम जयवंता बाई था। शक्ति सिंह, विक्रम सिंह और जगमाल सिंह प्रताप के छोटे भाई थे। चांद कंवर और मन कंवर उनकी दो सौतेली बहनें थीं। उनका विवाह बिजौलिया की अजाबदे पुंवर से हुआ था। 1572 में राजा उदय सिंह के निधन के बाद रानीधीर बाई अपने बेटे जगमाल सिंह को प्रताप की जगह राजा बनाना चाहती थीं लेकिन राजा उदय सिंह के सलाहकारों ने बड़े पुत्र के रूप में प्रताप को तरजीह दी। उनका निर्णय ही स्वीकार्य हुआ।

अकबर ने किया था गुणगान

ये तो महाराणा प्रताप का एक संक्षिप्त परिचय हुआ अब बात करते हैं राणा प्रताप महान क्यों कहलाए। ऐसे क्या कार्य थे जिनके चलते वह उस समय के विजेता अकबर पर भारी पड़ते थे। खुद अकबर उनका गुणगान करता था। अकबर ने भी कहा था कि देशभक्त हो तो ऐसा हो।

अकबर ने कहा था, 'इस संसार में सभी नाशवान हैं। राज्य और धन किसी भी समय नष्ट हो सकता है, परंतु महान व्यक्तियों की ख्याति कभी नष्ट नहीं हो सकती। पुत्रों ने धन और भूमि को छोड़ दिया, परंतु उसने कभी अपना सिर नहीं झुकाया। हिन्द के राजाओं में वही एकमात्र ऐसा राजा है जिसने अपनी जाति के गौरव को बनाए रखा है।'

महाराणा को नहीं मंजूर था सर झुकाना

हालांकि 1568 में चित्तौड़गढ़ की खूनी लड़ाई में मेवाड़ को अपने उपजाऊ पूर्वी इलाके खोने पड़ गए थे फिर भी जंगलों से घिरा यह पहाड़ी राज्य अभी भी राणा के नियंत्रण में थे। उधर मुगल सम्राट अकबर मेवाड़ के रास्ते गुजरात के लिए एक सुरक्षित रास्ता हासिल करने पर आमादा था। जब 1572 में प्रताप सिंह को राजा (राणा) का ताज पहनाया गया, तो अकबर ने कई दूतों को भेजा।

अकबर राणा प्रताप सिंह को भी इस क्षेत्र के कई अन्य राजपूत सरदारों की तरह एक जागीरदार बना देना चाहता था। लेकिन राणा प्रताप को यह मंजूर नहीं था उन्होंने अकबर के समक्ष व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने से भी इनकार कर दिया। अकबर को यह नागवार गुजरा और युद्ध के हालात बन गए।

हल्दी घाटी का युद्ध

हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 को आमेर के मान सिंह प्रथम के नेतृत्व में महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं के बीच हुआ। इस युद्ध में कौन हारा कौन जीता इतिहास इस पर साफ नहीं है। कहते हैं इस युद्ध के नतीजों से सम्राट अकबर बहुत नाराज हुआ था। और इस युद्ध के सेनापतियों को अगले छह माह तक दरबार से बाहर कर दिया था। यदि अकबर जीता होता तो अपने सेनापतियों को इनाम देता न कि सजा।

हल्दी घाटी के इस युद्ध में का मैदान राजस्थान के राजसमंद के गोगुन्दा के पास हल्दीघाटी में एक संकरा पहाड़ी दर्रा था। महाराणा प्रताप लगभग 3000 घुड़सवारों और 400 भील धनुर्धारियों के साथ युद्ध के मैदान में उतरे। जबकि मान सिंह के पास लगभग 5000-10,000 की सेना थी। छह महीने से अधिक समय तक चले भयंकर युद्ध के बाद, हताश निराश मुगल सेना इस घेराबंदी को खत्म कर वापस लौट गई थी। इसी वजह से मुगलों की हल्दीघाटी की जीत को निरर्थक कहा जाता है, क्योंकि वे महाराणा प्रताप, या उनके किसी करीबी परिवार वाले को पकड़ने में असमर्थ रहे थे।

जंगलों से करते रहे युद्ध की तैयारी

उधर महाराणा प्रताप जंगलों में युद्ध की तैयारी करते रहे जैसे ही अकबर का ध्यान उत्तर-पश्चिम में हटा, प्रताप और उनकी सेना छिपकर बाहर आ गई और अपने प्रभुत्व के पश्चिमी क्षेत्रों को छीन लिया। कहते हैं 1579 के बाद बंगाल और बिहार में हुए विद्रोह और पंजाब में मिर्जा हाकिम के आक्रमण के बाद मुगलों का ध्यान मेवाड़ पर से हट गया था।

1582 में, महाराणा प्रताप ने देवर (या डावर) को कब्जे में लिया। इसके बाद मेवाड़ से सभी 36 मुगल सैन्य चौकियों को खत्म कर दिया। इस हार के बाद, अकबर ने मेवाड़ के खिलाफ अपने सैन्य अभियानों को रोक दिया। जेम्स टॉड ने "मेवाड़ के मैराथन" के रूप में वर्णन करते हुए कहा है कि देवर की जीत महाराणा प्रताप के लिए एक शानदार गौरव थी।

जनजीवन का प्रतीक महाराणा

1585 में, अकबर लाहौर चला गया और अगले बारह वर्षों तक उत्तर-पश्चिम की स्थिति देखता रहा। इस मौके का लाभ उठाकर महाराणा प्रताप ने कुंभलगढ़, उदयपुर और गोगुन्दा सहित पश्चिमी मेवाड़ को पुनः जीत लिया। इस अवधि में उन्होंने आधुनिक डूंगरपुर के पास एक नई राजधानी चावंड का निर्माण भी किया। लेकिन सबको साथ लेकर वह निरंतर चलते रहे।

महाराणा का जीवन जनजीवन का प्रतीक है। जितनी जनस्वीकार्यता महाराणा प्रताप को मिली उतनी किसी अन्य को नहीं मिली। कहा जाता है कि समान गुण धर्म के लोगों को समान गुण धर्म के लोग पसंद आते हैं तो निश्चय ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की महाराणा प्रताप को महान मानने की अवधारणा सही है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

 

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