Mahakumbh 2025: क्यों करोड़ों श्रद्धालु जुड़ते हैं कुंभ से ?

Mahakumbh 2025 History in Hindi: कुंभ मेले की शुरुआत समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी है। इस कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत (अमरता का दिव्य पेय) पाने के लिए समुद्र मंथन किया था।;

Written By :  RK Sinha
Update:2025-01-20 14:51 IST

Mahakumbh 2025 History in Hindi

Mahakumbh 2025 History: महाकुंभ का शुभारंभ हो चुका है। पौष पूर्णिमा पर पहला स्नान विगत 13 जनवरी को हुआ। देश के कोने-कोने से भक्त प्रयागराज आ रहे हैं। विदेशी श्रद्धालु भी बड़ी तादाद में कुंभ में स्नान करने पहुंच रहे हैं। क्या आप भी महाकुंभ में स्नान करने जाएंगे? अगर आप जा रहे हैं, तो आप अपने को भाग्यशाली मान सकते हैं। आपको यहां कई तरह के धार्मिक अनुष्ठान होते हुए दिखाई देंगे।  जैसे कि यज्ञ, हवन और कीर्तन। ये अनुष्ठान वातावरण को शुद्ध करते हैं। श्रद्धालुओं को भगवान के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करने का अवसर देते हैं। कुंभ मेला एक धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव है, जो लोगों को भगवान के करीब लाता है। यह एक ऐसा समय है, जब लोग अपने पापों से मुक्ति पा सकते हैं। मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं। यह भारत की सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। यह आत्म-अनुशासन और त्याग के महत्व को दर्शाता है। यह एक ऐसा उत्सव है जो लाखों लोगों को एक साथ आने और अपनी आस्था को मजबूत करने का अवसर देता है।

समुद्र मंथन की कथा

कुंभ मेले की शुरुआत समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी है। इस कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत (अमरता का दिव्य पेय) पाने के लिए समुद्र मंथन किया था। जब अमृत का कुंभ निकला, तो देवताओं और असुरों के बीच इसे पाने के लिए युद्ध हुआ। इस दौरान, अमृत की कुछ बूंदें इन चार स्थानों पर गिरीं, जिन्हें पवित्र माना जाता है। इसलिए, इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।


कुंभ मेले का आयोजन उन स्थानों पर होता है जहां पवित्र नदियों का संगम होता है, जैसे गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम प्रयाग में। इन नदियों में स्नान करना हिन्दू धर्म में बहुत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दौरान नदियों में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है।मोक्ष की प्राप्ति होती है।

प्रयागराज का कुंभ

अब बात प्रयागराज और कुंभ के संबंधों की भी। प्रयाग (बहु-यज्ञ स्थल) को कहा जाता है। प्राचीन काल से यह संगम स्थल पर हुए अनेक यज्ञों की वजह से ही ‘तीर्थराज’ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। जिनमें पहला यज्ञ किया सृष्टिकर्ता प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना के तत्काल बाद। यज्ञवेदी है गंगा, यमुना और गुप्त रूप से बहने वाली सरस्वती की धारा, जो इस क्षेत्र को तीन भागों में विभाजित करती है। ‘पद्म पुराण’ में इसकी तुलना साक्षात सूर्य से करते हुए कहा गया है कि जहां सरस्वती, यमुना और गंगा का संगम होता है, वहां स्नान करने वाले ब्रह्मपद को प्राप्त करते हैं। यह यज्ञ की महिमा ही है, जिसके कारण मान लिया गया है कि जो प्रयाग की धरती पर पैर भी धर लेता है, उसे हर कदम पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। प्रयाग में लगभग 70 हजार  तीर्थ उपस्थित हैं। पद्म पुराण के अनुसार अपने घर में मृत्युशय्या पर पड़ा व्यक्ति भी, यदि दूर भी रहते प्रयाग का नाम स्मरण कर ले तो ब्रह्मलोक का भागी होता है।


