Modi Government 8 Years: अब बात जब भी होगी बेंचमार्क मोदी का ही होगा
Modi Government 8 Years: यह मोदी के इमरजेंस का ही नतीजा है कि सभी राजनीतिक दल के नेता मंदिर दर्शन करते देखे जा सकते हैं। हनुमान चालीसा व दुर्गासप्तशती का पाठ नेता करने लगे हैं।
Modi Government 8 Years: किसी भी कालखंड में कोई भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र को प्रभावित करता है, तो समय के सापेक्ष उसका मूल्यांकन ज़रूरी हो जाता है। समय के साथ मूल्यांकन की यह सापेक्षता वर्तमान व भविष्य के संदर्भ में होती है, होनी चाहिए। उस तराज़ू पर हम अगर नरेंद्र मोदी ( PM Narendra Modi) के व्यक्तित्व व कृतित्व को रख कर तोलें तो दो सवाल उठते हैं। पहला, नरेंद्र मोदी राजनीति (PM Modi Politics) में नहीं होते तो क्या करते? दूसरा, नरेंद्र मोदी के बाद उनका मूल्यांकन कैसा होगा? कैसा किया जाना चाहिए? हालाँकि फ़ौरी तौर पर इसकी जगह लोग यह सवाल रख देते हैं कि नरेंद्र मोदी के बाद कौन? लेकिन हमें लगता है कि यह एक अनावश्यक सवाल है। क्योंकि मैं यक़ीन करता हूँ- "कल और आयेंगे नग़मों की बीती कलियाँ चुनने वाले, मुझसे बेहतर कहने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले।" एक बात और कहना मेरे लिए ज़रूरी हो जाता है कि मूल्यांकन की इस प्रकिया में आँकड़ों की घटत बढ़त या फिर लोगों को मिलने वाली भौतिक सुविधाओं के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। जगह केवल उसे मिलना चाहिए जिससे समाज का मन बदला हो, रहन सहन बदला हो, आचार विचार बदला हो।
अब हमें दूसरे सवाल पर ज़िक्र करना ज़रूरी हो जाता है। क्योंकि मोदी ने न केवल देश के राजनीति की दशा व दिशा बदली बल्कि लंबे समय से चली आ रही तुष्टिकरण की राजनीति को गये दिनों की बात साबित कर दिया। खजूर खिलाकर फ़ोटो खिंचवाना व दुपल्ली टोपी पहनने की नेताओं की हिम्मत थक गयी दिखती है।
बदल गई राजनीति
यह मोदी के इमरजेंस का ही नतीजा है कि सभी राजनीतिक दल के नेता मंदिर दर्शन करते देखे जा सकते हैं। हनुमान चालीसा व दुर्गासप्तशती का पाठ नेता करने लगे हैं। त्रिपुंड लगाये दिखने में गौरव समझने लगे। सरकारी खर्च पर रोज़ा इफ़्तार बंद हो गया है। यह सब करना मोदी के लिए मजबूरी व ज़रूरी दोनों हो उठा था, क्योंकि गोधरा की प्रतिक्रिया मं गुजरात में जो कुछ हुआ उसके बाद मोदी राजनीतिक रूप से अस्पृश्य बनाये जाते रहे। इसने मोदी को दृष्टि दी कि क्या केवल अस्सी फ़ीसदी के बदौलत देश की राजनीति नहीं की जा सकती है?
