देश की आर्थिक राजधानी मुंबई शायद अपने जीवनकाल में यूँ पहली बार ही इतने दिनों के लिए थम गई है। और थमी भी ऐसा है कि चलने का नाम ही नहीं ले रही है। सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्सेज की पहली पांच कंपनियां मुंबई में उतर चुकी हैं। लॉकडाउन 4.0 प्रारम्भ हो गया है, लेकिन कोरोना शहर और प्रदेश को छोड़ने को तैयार ही नहीं है। पिछले कुछ दिनों से कोरोना ने ऐसी गति पकड़ ली है कि हजार पंद्रह सौ के नीचे की गिनती गिन ही नहीं रहा है ये कोरोना।
धारावी, वर्ली, कुर्ला जैसे झोपड़पट्टी इलाकों में गति ऐसी है कि थमने का नाम ही नहीं ले रही है। दस बाई दस की खोली में दस दस पांच पांच लोगों की सोशल डिस्टेंसिंग, जनता टॉयलेट्स और जरूरत से अधिक जनसंख्या का घनत्व भला दूर रखे भी कोरोना को हमसे तो कैसे। तिलतिलकर जीते और तिलतिलकर मरते हम मुम्बईकर। मौत आस पास ही है, हम सबके, लेकिन न तो सही से डर ही लग रहा है और न ही बच जाने की खुशी ही है। मौत की आँख में आँख डालकर जी रहे हैं हम मुम्बईकर।
सरकार जो कुछ कर सकती है कर रही है, मुंबई के डॉक्टर, मुंबई की पुलिस सब हम मुंबईकरों के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं कर रहे हैं। एक तरफ लोग मर रहे हैं, लेकिन दूसरी ओर लोग बच भी रहे हैं। शायद इतनी भीड़ न होती इस शहर में तो कुछ लोग और बच जाते। वैसे तो अभी भी कोरोना से जंग जारी है। जीवट तो हैं ही हम मुम्बईकर, बहुत जीवट हैं, कोरोना पर भारी ही पड़ेंगे।
हममें से बहुत से लोग मुंबई छोड़कर जा रहे हैं, सुरक्षित स्थानों की ओर कोई अपने घर, कोई अपने गाँव लेकिन ये सब लोग डरे हुए हैं, कोरोना ने इन्हें जीते जीते ही मार दिया है। हम भी चाहते तो जा सकते थे, बीवी बच्चों को समेटते और निकल लेते किसी सुरक्षित स्थान की ओर।
लेकिन यह सब सोच सोचकर मुम्बईया जिद्दी स्वभाव हम पर हावी होने लगा, दिल से आवाज उठी क्या कचरा आदमी हो तुम भाई, यही वो मुंबई है जिसकी वजह से आज तुम्हारी जो कुछ भी पहचान है वो है, जो भी थोड़ा बहुत कुछ कर पाए हो, वह इस शहर की वजह से ही कर पाए हो, और आज जब इस शहर पे थोड़ा संकट क्या आया, काल ने थोड़ा शहर को क्या भरमाया, तुम शहर छोड़कर ही भागने की फिराक में लग गए, इसके लिए मुंबई तुम्हें कभी माफ़ नहीं करेगी। थोड़ा दिया, ज्यादा दिया, जो कुछ भी दिया इसी मुंबई ने दिया और शायद औकात से ज्यादा ही दिया।
जिंदगी से जद्दोजहद तो चलती रहेगी, लेकिन कोरोना से हारकर एक मुम्बईकर कम से कम नहीं जी सकता। कुछ मुंबईकर मरे जरुर हैं, लेकिन उन्होंने भी मौत की आँख में आँख डालकर कोरोना को भी एक बार हिला तो दिया ही है, वो मरकर भी इसी माटी में जमींदोज हुए हैं, मेरे लिए तो वो भी किसी कोरोना योद्धा से कम नहीं हैं। श्रद्धांजली उन्हें और मेरी सच्ची श्रद्धांजली उन्हें यही होगी कि अब हम नहीं, कोरोना ही हमसे हारेगा और अवश्य हारेगा।
डरने की कोई आवश्यकता नहीं है, हर एहतियात हम पालेंगे, कोरोना को हराने के लिए जो कुछ भी करना जरूरी है हम करेंगे। सरकार, डॉक्टर्स, पुलिस, स्वास्थ्य सेवा में जुटे बड़े छोटे सभी कर्मचारी, सफाई कर्मचारी, लोगों को खाना खिलाने उनका ख़याल रखने के लिए सड़कों पर उतरे सभी लोगों को हमारा सलाम है। कोरोना के साथ भी और कोरोना के बाद भी हम रहेंगे इतने ही जीवट, क्योंकि हम हैं मुम्बईकर।