‘मत्स्य पुराण’ में कहा गया है कि युग चक्र पूर्ण होने पर जब रुद्र (शिव) पृथ्वी का विनाश करते हैं, प्रयाग तब भी नष्ट नहीं होता है, क्योंकि विष्णु वेणीमाधव, शिव अक्षय वटवृक्ष के रूप में और स्वयं ब्रह्मा छत्र में उपस्थित रहते हैं। शूलपाणि स्वयं वट की रक्षा करते हैं और यहां मृत्यु प्राप्त करने वाले को सीधे शिवलोक की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति संगम की मिट्टी का भी अपने शरीर पर स्पर्श करा लेता है, तो समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। गंगा स्नान के बाद स्वर्ग के पुण्य का भागीदार बन जाता है। यहां यदि किसी को मृत्यु प्राप्त होती है, तो वह जन्म और मृत्यु के सांसारिक चक्र के बंधनों से मुक्त हो जाता है। 

कुंभ मेला लाखों- करोड़ों लोगों को एक साथ आने का अवसर देता है। यहाँ विभिन्न साधु-संत, नागा साधु और अन्य धार्मिक गुरुओं के दर्शन होते हैं, जिससे श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ज्ञान और प्रेरणा मिलती है। यह एक ऐसा समय है, जब लोग सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर भगवान की भक्ति में लीन होते हैं। यह भारत की सांस्कृतिक विविधता का एक अद्भुत उदाहरण है। यहां विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों से लोग आते हैं, जिससे विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं का संगम होता है। मेले में लोक नृत्य, संगीत, कला और शिल्प का प्रदर्शन किया जाता है, जो इसे एक रंगीन उत्सव बनाता है।


अगर धर्म-कर्म से हटकर बात करें तो कुंभ मेला सामाजिक समरसता का प्रतीक है। यहाँ सभी जाति, धर्म और वर्ग के लोग एक साथ आते हैं और मिलकर प्रार्थना करते हैं। यह एकता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देता है।   कुंभ मेले के पहले दिन बड़ी संख्या में सिखों ने भी स्नान किया।  इसमें आने वाले लोग कई तरह के त्याग और अनुशासन का पालन करते हैं। वे साधारण जीवन जीते हैं, जमीन पर सोते हैं। सात्विक भोजन करते हैं। यह उन्हें अपने अंदर की शांति और संयम को बढ़ाने में मदद करता है।

कुंभ जो देता है

कुंभ मेला   हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो लाखों लोगों को आध्यात्मिक शांति और आनंद प्रदान करता है। यह एक ऐसा पर्व है जो हिन्दू संस्कृति की विविधता और गहराई को दर्शाता है। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार, जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं और सूर्य मेष राशि में होते हैं, तब पूर्ण कुंभ का आयोजन होता है। यह खगोलीय संयोग इस मेले को और भी खास बना देता है। यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक और शांतिपूर्ण जमावड़ा होगा, जिसमें विभिन्न संस्कृतियों और पृष्ठभूमि के लोग एक साथ आते हैं।


कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन भी नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक अनुभव भी है। यहाँ साधु, संत, नागा बाबा और अन्य धार्मिक गुरुओं के दर्शन होते हैं, जो अपने ज्ञान और अनुभवों से लोगों को प्रेरित करते हैं। यह मेला आत्म-खोज और आध्यात्मिक विकास का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है। देश के विभिन्न हिस्सों से लोग आते हैं और अपनी पारंपरिक कला, संगीत, नृत्य और वेशभूषा का प्रदर्शन करते हैं। कुंभ मेले का वैश्विक पर्यटन से संबंध है।  दुनिया भर से पर्यटक इस मेले की भव्यता और आध्यात्मिकता को देखने के लिए आते हैं। यह भारत की संस्कृति और विरासत को वैश्विक स्तर पर प्रदर्शित करने का एक शानदार अवसर है। आपको इतने विशेष मेले का हिस्सा तो बनना ही चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

Tags:    

Similar News