मोदी चुनौतियों को अवसर में बदलने में माहिर हैं। इसलिए इसे भी उनने चुनौती माना। इतनी बड़ी चुनौती को अवसर में कुछ ऐसा बदला कि हिंदी पट्टी की पार्टी पैन इंडिया पार्टी बन बैठी। भाजपा शहरों से गाँव तक पहुँची। अपने बूते पर सरकार बनाने कीं हैसियत में आ गयी। अस्सी फ़ीसदी वाले मतदाताओं को शक्ति हासिल हुई। देश की धारा मुड़ गयी। यदि लोकतंत्र पर विश्वास किसी का शेष हो तो इस नई धारा का केवल विरोध ही नहीं करेगा। विरोध व समर्थन के साथ चलेगा। पर यदि लोकतंत्र पर विश्वास नहीं है तो कोई बात नहीं। मोदी यह सब और इतना बड़ा परिवर्तन कैसे कर पाये यह देखना बहुत ज़रूरी हो जाता है।
मोदी जनता की चाहत, परेशानी, आकांक्षाएँ व उम्मीदें भाँपने में माहिर हैं। मोदी अवसर पैदा करते हैं। मोदी कौतुक खड़ा करते हैं। आकर्षण पैदा करते हैं। संकट के बादलों के बीच मोदी आशा का सूरज उगा लेते हैं। मोदी का लक्ष्य भेदी व्यक्तित्व है। वे अनुपम साहसी हैं। मोदी ख़ासे आस्तिक हैं। उनकी भगवान में बड़ी आस्था है। भूमिगत रह कर लोकतंत्र के लिए आंदोलन चलाने का कार्य मनुष्य से साहस और धीरज की माँग करता है। मोदी ने यह किया था। इस लिए उनमें साहस व धीरज की कमी नहीं रही।
मोदी वज्र संकल्पी हैं। परिस्थितियों से दो दो हाथ करना उनका शग़ल है। वह घुटने टेकने की जगह परिस्थितियों को मोड़ने में यक़ीन करते हैं। इसलिए वाकओवर कभी नहीं देते हैं। यही वजह है कि संघर्ष उनके जीवन का सहज स्वभाव बन गया है। लक्ष्य प्राप्ति के लिए ख़तरा मोल लेना उनकी आदत है। मोदी सटीक उपमाएँ देने के लिए जाने जाते हैं। जीएसटी के लिए उपमा देते हैं आप आँख के डॉक्टर के पास आँख चेक कराने जाते हैं। तो चश्मे का नंबर बदल कर नया नंबर डालता है। तो दो चार दिन आपको चश्में को एडजेस्ट करने में लगता है। सीएम - को कामन मैन कहते हैं मोदी। वह कहते हैं - स्किल , स्केल व स्पीड बढ़ाना ज़रूरी है। एक ही धर्म - राष्ट्र प्रथम। एक ही सोच - भारतीय सोच। एक ही ग्रंथ - संविधान । एक ही शक्ति - जन शक्ति । एक ही कार्य शैली - सबका साथ, सबका विकास। मिनिमम गवर्मेट, मैक्सिमम गवर्नेंस आदि मोदी के भाषणों में आने वाले सिलोगी हैं। प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी ने इस बात का ध्यान रखा है कि कब क्या कहेंगे। वह प्रतीकों व देह भाषा का ख़ासा ख़्याल रखते हैं। टीम बिहाइंड मोदी हमेशा इस बात के लिए काम करती है कि कब कहाँ क्या बोलना है।
समयबद्ध व लक्षबद्ध काम करना आदत
मोदी में विजन व लक्ष्य को लेकर अर्जुन की तरह एकाग्रता है। समयबद्ध व लक्षबद्ध काम करना उनकी आदत है। मोदी लोगों की बात पर कान नहीं देते । लक्ष्य में लगे रहते हैं। मोदी अनुशासन आग्रही हैं। उनमें आशावाद कूट कूट कर भरा हुआ हैं। उनमें अपने सपनों को धरातल पर उतारने की उत्कृष्ट इच्छा है। धन के प्रति अनुराग न होना उन्हें दूसरे नेताओं से विलग करता है। वह भी तब जब धन राजनीति का हिस्सा हो। वाद विवाद की स्थिति में मोदी मौन धारण करने के क़ायल हैं। आडवाणी ने मोदी के बारे में कहा कि मैं मोदी के दो गुणों से प्रभावित हूँ - कल्पना और नवीनता।
