पश्चिम बंगाल में एक अजीबोगरीब भ्रष्टाचार-विवाद इन दिनों सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के गले की हड्डी बना हुआ है। यह है ‘कट मनी’ विवाद। कट मनी अवैध कमीशन है, सरकारी भ्रष्टाचार का घिनौना रूप है। टीएमसी कार्यकर्ता राज्य के ऐसे लोगों से यह कमीशन वसूलते हैं, जिन्हें सरकार विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के अन्तर्गत सहयोग प्रदान करती है। खबरों के मुताबिक, वहां पर विभिन्न योजनाओं में कमीशनखोरी की दरें तय हैं। इस उगाही के खिलाफ प्रदर्शन होते रहे हैं, हिंसक झड़पें भी हुई हैं लेकिन सत्ता की ताकत के बल पर उनकी आवाज को दबाया जाता रहा है। भ्रष्टाचार का यह नया संस्करण तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) पर एक बदनुमा दाग है।
पश्चिम बंगाल का कट मनी विवाद एक राजनीतिक मसला भर नहीं है। यह दिखाता है कि सार्वजनिक सेवाओं की आपूर्ति में सुधार एवं पारदर्शिता के बावजूद अनेक नागरिकों, खासकर गरीबों को अब भी जरूरी सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। वे आज भी स्थानीय अधिकारियों व राजनीतिक एजेंटों के रहमोकरम पर हैं। कल्याणकारी कोषों और विकास योजनाओं में गहरा भ्रष्टाचार व्याप्त है। पश्चिम बंगाल के लोग जीवन नहीं, मजबूरियां जी रहे हैं।
पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में स्वार्थ एवं भ्रष्टता के घनघोर बादल छाए हैं। उन्माद की इस प्रक्रिया में आदर्श बनने की पात्रता किसी में नहीं है, इसलिए आदर्श को ही बदल रहे हैं, नये मूल्य गढ़ रहे हैं। नये बनते मूल्य और नये स्वरूप की तथाकथित राजनीतिक क्रूरता, भ्रष्टता, अमानवीयता जिन जहरीले मार्गों पर पहुंच गई है, वहां आम जनता को कानून अपने हाथ में लेने को विवश होना पड़ रहा है। इसका उदाहरण है हाल में नॉर्थ 24 परगना में एक टीएमसी नेता के घर पर हमला होना। इस नेता पर कट मनी वसूलने के आरोप लगते रहे हैं। वहां पर सत्ताधारी पार्टी के नेता एवं कार्यकर्ता असलियत से परे व्यक्तिगत एवं दलगत स्वार्थों के लिए अब भी प्रतिदिन ‘मिथ’ निर्माण करते रहते हैं। आवश्यकता है केवल थोक के भावों से भाषण न दिए र्जांएं, कथनी और करनी यथार्थ पर आधारित हों। उच्च स्तर पर जो निर्णय लिए जाएं वे जन हित में हों। दृढ़ संकल्प हों।
प्रदेशवासियों की मु_ी बंधे, विश्वास जगे। चाहे वो किसी बड़े घोटाले के नाम पर हो, अनुचित ढंग से की गई कट मनी भ्रष्टाचार के विरुद्ध में हो, सरकार की प्रदेश को कमजोर करने वाली नीतियों के प्रतिकार में हो या भ्रष्टाचार-राजनीतिक अपराधीकरण के नाम पर सरकार की ढुलमुल नीति के लिए हो। जो अधिकारों और मर्यादाओं की रेखाओं को पार करे, उसे अधिकारों और मर्यादाओं के सही अर्थ का भान करा देना चाहिए। जंगल में वनचरों ने अपनी लक्ष्मण रेखाएं बना रखी हैं। सत्ताधारी क्यों नहीं बनाता? क्यों लांघता रहता है अपने झूठे स्वार्थों एवं धनलाभ के लिए इन सीमाओं और मर्यादाओं को? अगले साल वहां स्थानीय निकाय के चुनाव होने वाले हैं, जबकि 2021 में विधानसभा चुनाव। जाहिर है, ममता बनर्जी राज्य में फैलती असंतोष एवं आक्रोश की आग को जल्द ठंडा करना चाहती हैं। इसीलिए पिछले महीने पार्टी कार्यकर्ताओं को ममता ने निर्देश दिया कि उन्होंने जिस-जिस से कट मनी वसूला है, उसे वे फौरन वापस करें।
