लखनऊ: यूपी विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की भारी जीत से सोशल मीडिया पर एक मजाक तेजी से वायरल हो रहा कि 'देखते रह गए खुर्रम और बुर्के में चुपके से बीजेपी पर बटन दबा आई बेगम।' इस मजाक को होली से भी जोड़ा गया है।
लेकिन क्या ये सच में मजाक है या इसमें काफी हद तक सच्चाई भी है। अब तक ये माना जाता रहा है कि मुसलमान कभी बीजेपी को वोट दे ही नहीं सकते और मुस्लिम महिलाएं अपने परिवार वालों की मर्जी या उनके आदेश पर ही वोट देती हैं।
देवबंद से बीजेपी की जीत ने चौंकाया
हालांकि, इस बार के यूपी विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों से जुड़ा मिथक टूटता दिखा। मुस्लिम बहुल इलाके खासकर सहारनपुर के देवबंद से बीजेपी की जीत सभी को चौंकाने वाली रही। सभी राजनीतिक पंडित इस जीत से न सिर्फ भौंचक्के हैं, बल्कि उनका पूरा गणित गड़बड़ा गया है।
मुस्लिमों को लेकर मिथक टूटे
हार से नाराज और खीज गए राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी परिणाम के बाद ये कह दिया कि ऐसा कैसे हो सकता है? बीजेपी ने ईवीएम मशीन में कुछ गड़बड़ की है। दरअसल, मुसलमानों को अब तक 'वोट बैंक' माना गया। ये राजनीतिक धारणा बना दी गई कि वो कभी बीजेपी को वोट दे ही नहीं सकता। क्योंकि केंद्र और अब राज्य की सत्ता में आ रही ये पार्टी मुस्लिम विरोधी है।
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'तीन तलाक' मुद्दे से बीजेपी ने मरहम लगाया
2014 के लोकसभा चुनाव में भी विरोधी दलों ने मुसलमानों को यही डर दिखाया था कि यदि वो सत्ता में आई तो इस अल्पसंख्यक आबादी के लिए देश में कोई जगह नहीं होगी। लेकिन ऐसा न तो होना था और न हुआ। उल्टे बीजेपी ने मुस्लिम महिलाओं के जख्म पर उस वक्त मरहम लगाने की कोशिश की जब सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को गलत बताया और इसे धर्म से अलग महिलाओं की अस्मिता से जोड़ा।
तीन तलाक पर छिड़ी बहस
तीन तलाक मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने जब अपने विचार रखे तो बीजेपी का भी हौसला बढ़ा। तीन तलाक कितना जायज है इस पर पूरे देश में बहस छिड़ गई। उलेमा और मुस्लिम धर्म के रहनुमा खुलकर इसके विरोध में आ गए। उन्होंने इसे शरीयत के खिलाफ बताया। जबकि शरीयत में कहीं भी तीन तलाक का जिक्र नहीं है और न इसे सही कहा गया है। यहां तक कि कट्टर इस्लामिक देश पाकिस्तान में भी तीन तलाक मान्य नहीं है।
कुछ मुस्लिम महिलाएं सामने आईं
बहस बढ़ती गई और देश में ईंट से ईंट बजा देने तक की बात कही जाने लगी। लेकिन इस पूरी बहस से वो औरत गायब होती दिखाई दी, जो सालों से तीन तलाक का दंश झेल रही हैं। इस बहस में उन महिलाओं से पूछा भी नहीं गया कि वो क्या चाहती हैं। हां, इतना जरूर हुआ कि कुछ जागरूक और पढी-लिखी मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक के विरोध में खुलकर सामने आ गईं।
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बीजेपी भी आश्चर्यचकित
मामला अभी तक सुप्रीम कोर्ट में है और लगता नहीं कि फैसला जल्द आ पाएगा। बीजेपी यूपी विधानसभा में लगातार इस बात को उठाती रही। हालांकि इसे बहुत गंभीरता से नहीं उठाया गया था। संभवत: बीजेपी को उम्मीद नहीं थी कि मुसलमानों खासकर मुस्लिम महिलाओं का ऐसा समर्थन उसे मिल पाएगा।
मुस्लिम महिलाओं को दिखी उम्मीद की किरण
लोकतंत्र में सबसे बड़ी ताकत वोट की होती है। मतदाता अपना मत व्यक्त करने में ज्यादा मुखर भी नहीं होता और हुआ यही। मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से मुक्ति में उम्मीद की एक किरण दिखाई दी होगी। गरीबी, अमीरी, आर्थिक या सामाजिक पिछड़ापन अपनी जगह पर है लेकिन औरतों के लिए सबसे बड़ी जरूरत उसकी सुरक्षा होती है। सुरक्षा और वो भी सबसे पहले घर में। मुस्लिम महिलाएं तो अब तक अपने घर में ही सुरक्षित नहीं रही हैं। वो हर वक्त इस डर में जीती हैं कि कब उनका पति तीन बार तलाक बोलेगा और उसे घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। इसी डर भय में वो परिवार की जिम्मेवारी निभाती बच्चे पैदा करती चली जाती हैं।
जारी ...
अब बड़ा सवाल ये है कि मुसलमान खासकर मुस्लिम महिलाएं क्यों बीजेपी को वोट नहीं दें। महिलाओं ने अपने हित के लिए इस बार इस मिथक को तोडा और राजनीतिक जानकारों को हैरान कर गया।
अब सोचने की बारी बीजेपी की
बीजेपी अपनी जीत को नरेंद्र मोदी के विकास और अखिलेश यादव के जातिवाद से जोड़कर देख रही है। लेकिन उसे इससे भी जोड़ना होगा कि मुस्लिम महिलाओं ने उसे क्यों वोट दिया। बीजेपी को मिले वोट इस बात की ओर पूरा इशारा कर रहे कि मुसलमानों के वोट उसे मिले, खासकर मुस्लिम महिलाओं के। उनके लिए तीन तलाक से मुक्ति के अलावा क्या और कोई मुद्दा हो सकता था क्या?