मोदी एक ज़िद्दी राजनेता हैं। मोदी के पास विरोधियों के चालों की सधी काट होती है। मोदी रेजिमेंटेड हैं। अपने उद्देश्य वह किसी की परवाह किये बिना प्राप्त करते हैं। मोदी बेपरवाह नेता हैं। वह परवाह किसी की नहीं करते हैं। मोदी बयार नहीं सुनामी, आई तो जीते। इसलिए राजनीति में ज़ीरो नहीं होंगे। मोदी दुविधा में रहने के आदि नहीं हैं। वे हमेशा एक पक्ष चुनते हैं। आम तौर पर फ़िलिस्तीन के सरोकारों को नैतिक समर्थन एक दुविधा पैदा करता है। पर मोदी ने उसका पक्ष चुना। वह रमल्ला नहीं गये। फ़िलिस्तीनी भावनाएँ आहत न हों , इसका ख़्याल रखा।
मोदी भारत के पहले अस्पृश्य नेता हैं। वह अपनी बिरादरी, अपनी पार्टी, कथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों व मीडिया के लिए अस्पृश्य रहे हैं। मोदी मीडिया को न्यूज़ ट्रेडर्स कहते हैं। उन्हें मीडिया से परहेज़ है। माकपा सांसद ए पी अब्दुल कुट्टी को मोदी की प्रशंसा के लिए पार्टी से निकाला गया। कांग्रेसी सांसद विजय दर्डा ने एक शेर मोदी के लिए क्या कहा कि उन्हें कांग्रेस पार्टी को सफ़ाई देनी पड़ी। जब अमेरिका मोदी का वीज़ा रद कर रहा था उसी कालखंड में अमेरिकी सांसद फालेओमवेगा ने मोदी के बारे में हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स में कहा," मोदी एक असाधारण दूर दृष्टि और नेतृत्व वाले नेता हैं। इसे देखते हुए अमेरिका की सरकार को उनका समर्थन करना चाहिए।" मोदी राजनीतिक बिरादरी में हमेशा अंडर रेट लीडर रहे हैं।
मोदी भाषण से पहले अभ्यास करते हैं। उनकी स्मृति इतनी अच्छी है कि बड़ा से बड़ा पाठ कंठस्थ करने में उन्हें कोई परेशानी नहीं होती। ज़्यादा वक्त नहीं लगता।
पढ़ना व तैरना मोदी का शौक़ है। मोदी के घनिष्ठ दोस्त का नाम जसूद खान था। अपना काम करा लेने की ज़िद मोदी में बचपन से है। मोदी का वैवाहिक जीवन वनवास का है। मोदी के गाँव जो भी बाहर से जाता रहा है। मोदी को सूचना मिल जाया करती थी। यह मोदी के तंत्र को समझने के लिए ज़रूरी है।
मोदी दृढ़ राजनीतिक शैली के धनी
मोदी के मन में यह बात नहीं रही कि उन्हें क्या बनना है। उनके मन में हमेशा यह रहा कि उन्हें कुछ बनना है। मोदी दृढ़ राजनीतिक शैली के धनी हैं। आलोचनाओं से लाभ उठाने की उनकी क्षमता बोजोड़ है। सोहराबुद्दीन इनकाउंटर को मोदी के खिलाफ हथियार बनाया गया पर मोदी ने पलटकर उसे रख दिया। उन्होंने आरोपों से लाभ उठाने का हुनर गुजरात के मुख्यमंत्री काल में ही विकसित कर लिया था। उन्हें चुनौतियों को अवसर में बदलने की महारत हासिल है। तभी तो सोनिया गांधी ने अपने एक भाषण में मोदी को मौत का सौदागर कहा तो उसे उन्होंने वह चुनाव जीतने का हथियार बना लिया। मोदी अपने भाषणों में राहुल, सोनिया, मनमोहन का नाम तब भी लेते थे, जब गुजरात में मुख्यमंत्री थे। मोदी बनाम कांग्रेस की लड़ाई को पहले उन्होंने कांग्रेस बनाम करोड़ों गुजरात वासियों में तब्दील कर दिया। बाद में उसे अस्सी फ़ीसदी हिंदू बनाम बीस फ़ीसदी तुष्टिकरण की लड़ाई बना दिया। यही नहीं, अहमदाबाद में हुए दंगों के बाद जब मोदी केंद्रीय जाँच एजेंसियों को झेल रहे थे तब उन्होंने यह कह कर, अगर मोदी ने अपराध किया हो तो उसे फाँसी पर चढ़ा दो, पूरा जनमानस लूट लिया। 