भ्रष्टाचार एक त्रासदी है, राजनीतिक मूल्यों को धुंधलाने की कुचेष्ठïा है एवं सरकारी कामकाम की काली परछांई है। दिल्ली स्थित इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर (आईजीसी) की अर्थशास्त्री फरजाना आफरीदी ‘गवर्नेन्स एंड पब्लिक सर्विस डिलिवरी इन इंडिया’ शीर्षक रिपोर्ट में लिखती हैं कि सार्वजनिक चोरी से सरकार का राजकोषीय बोझ तो बढ़ता ही है, योजनाओं की लागत भी बढ़ जाती है और फिर सरकारी अधिकारियों की चोरी छिपाने की आदत योजनाओं की दक्षता भी कम कर सकती है। ऐसे में, सवाल यही उठता है कि आखिर इस भ्रष्टाचार का खात्मा कैसे हो कि लोग कल्याणकारी योजनाओं का पूरा-पूरा लाभ उठा सकें? इस लिहाज से सूचना की भूमिका सबसे अहम है। दरअसल, उपभोक्ताओं या मतदाताओं को सार्वजनिक सेवाओं के बारे में मुकम्मल जानकारी नहीं होती। इसके कारण राजनेताओं और नौकरशाहों को उन्हें बरगलाना, ठगना एवं गुमराह करना आसान हो जाता है। इसलिए नागरिकों को सूचना संपन्न बनाने की दिशा में त्वरित व प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। इसके साथ ही सरकारी नीतियों को सरल बनाना जरूरी है। बहुत ज्यादा शर्तें लोगों को भ्रम में डालती हैं, जिससे वे एजेंटों की मदद लेने को मजबूर होते हैं। यही से भ्रष्टाचार को पोषण मिलता है।
पश्चिम बंगाल की असली समस्या ‘कट मनी’ नहीं बल्कि ‘काली राजनीति’ है। असली समस्या देश की जड़ों को खोखला करके कट मनी से काला धन पैदा करना है और उसे राजनीति उद्देश्यों में उपयोग में लेना है। आज जो गरीबी - महंगाई बढ़ रही है, तरह-तरह के नए सरकारी कर ईजाद हो रहे हैं, ऊपर से कट मनी भी है। चंद लोगों की तिजोरियां भरने के लिये अधिसंख्य जनता को आंसुओं में डुबोने की राजनीति और उसकी नीतियां सचमुच ‘काली’ है।
कैसी विडम्बना एवं दुर्भाग्य है कि जिन लोगों और नए समाज के निर्माण के सिपहसलागारों ने गरीबों के कल्याण के नारे उछाले, जिन्होंने गरीबी खत्म हो जाने, महंगाई समाप्त हो जाने, गंदी बस्तियों में दूध-दही की नदियां बहने, किसानों के महल खड़े हो जाने के सपने दिखाए, वे ही आज जम कर कट मनी घोटालों में लिप्त हैं। ये लोग कौन हैं?
निश्चित रूप से ये राजनीतिक दलों में काम करने वाले लोग ही हैं या सरकार में शीर्ष पदों पर आसीन है। इसके लिए जरूरी है कि सबसे पहले राजनीतिक दलों का चरित्र बदले, राजनीति से जुड़े चेहरे साफ-सुथरे हों, नए राजनीतिज्ञों का निर्माण हो। केवल व्यक्ति ही न उभरे, नीति उभरे, जीवनशैली उभरे। चरित्र की उज्ज्वलता उभरे। हरित क्रांति, श्वेत क्रांति के बाद अब चरित्र क्रांति का दौर हो। वरना मनुष्यत्व और देश की अस्मिता बौने होते रहेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)