NCERT Climate Syllabus: NCERT द्वारा पर्यावरण पाठ्यक्रम में बदलाव, शिक्षक समूह निराश

NCERT Climate Syllabus: एनसीईआरटी की तरह टीएसीसी में भी मानते हैं कि छात्रों को पुरानी और दोहराव वाली सूचनाओं पर मेहनत जाया नहीं करनी चाहिए।

Written By :  Dr. Seema Javed
Update: 2022-07-08 02:51 GMT

NCERT द्वारा पर्यावरण पाठ्यक्रम में बदलाव (फोटो: सोशल मीडिया )

NCERT Climate Syllabus: टीचर्स अगेंस्ट द क्लाइमेट क्राइसिस (टीएसीसी) में हम एनसीईआरटी द्वारा हाल ही में स्कूल पाठ्यक्रम में किए गए कई बदलावों से बहुत निराश हैं। इनमें से जो बातें सीधे तौर पर हमारी चिंताओं से संबंधित हैं, उनमें कक्षा 11 के भूगोल (Geography) पाठ्यक्रम से ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव (effects of greenhouse gases) पर आधारित एक संपूर्ण अध्याय को हटाना, कक्षा 7 के पाठ्यक्रम से जलवायु मौसम प्रणाली (climate weather system) और पानी पर एक संपूर्ण अध्याय और कक्षा 9 के पाठ्यक्रम से भारतीय मानसून (Indian monsoon) के बारे में सूचनाओं को हटाना शामिल है।

कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप पूरे देश में पढ़ाई के नियमित कार्यक्रम पर व्यापक असर पड़ा है। अपने शिक्षकों और अपने स्कूल पर निर्भर स्कूली बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। शिक्षक और छात्र पिछले दो वर्षों से अधिक समय से नहीं मिल पाए हैं और विभिन्न सामाजिक स्तरों के छात्रों के लिए इंटरनेट तथा अन्य तकनीकी सेवाएं रुक-रुक कर और असमान रूप से उपलब्ध होने के कारण छात्रों को अधिकांश सामग्री को अपने ही माध्यमों से खोजने को मजबूर होना पड़ता है। आगामी "सीखने की कमी" के मामले में यह समझ में आता है कि एनसीईआरटी ऐसी सामग्री को हटाकर छात्रों के पढ़ाई के बोल को कम करने की कोशिश कर रहा है, जैसा कि वह अपनी वेबसाइट पर दावा भी करते हैं, मगर एक ही जैसी सामग्री एक दूसरे को ओवरलैप करती है या फिर वह "वर्तमान संदर्भ में अप्रासंगिक है।"

एनसीईआरटी की तरह टीएसीसी में भी हम मानते हैं कि छात्रों को पुरानी और दोहराव वाली सूचनाओं पर मेहनत जाया नहीं करनी चाहिए। हालाँकि इनमें से कोई भी चिंता बुनियादी मुद्दों जैसे कि जलवायु परिवर्तन विज्ञान, भारतीय मानसून और अन्य अध्यायों पर लागू नहीं होती है, जिन्हें पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है। वास्तव में, प्रासंगिक जलवायु परिवर्तन विज्ञान को हर साल प्रकाशित हजारों सहकर्मी-समीक्षा पत्रों के माध्यम से लगातार अपडेट किया जा रहा है और साथ ही बहुत महत्वपूर्ण संकलन जैसे कि आईपीसीसी की ताजातरीन 'द सिक्स्थ असेसमेंट रिपोर्ट' इस साल की शुरुआत से भारतीय क्षेत्र के लिए जलवायु परिवर्तन से संबंधित पहली रिपोर्ट है। साथ ही पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तत्वावधान में 2020 में प्रकाशित आईआईटीएम रिपोर्ट भी इनमें शामिल है। पूरे भारत में वरिष्ठ स्कूली छात्रों को इस तरह की अद्यतन जानकारी के सार को सुलभ और आसानी से समझने योग्य तरीके से अवगत कराया जाए।

जानकारी के सार को आसान तरीके से बताया जाए

यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि पूरे भारत में वरिष्ठ स्कूली छात्रों को इस तरह की अद्यतन जानकारी के सार को सुलभ, समझने में आसान तरीके से बताया जाए। भारत सहित, छात्रों को पर्यावरण के क्षरण से होने वाले उन तल्ख परिवर्तनों से गहराई से जोड़ा व गया है, जिसका एक उदाहरण जलवायु परिवर्तन है। इस सबसे बुनियादी चुनौती का सामना करने के लिए युवाओं के कार्य और हस्तक्षेप महत्वपूर्ण हैं। इस कार्रवाई को जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता, इसके कारणों और इसकी व्यापक पहुंच के व्यवस्थित ज्ञान पर आधारित करने की आवश्यकता है। छात्रों को जलवायु संकट की जटिलता को समझने की जरूरत है अगर उन्हें इसका जवाब देना है और इसके साथ समझदारी से जुड़ना है।

हाल के वर्षों में, यह जुड़ाव आमतौर पर कक्षा में शुरू हुआ है। इसलिए यह जरूरी है कि स्कूल छात्रों को जलवायु परिवर्तन और संबंधित मुद्दों के बारे में जानकारी देते रहें जो सटीक, तर्कसंगत और प्रासंगिक हों। जलवायु परिवर्तन अब व्यापक रूप से वैश्विक, आर्थिक और औद्योगिक तौर-तरीकों का नतीजा माना जाता है, जिसने जीवन के लिए आवश्यक ग्रहीय प्रणालियों को खतरे में डाल दिया है। इस मुद्दे को अब केवल "पर्यावरण विज्ञान" के चश्मे से नहीं समझा जा सकता है। इसके बजाय इसमें स्कूली पाठ्यक्रम में विभिन्न विषयों को शामिल किया गया है, जिसमें भौतिकी, समकालीन भारत, इतिहास और लोकतांत्रिक राजनीति शामिल हैं। हम भारत में असाधारण रूप से भाग्यशाली रहे हैं कि कई जन आंदोलन हुए जिन्होंने इन संबंधों को समझा है और जिन्होंने अपने संघर्ष को पारिस्थितिकी, समाज, संस्कृति और अर्थशास्त्र के चौराहे पर आधारित किया है। 'चिपको आंदोलन' या 'नर्मदा बचाओ आंदोलन' जैसे लोकप्रिय जन आंदोलन इस कारण से दुनिया भर के लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहे और आगे भी बने रहेंगे। कक्षा 10 के छात्र हालांकि अब अपने "लोकप्रिय संघर्ष और आंदोलन" पाठ में इनसे प्रेरित नहीं हो पाएंगे क्योंकि उन पर अध्याय को उनके "लोकतांत्रिक राजनीति" पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया गया है। इसलिए हम एनसीईआरटी से इस पर पुनर्विचार करने का आग्रह करते हैं और हटाए गए पाठ्यक्रम को बहाल करने की मांग करते हैं। हम यह भी आग्रह करते हैं कि जलवायु संकट के विभिन्न पहलुओं को सभी वरिष्ठ स्कूली छात्रों को कई भाषाओं में और विभिन्न विषयों में पढ़ाया जाए क्योंकि यह बहुत सारे लोगों के लिए सरोकार रखता है।

(डॉ. सीमा जावेद, पर्यावरणविद & जलवायु परिवर्तन की रणनीतिक संचारक)

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