2002 के सांप्रदायिक दंगों के लिए माफ़ी न माँगने के लिए जनता ने मोदी को सराहा। दुपल्ली टोपी पहनने से इनकार और रोज़ा इफ़्तार से खुद को दूर रह कर मोदी हिंदू गौरव बन बैठे। मोदी मुसलमान शब्द के उच्चारण से बचते रहते हैं। वाइब्रेंट गुजरात में हिस्सा लेने आये पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल को मोदी ने विनम्रतापूर्वक वापस कर दिया। कराची चेंबर्स ऑफ कामर्स के प्रतिनिधिमंडल को अहमदाबाद घूमने तक की इजाज़त नहीं दी। मोदी राजनीति की इन व्याख्याओं के रूप में उभरे। मणिशंकर अय्यर ने ज्यों ही मोदी को चाय वाला कहा उन्होंने चाय पर चर्चा करा डाला। मोदी तेल का कारोबार करने वाले घांची जाति के हैं। मोदी ने पिछड़ी जाति का होना, चाय बेचने का कारोबार करना इसे अपनी ताक़त बनाया।
मोदी घोर आशावादी हैं, अनथक श्रम उनके निराशा को आशा में बदलने का एक बड़ा हथियार रहता है। मोदी ने खुद को आशावादी बनाया। क्योंकि उनका मानना है कि आशावादी व्यक्ति ही आशा का संचार कर सकता है। इच्छा शक्ति, परिश्रम व ईमानदारी उनके जीवन के ऐसे टूल हैं, जो उनकी असफलता को सफलता में बदलते हैं, असफलता के कुछ छोटे मोटे वाक़ये भी उन्हें जनता का सहानुभूति का पात्र बनाते हैं। जनता से जोड़ते हैं। मोदी प्रयोगधर्मी हैं, अपनी प्रयोगधर्मिता के लिए वह अपनी साख को भी दांव पर लगाने से नहीं चूकते हैं। वह रिस्क लेने के आदी हैं, जोखिम हद तक लेते हैं। कई बार उनके विजयी होने की वजह उनका जोखिम होता है। जब मोदी को प्रचार प्रमुख बनाया गया तब वह चाहते तो उसे स्वीकारते पर उसे स्वीकारने के साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने के जोखिम की तरफ़ अपना कदम बढ़ाया। वह भी तब जबकि दो से 188 सांसदों तक भाजपा को पहुँचाने वाले लालकृष्ण आडवाणी पिछले लोकसभा चुनाव में चेहरा बनकर पराजय झेल चुके थे। मोदी किसी भी योजना के लिए योजना के हित ग्राहियों की भागीदारी को अपरिहार्य मानते हैं। केवल सरकार के भरोसे उसे छोड़ने पर यक़ीन नहीं करते हैं। इसी के साथ मोदी अपने सपनों को पूरा करने का ज़िम्मा केवल नौकरशाही पर नहीं छोड़ते। पर उसकी उपयोगिता को कभी अस्वीकार भी नहीं करते। मोदी समस्याओं के व्यवहारिक समाधान की ओर यात्रा करना पसंद करते हैं। मोदी किसी समस्या को हल करने से पहले उसके मूल कारण पर ध्यान देते हैं, मूल कारण का वह अध्ययन करते हैं। वैसे तो सार्वजनिक जीवन में आरोप लगना एक पेशागत जोखिम है। पर मोदी पर इससे आगे बढ़ते हैं। मोदी किसी काम को मनोबल से बड़ा नहीं मानते हैं। तभी तो संसाधनों से काफ़ी बड़ा और विराट लक्ष्य तय करते हैं। तभी तो मोदी वाली भाजपा आज ज़्यादा मज़बूत है। बैसाखी पर नहीं है। मोदी के पास कार्यकर्ता हैं। संसाधन हैं। मीडिया है। प्रोपोगंडा राजनीतिज्ञ हैं। मोदी गांधी व पटेल के समुच्चय हैं।
मोदी मल्टी टास्कर नहीं हैं। वह सपनों को धरती पर उतारने के क़ायल हैं। कर्तव्य पर चलने के समर्थक हैं। मोदी ने जातियों के विभाजन की सारी रेखाएँ ढहा दी हैं। उन्होंने अमीर व गरीब के बीच रेखा खींची है। इंदिरा गांधी के ग़रीबी हटाओ का टेक ऑफ हैं मोदी।
