Mohan Bhagwat: राष्ट्ररक्षा, खुद की सुरक्षा व मोहनजी

Mohan Bhagwat: मुझे यकीन है कि मोहनजी ने सुरक्षा मांगा नहीं होगा, जैसा सामान्य नेता लोगों में भाव भौकाल बढ़ाने के लिए करते हैं या चंपाई सोरेनजी की भांति सरकारी दल की पैरोकारी के बदले मिनिस्ट्री संभव नहीं होती तो सुरक्षा ले लेते हैं।

Written By :  Deepak Mishra
Update:2024-08-30 10:50 IST

 (Pic: Newstrack)

Mohan Bhagwat: आज का अखबार पढ़ा तो एक खबर पर दृष्टि अटक गई , मन दुखी हुआ और मस्तिष्क कुछ सोचने लगा। मोहन मधुकर भागवतजी की सुरक्षा बढ़ा दी गई। गणराज्य की केंद्रीय सरकार ने बढ़ाया, कोई दिक्कत नहीं, यह सरकार का विशेषाधिकार है लेकिन मोहनजी को यह सुरक्षा नहीं लेनी चाहिए। कारण यह कि वे मंचों से सदैव राष्ट्र सेवा, राष्ट्र के लिए प्राणोत्सर्ग जैसी बातें करते हैं , सादगी और सिद्धांत की दुहाई देते हैं । वे मोदीजी, शाहजी, सोनियाजी, राहुलजी की भांति पावर पॉलिटिक्स नहीं करते, प्रत्यक्षतः चुनावी राजनीति नहीं करते और सैद्धांतिक सियासत के अलंबरदार बनते हैं, बहुत हद तक हैं भी....

उन्हें स्वयं सरकार से कहना चाहिए कि राष्ट्र और राष्ट्र के हर नागरिक की समुचित सुरक्षा करें, हम स्वतः सुरक्षित होंगे। सादा जीवन उच्च विचार वालों की शोभा महंगी श्रेणीबद्ध सुरक्षा से घटती है, फिर वे अंबानी तो हैं नहीं जो इतनी महंगी सुरक्षा का अर्थवहन कर सकें। पंडित दीनदयालजी जौनपुर से चुनाव लड़ रहे थे, स्थानीय प्रशासन ने सुरक्षा दिया तो उन्होंने यह कहकर लौटा दिया कि मुझे खतरा नहीं और मेरी रक्षा करने में मेरे कार्यकर्ता सक्षम हैं। लोकनायक जयप्रकाश और लोहिया भी सुरक्षा के मोहताज नहीं रहे जब उनकी लड़ाई सरकार से आर पार की थी।


जनता पार्टी की 1977 में सरकार बनी, अटलजी उस सरकार में प्रभावशाली मंत्री थे । उस समय मधुकर दत्तात्र्य उपाख्य बाला साहिब देवरस आरएसएस प्रमुख थे। अटलजी ने बाला साहिब को सुरक्षा की पेशकश की तो बाला साहब ने स्पष्टः मना कर दिया। जिसे भी सुरक्षा देनी होती है तो सरकार के इशारे पर सुरक्षा एजेंसियां रिपोर्ट बना ही देती हैं। महात्मा गांधी से पंडित नेहरू और पटेलजी ने अनगिन बार सुरक्षा स्वीकार करने आग्रह किया, हर बार निराश होना पड़ा। ये तो महान और बड़ी विभूतियों के उदाहरण हुए। मुझे सपा सरकार में सुरक्षा की पेश कश एक बड़े अधिकारी ने की क्योंकि वे मुझे तत्कालीन मुख्यमंत्री समेत सत्ताधारी दल के शीर्ष नेताओं के करीब देखते और पाते थे।

मैंने उन्हें सविनय मना करते हुए कहा था कि कृपया मुझे भ्रष्ट न बनाएं। सिद्धांतों से विचलित होना भी भ्रष्ट होने जैसा है। मुझे यकीन है कि मोहनजी ने सुरक्षा मांगा नहीं होगा, जैसा सामान्य नेता लोगों में भाव भौकाल बढ़ाने के लिए करते हैं या चंपाई सोरेनजी की भांति सरकारी दल की पैरोकारी के बदले मिनिस्ट्री संभव नहीं होती तो सुरक्षा ले लेते हैं। पर उन्हें मना कर एक नजीर प्रस्तुत करना चाहिए। हर एक की जान कीमती है , उनकी भी है। बाकियों का मैं नहीं जानता पर मेरी दृष्टि और ह्रदय में मोहनजी की वैचारिक मतविभन्नता के बावजूद बड़ी प्रतिष्ठा है किंतु इस प्रतिष्ठा में थोड़ी सी कमी तब आई थे जब उन्होंने जेड प्लस सुरक्षा धारण किया था, आज थोड़ी और कम हो गई। श्रेणीबद्ध सुरक्षा एक दीवार, एक खाई है जो आम जनता से दूरी बनाती है। बाकी हमारे आरएसएस के वाग्मी साथी हर गलत कार्य के लिए तर्क खोज लेते हैं लेकिन.....

सच घटे या बढ़े सच न रहे

झूठ की इंतिहा नहीं होती 

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