National Cancer Awareness Day : योग एवं अध्यात्म के सहारे कैंसर पर काबू पाये
National Cancer Awareness Day 2024 : वैश्विक स्तर साल-दर साल कैंसर रोगियों और मृतकों की संख्या बढ़ रही है। भारत में बीते सालों में कैंसर के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई है।
National Cancer Awareness Day 2024 : वैश्विक स्तर साल-दर साल कैंसर रोगियों और मृतकों की संख्या बढ़ रही है। भारत में बीते सालों में कैंसर के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई है। कैंसर की पहचान, रोकथाम और इलाज के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से हर वर्ष भारत में राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस 7 नवम्बर को मनाया जाता है। प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार विजेता मैडम क्यूरी की जयन्ती पर उनकी स्मृति में यह दिवस मनाया जाता, जिन्होंने कैंसर के खिलाफ चल रही लड़ाई में बहुत योगदान दिया है। उनके उत्कृष्ट शोध ने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में विकास और कैंसर के उपचार के लिए रेडियोथेरेपी के उपयोग में मदद की है। यह दिवस कैंसर से लड़ने की हमारी क्षमता पर मैडम क्यूरी के वैज्ञानिक प्रयासों के बड़े प्रभाव की याद दिलाता है।
भारत में एक अनुमान के अनुसार 20 से 25 लाख कैंसर रोगी हैं, जिनमें से हर साल लगभग 7 लाख नए मामले सामने आते हैं। जब एक नए कैंसर के मामले का निदान किया जाता है, तो उनमें से दो-तिहाई पहले से ही लाइलाज अवस्था में होते हैं। इनमें से 60 प्रतिशत से अधिक कैंसर रोगी 35 से 65 वर्ष की आयु के बीच के हैं। बढ़ती जीवन प्रत्याशा और प्रगति के साथ बदलती जीवनशैली के कारण कैंसर के मामले अब की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक होंगे। हर साल, राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस एक अनूठी थीम अपनाता है, 2023-24 में, थीम ‘देखभाल की कमी को पूरा करें’ है, यह थीम कैंसर देखभाल, कैंसर की रोकथाम, शुरुआती पहचान और उपचार तक पहुँच में सुधार के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर केंद्रित है।
कैंसर एक ऐसा रोग है जिसके बारे में सुनकर ही लोग डर जाते हैं। कैंसर, वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ती गंभीर और जानलेवा स्वास्थ्य समस्याओं एवं बीमारियों में से एक है, जिसके कारण हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज का अनुमान है कि दुनिया में हर छठी मौत कैंसर के कारण होती है। मेडिकल क्षेत्र में क्रांतिकारी प्रयोग और तकनीक विकास के चलते कैंसर अब लाइलाज बीमारी तो नहीं रही है, पर अब भी आम लोगों के लिए इसका इलाज काफी कठिन बना हुआ है। असाध्य बीमारी होने के बावजूद इस बीमारी को परास्त किया जा सकता है, अगर जिजीविषा एवं हौसला हो तो कैंसर को भी पस्त किया जा सकता है। हम जानते हैं कि हममें से हर एक में बदलाव लाने की क्षमता है, चाहे बड़ा हो या छोटा, और साथ मिलकर हम कैंसर के वैश्विक एवं राष्ट्रीय प्रभाव को कम करने में प्रगति कर सकते हैं।
मानव शरीर कई कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। इनका समय-समय पर रिप्लेसमेंट होता है। जैसे-जैसे कोशिकाएं मरती जाती हैं उनकी जगह पर नई कोशिकाओं का निर्माण होता है। इन रिप्लेसमेंट के दौरान जो सेल मल्टिप्लीकेशन होता है उसके अंदर कोई एक विकृत कोशिका भी पैदा हो जाती है और यह असामान्य कोशिका ऐसी होती है जिस पर शरीर के सिस्टम्स का कोई नियंत्रण नहीं होता और यह सेल इस तरह मल्टीप्लाई करता है कि अंततोगत्वा यह ट्यूमर अथवा कैंसर का रूप अख्तियार कर लेता है। कैंसर कई प्रकार के हो सकते हैं, सभी उम्र के व्यक्तियों में इसका जोखिम देखा जा रहा है। शरीर के किसी हिस्से में असामान्य कोशिकाओं की वृद्धि और इसका अनियंत्रित रूप से विभाजन कैंसर का कारक होती है। आनुवांशिकता, पर्यावरणीय, लाइफस्टाइल में गड़बड़ी, रसायनों के अधिक संपर्क के कारण कैंसर होने का जोखिम बढ़ जाता है। महिलाओं में सर्वाइकल और ब्रेस्ट कैंसर और पुरुषों में फेफड़े-प्रोस्टेट और कोलन कैंसर का खतरा सबसे अधिक देखा जाता रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में विज्ञान ने कैंसर के