वोट बैंक की राजनीति शब्द का चलन समाजशास्त्री एमएन श्रीनिवासन ने किया। मोदी का मानना है कि वोट बैंक की राजनीति तब उभरती है जब राजनैतिक दल अपने खुद के संकीर्ण राजनैतिक उद्देश्यों के लिए इन अंतर्भूत विभाजन का ग़लत ढंग से फ़ायदा उठाते हैं। हालाँकि राजनीति में ध्रुवीकरण के मोदी क़ायल हैं। वे मानते हैं कि लोकतंत्र की शक्ति आलोचनाओं में हैं। पर खुद आलोचनाएँ उन्हें अंदर तक भेद डालती हैं। हालाँकि उनके जीवन में प्राय: आलोचना व आरोप की सीमा रेखा समाप्त करने से कोई गुरेज़ नहीं किया गया। मोदी आधे पत्रकार हैं। सूचनाएँ एकत्र करने, कराने एवं उन पर त्वरित टिप्पणियाँ देने में माहिर हैं। मोदी दबाव महसूस नहीं करते । न अपने लोगों का, न परिस्थितियों का। अपने लोगों के कहे पर वही करते हैं, जो उनको जँचता है। मोदी जानबूझकर गलती किसी के लिए नहीं करते। इसकी वजह उनका बहुत ही विरोधी होना है। भाषणों व बातों में भावनात्मक मुद्दों की जगह अवधारणाएँ परोसते हैं। प्रबल आशावादी होने के साथ ही साथ वे यथार्थवादी व आशावादी भी हैं। मोदी के पास विचारों का अकूत भंडार है। फिर भी जनता से विचार आयातित करते हैं। मोदी वर्तमान धर्मनिरपेक्षता को पक्षपात उत्पन्न करने वाला मानते हैं। मोदी का आधुनिकतावाद भारतीय परंपराओं से उपजी है।
मोदी के राजनीतिक उभार में संयोगों का ख़ास असर है। इसे भाग्य भी कह सकते हैं। 2000 में गुजरात में भूकंप नहीं आते तो वह मुख्यमंत्री नहीं बनते। मोदी केशुभाई पटेल को हटाकर सीएम बने। 4 अक्टूबर, 12 बजे दिन में मोदी को मुख्यमंत्री बनने की सूचना मिली। जब वह दाह संस्कार में थे। गोधरा नहीं होता तो वह चर्चा में नहीं आते। 27 फ़रवरी, 2002 गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगा दी गयी। 59 कारसेवक मारे गये। परिणाम स्वरूप अहमदाबाद सहित पूरे गुजरात में भयानक दंगे हुए। इन दंगों में सरकार रहते चुप्पी ओढ़ लेने का मोदी पर आरोप लगा। जाँच एजेंसियाँ व अदालतें उनके पीछे पड़ गयीं। लेकिन मोदी को मध्य व उत्तर गुजरात में दंगों से फ़ायदा हुआ। हिंदुत्व वादी नेताओं को नरेंद्र मोदी में उम्मीद दिखी। मोदी मुस्लिम विरोध के ठोस आधार व चेहरा बन कर उभरते चले गये। मोदी राज के दस बारह वर्षों में गुजरात पर मानसून की बहुत कृपा रही । संयोग या भाग्य का ही परिणाम कहा जायेगा कि मोदी पहली बार मुख्यमंत्री व पहली बार ही प्रधानमंत्री बने। मोदी सियासत के ऐसे नेता हैं, जिन्हें कभी टिकट माँगना ही नहीं पड़ा। वह हमेशा टिकट देने व दिलाने की भूमिका में रहे।
विकास मॉडल
गुजरात के विकास मॉडल पर मोदी के धुर विरोधी भी उनकी काट नहीं देख पाते हैं। पानी बचाने के लिए मोदी ने परियोजनाएँ चलाईं। मोदी ने विकास की पंचामृत योजना - ज्ञान, जल, ऊर्जा, जन व सुरक्षा - बनाई। मोदी ने पानी पर काम किया । सुजलाम सुफलाम योजना में बने चेक डैमों ने मोदी की ख्याति को जोहांसबर्ग के आर्थिक शिखर वार्ता के केंद्र में ला दिया। नारी गौरव नीति, बेटी वैभव योजना व मातृ वंदना योजना ने आँधी आबादी के प्रति मोदी के नज़रिये को ऐसा साफ़ किया कि सब उनके हो कर रह गये। समरस गाँव, पावन गाँव और तीर्थ ग्राम योजनाओं के मार्फ़त मोदी ने गाँवों पर नज़र रखी। तीर्थ ग्राम वे बनाये गये जहां पाँच साल में अपराध न हुआ हो। तीन साल में जहां कोई अपराध न हुआ हो उन्हें पावन गाँव कहा गया। गाँवों को निर्णय लेने का मोदी ने अधिकार दिया। मोदी लोहिया की तरह महिला शिक्षकों प्रबल पैरोकार हैं। वह मानते हैं कि लड़कियों को शिक्षा देने से दो परिवारों का भला होता है। जबकि लड़के की शिक्षा महज़ एक परिवार का। उपहार को नीलाम करने से मिली रक़म को मोदी बालिका शिक्षा लगाते हैं।
बेस्ट सेलर आईडिया
मोदी सिर्फ़ चुनाव के लिए काम करने वाले लीडर नहीं हैं। वह हमेशा चुनाव के मूड व मूड में रहते हैं। सियासत के मार्केट में मोदी बेस्ट सेलर आइडिया हैं। एक ऐसा विचार है जो सपाट आख्यानों को चुनौती देता है। मानस में पैठने का मौक़ा नहीं चूकता। इनका ख़्याल/ उपस्थिति राष्ट्रवादी भावनाएँ पैदा करता है। वे सांस्कृतिक रूप से भले पुरानपंथी हो पर उसकी जड़ें भारत के भू सांस्कृतिक अतीत में गहरे तक हैं। जिसके वे पैरोकार हैं। यही वजह है कि उन्हें प्रशंसा मिलती है। प्यार भले न । मोदी अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में ज़्यादा ऊर्जावान हैं। मोदी का नियोजन सुयोग्य नियोजन है।
यात्राओं के नेता
मोदी यात्राओं के नेता हैं। यात्राओं की उपज हैं। इसलिए वह जीवन को रिपोतार्ज की तरह रचते चलते हैं। मोदी ने 2012 में सद्भावना यात्रा निकाली। इसी यात्रा में मोदी ने दुप्पली टोपी पहनने से इनकार कर दिया। मोदी केशुभाई पटेल को हटाकर सीएम बने।मोदी पहले नेता हैं जिसका सीधा रिश्ता मंदिर आंदोलन से नहीं है, पर वे हिंदुत्व के प्रतिनिधि हैं। वे मंडल व कमंडल के एकसाथ इकलौते प्रतिनिधि हैं। मोदी ने बाला साहब देवरस से हिंदू पक्षधरता सीखी है। बाल ठाकरे ने कहा था कि मोदी के विजय रथ को रोकना किसी के लिए आसान नहीं होगा। ठाकरे ने कहा कि टीवी चैनलों पर मोदी की ऐसी तसवीर प्रदर्शित की जा रही है जैसे मोदी एक प्रकार के दैत्य हैं। जो देश भर के मुसलमानों को निगल जायेंगे, यह ग़लत हैं। धरातलीय नेताओं बनाम मख़मली नेताओं की भाजपाई जंग में मोदी ने धरातलीय नेताओं का विशाल परिवेश गढ़ा। 2009 के लोकसभा चुनाव में पराजय का बड़ा कारण बड़े तबके ने मोदी का स्टार प्रचारक होने को बताया।
उत्तर प्रदेश विश्व की एक सबसे बड़ी राजनीतिक इकाई में से एक है। मिशिगन विश्वविद्यालय में मोदी के सोशल मीडिया या शोध स्कूल इन्फ़ॉर्मेशन के सहायक जोयोजित पाल ने किया। लोकसभा चुनाव के ठीक बाद उत्तर प्रदेश के उप चुनावों में नतीजों का एकदम पलट जाना क्या नहीं बताता है कि लोगों के बदलाव की बेचैनी ख़त्म नहीं हुई है। बदलाव को मुक्कमल मुक़ाम नहीं मिला।
नया विकल्प बनी भाजपा
मोदी की अगुवाई में भाजपा नये विकल्पों का प्रतीक बनी। मोदी 2014 के सारे चुनाव जीते। 2015 के सभी चुनाव हारे। मोदी नई उम्मीद, आकांक्षा व अच्छे दिन का पर्याय बन गये थे। नतीजों ने बताया कि मध्य वर्ग के पास देश के नतीजों को बदलने की ताक़त आ गयी। यह साफ़ है कि जनता का नज़रिया लोकसभा व विधानसभा के लिए अलग अलग है। 1984 में राजीव गांधी 415 सीटें जीते थे। उत्तर प्रदेश में भाजपा को हिंदुओं के 49 प्रतिशत वोट मिले। चतुष्कोणीय, त्रिकोणीय संघर्ष की वजह से 73 सीटें मिलीं। मोदी का अभूतपूर्व व अप्रत्याशित दोनों करिश्मा था। किस तरह 73 सीटों का इतिहास रचा, टूल क्या था? प्रचार का तरीक़ा क्या था?