प्रकारों, कारणों और उपचारों में काफी विकास किया है। ऐसे तमाम आम और सेलिब्रेटी हैं, जिन्होंने कैंसर का सही समय पर जांच और इलाज करवाकर जीवन का सुख प्राप्त कर रहे हैं। इस दिशा में और भी जागरूकता और सतर्कता बढ़ाने की जरूरत है। कैंसर लाइलाज नहीं है, लेकिन इसका इलाज स्टेज 1 या स्टेज 2 में पता लग जाने और तुरन्त ऑपरेशन करके निकाल देने से संभव है। इन वर्षों में अनेक प्रभावी दवाइयों एवं इलाज प्रक्रियाएं भी सामने आयी है जैसे- टार्गेटेड थेरेपी है, इम्यूनो थेरेपी है। उससे लोगों को काफी आराम मिलता है। उससे अनेक लोगों का खतरा पूरी तरह या कुछ मात्रा में कम हुआ एवं जीवन में कुछ वर्ष बढ़े हैं। कैंसर एक लाइफस्टाइल बीमारी भी है। इसलिये जीवन को संतुलित एवं संयममय बनाकर इस बीमारी को कम किया जा सकता है। आप कैसे रहते हैं, क्या खाते हैं, क्या आपकी आदतें हैं, क्या आपकी बुरी आदतें है, उसपर भी निर्भर करता है। लाइफस्टाइल और आहार को पौष्टिक रखने के साथ शराब-धूम्रपान को छोड़कर कैंसर के खतरे से बचाव किया जा सकता है।
असंतुलित जीवनशैली ने आज एक नहीं कई शारीरिक समस्याओं के जोखिम को बढ़ा दिया है। कैंसर भी ऐसा ही एक जोखिम है जो लंबे समय तक नजरअंदाज किये जाने के कारण अक्सर गंभीर रूप धारण कर लेता है। अगर कुछ सावधानियों को जीवन का हिस्सा बना लें तो हम ऐसी समस्याओं को आने से पहले ही रोक सकते हैं। कैंसर अब एक तरह से जीवनशैली से जुड़ी बीमारी बनती जा रही है। कई बार तो लंबे समय तक यह बीमारी पकड़ में ही नहीं आती। इसका एक बड़ा कारण जागरूकता का अभाव भी है। हालांकि, कैंसर पूर्व के कुछ लक्षण दिखते हैं, जिन्हें आमतौर पर नजरअंदाज कर दिया जाता है। मुंह में सफेद या लाल धब्बे, शरीर में कहीं गांठ बन जाना और उसका बढ़ना, लंबे समय तक खांसी, कब्ज की लगातार समस्या, अधिक थकान और वजन में गिरावट जैसे लक्षणों को कतई नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
कैंसर को नियंत्रित करने में अध्यात्म की महत्वपूर्ण भूमिका है। क्योंकि अध्यात्म से व्यक्ति को आत्मविश्वास व मानसिक बल मिलता है। अध्यात्म के सहारे से जीवन की यात्रा को सुगम व सरल किया जा सकता है। इसे एक पारंपरिक उपचार प्रणाली के रूप में जाना जाता है, जो पूरे शरीर, मन और आत्मा में ऊर्जा के संतुलन और प्रवाह को पुनर्स्थापित करती है। जिस प्रकार दवाई हमारे शरीर के अंदर जाकर बीमारी को ठीक करती है, ठीक उसी प्रकार आध्यात्मिक इलाज हमारे मन को मजबूत बना कर किसी भी बीमारी से लड़ने की हिम्मत देता है। सुख-दुख, विपदाएं, वेदना, परेशानियां, कठिनाइयां और बीमारियों का सामना करते-करते व्यक्ति के अंदर से सकारात्मक ऊर्जा खत्म होने लगती है, जिस कारण व्यक्ति थक जाता है और अंदर से टूट जाता है। यह टूटन एवं निराशा कैंसर की सबसे बड़ी बाधा है। अध्यात्म में वो शक्ति है, जो हारे हुए व्यक्ति के जीवन में नई ऊर्जा भर देता है। अध्यात्म के बहुत सारे अंग हैं जैसे- योग, प्राणायाम, मंत्र साधना, ध्यान, आदि। इसके माध्यम से व्यक्ति अपने आप को भीतर से मजबूत बना सकता है। यही वजह है कि जो व्यक्ति अपने जीवन में अध्यात्म को अपना लेता है, वो कैंसर से जुड़ी हर पीड़ा, वेदना एवं हर परिस्थिति का डटकर सामना करता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी हार नहीं सकता।
कैंसर संक्रामक रोग नहीं है। कैंसर के मरीजों से दूरी न बनाएं, बल्कि उनके साथ जुड़कर उनको मानसिक संबल दें, उनमें सकारात्मक सोच विकसित करें। कैंसर की जंग में सकारात्मक सोच रोगी का सबसे बड़ा हथियार हो सकता है। पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी युवराज सिंह हों या कई बॉलीवुड सितारे, सबने अपनी सकारात्मक सोच के जरिए ही कैंसर पर विजय हासिल की है। सकारात्मक सोच वाले शरीर पर ही दवाइयां अपना असर दिखती हैं। इसलिए कभी भी व्यक्ति को हताश नहीं होना चाहिए। योग से शरीर, मन और आत्मा को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। योग तनाव और चिंता का प्रबंधन करने में भी सहायक है। यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और मानसिक तनाव को दूर करता है। रोजाना 30 मिनट तक योग करके कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों के जोखिम को कम किया जा सकता है।