मोदी के बढ़त की वजह यह भी रही कि सत्ता से मोहभंग के साथ उदारीकरण के चलते उपजी आमदनी में भारी अंतर एवं आर्थिक दिक़्क़तें थीं। उपभोक्ता वाद व नव उदारवाद ने युवाओं में दिखाने की संस्कृति को बढ़ावा दिया है। जब मोदी प्रचार प्रमुख बने तब व्यवस्था से जनता नाराज़ थी। देश में निराशा का माहौल था। वह क्रोध का युग है। जो नव्य उदारवादी संस्कृति की देन है। सेंटर फ़ार द स्टडी ऑफ डवलपिंग सोसाइटी (सीएसडीएस) ने भारत में युवाओं की अभिवृत्ति पर एक सर्वे कराया। देश में पैंसठ फ़ीसदी युवा हैं। इनमें अस्सी फ़ीसदी युवा चिंतित व असुरक्षित हैं। लोग नये प्रतीकों की तलाश में थे। चुनावी नतीजों में तेज़ी से बदलाव सही विकल्प के तलाश की बेचैनी बयां कर रहे थे।आकांक्षी मध्य वर्ग व स्वप्निल युवाओं ने जीत को प्रचंड आँधी में बदल दिया।
बदलता नजरिया
समान नागरिक संहिता, धारा 370 और राम मंदिर के मुद्दे पर अटल आडवाणी ने सरकार सत्ता में रहते हुए जिस तरह चुप्पी ओढ़ी वह भी मोदी की राह आसान कर रहा था। एक लंबे अरसे बाद राजनीति में लोगों की दिलचस्पी दिखी।राजनेताओें के प्रति जहां तिरस्कार और ग़ुस्से की भावना थी, वहाँ मोदी के प्रति अपार समर्थन और स्नेह का भाव दिखा। मोदी शहर की भाजपा को गाँव तक ले गये। समाजवादी पृष्ठभूमि व सामाजिक न्याय के प्रभाव वाले वोटरों को भी मोदी ने प्रभावित किया। मोदी ने अमेरिकी पीआर कंपनी फ़र्म एपको वर्ल्ड बाइंड कंपनी को अपनी छवि सुधारने का ज़िम्मा दिया था। इस फ़र्म की वेबसाइट पर वाइब्रेंट गुजरात की सफलता का दावा किया गया है। मोदी ने 440 सभाएँ कीं। उन्होंने जितनी यात्राएँ कीं, क़रीब चार बार पृथ्वी का चक्कर लगा सकते थे। महात्मा गाँधी ने दांडी पदयात्रा की थी 390 किमी बस 24 दिन में। औसत 16-18 किलोमीटर प्रतिदिन घूमने का था। पद यात्रा जितनी गांधी ने की थी उससे पृथ्वी का दो बार चक्कर लगाया जा सकता है।
प्राय: नेताओं का जनाधार समय निरपेक्ष होता है। मोदी को उदार होकर दृढ़ बने रहना होगा। मोदी सरकार की उपलब्धियों व विकास के दावों को हो सकता है कोई सरकार आये और पीछे छोड़ जाये पर अस्सी फ़ीसदी आबादी को मिली ताक़त और इनके बूते बहुमत की सरकार खड़ा कर लेने के काम आने वाले समय में राजनीति शास्त्र के लिए अध्ययन व शोध का विषय रहेगा। इस मार्फ़त मोदी आने वाले सभी प्रधानमंत्रियों से हमेशा अतुलनीय न अलग रहेंगे।
अब राजनीति में, बतौर प्रधानमंत्री में, बतौर प्रशासन में, बेंचमार्क हमेशा मोदी ही रहेंगे। उन्हीं के पैमाने से बाकियों को आंका जाएगा। ये बात दीगर है कि अब मोदी के आसपास भी कोई फटकने वाला नहीं है। एक ऐसी नजीर मोदी ने खींच दी है।