K Vikram Rao: खबरनवीसी! फूलन डाकू के बहाने !!

फूलन मल्लाह को तीन बार लोकसभाई बनाने वाले मुलायम सिंह यादव ने यूपी की वर्ण व्यवस्था का मखौल बनाया। निषाद, केवट, मल्लाह, नाविक जाति के वोटरों का समाजवादीकरण कर दिया।

Written By :  K Vikram Rao
Update:2022-07-27 20:03 IST

K Vikram Rao: खबरनवीसी ! फूलन डाकू के बहाने !!

K Vikram Rao: यूपी मीडिया की गत अर्धशती के रिकॉर्ड में बहमई नरसंहार की वारदात खासकर रिपोर्टरों के रोंगटे खड़े करनेवाली खबर रही। मैं साक्षी था। अत: पुरानी फिल्मरोल की भांति स्मृति आज घूम गयी। कारण ? सत्तर—वर्षीय अपहरणकर्ता ठाकुर छेदा सिंह, (कुमारी फूलन का अपहरणकर्ता), कल (26 जुलाई 2022) सैफई अस्पताल (Saifai Hospital) में मर गया। दशकों से गुप्त साधू वेष में रहा सेवाधारी छेदा क्षयरोग से ग्रसित था। इस घटना की न्यूज—वेल्यू इसलिये ज्यादा है क्योंकि दो राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिकों (टाइम्स आफ इंडिया तथा हिन्दुस्तान टाइम्स) ने यह खबर तीन कालमों की छापी।

क्षत्रिय नरेश विश्वनाथ प्रताप सिंह यूपी के बारहवें थे कांग्रेसी मुख्यमंत्री

टाइम्स आफ इंडिया (Times of India) ने प्रथम पृष्ठ पर, तो हिन्दुस्तान टाइम्स ने दूसरे पन्ने पर। खीरी से मंत्रीपुत्र की जमानत को खारिज करनेवाला समाचार अन्दर तीन कालम में था। छेदा सिंह के निधन की सूचना से मेरे स्मृति पटल पर उन तीन दिनों (14 से 16 फरवरी 1981) का दृश्य धूम गया। तब क्षत्रिय नरेश विश्वनाथ प्रताप सिंह यूपी के बारहवें (संजय गांधी द्वारा मनोनीत) कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। फूलन देवी के हत्यारों के सवर्णीय ! मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) की पार्टी से तीन बार सांसद रही फूलन मल्लाह की वारदात अभी भी जनमानस में ताजा है। अत: दोहराना अनावश्यक होगा।

मगर एक रिपोर्टर के नाते अपनी पुरानी यादों का गुबार निकालने की मेरी उत्कट इच्छा है। उस दिन (14 फरवरी 1981) देवरिया में ठाकुर चन्द्रशेखर सिंह (Thakur Chandrashekhar Singh in Deoria) की अध्यक्षतावाली जनता पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन (national convention) को कवर करने गया था। तब टाइम्स आफ इंडिया के यूपी ब्यूरो, लखनऊ, में अकेला था मैं। अखबार दिल्ली से छपकर आता था। तब तक मोरारजी देसाईवाली जनता पार्टी से जनसंघी अलग होकर भारतीय नहीं हुये। अपने मुम्बई अधिवेशन के बाद भाजपाई बन गये। देवरिया अधिवेशन में सुषमा स्वराज सबसे आकर्षक वक्ता थीं। बाद में उन्होंने लाल झण्डा तजकर भगुवा पताका फहरायी थी। सुषमा स्वराज की वाणी में ओज था। तब पूंजीशाहों पर दहाड़ रहीं थीं। लाल जो ठहरीं! इस केन्द्रीय अधिवेशन में पूर्व श्रममंत्री रवीन्द्र वर्मा मुख्य वक्ता थे। धोती पहने, कुर्ते की बाहें समटते अध्यक्ष चन्द्रशेखर सिंह इंदिरा सरकार की वापसी पर गोले बरसा रहे थे। प्रेस गैलरी में बैठा मैं सब निहार रहा था। स्वाभाविक है, सभी मुझे जानते थे। मैं भी उनकी कश्ती में यात्री रहा था (बडौदा डायनामाइट प्रकरण में जार्ज फर्नांडिस के बाद द्वितीय अभियुक्त बनकर)। मगर सारे वक्ता जॉर्ज को विशेषणों से अलंकृत कर रहे थे, क्योंकि वह दलबदलु चरण सिंह से मिलकर पार्टी—तोड़क बन गये थे। विरोधी खेमें में थे।

तभी मुझे दिल्ली के मुख्यालय से ट्रंककाल (मोबाइल जन्मा नहीं था।) आया कि तुरंत बहमई पहुंचों। पांच सौ किलोमीटर का फासला। बस चन्द घंटों की नोटिस ! पहली ट्रेन पकड़ी। लखनऊ के घर (39 राजभवन कॉलोनी) में अतिथि सुषमा को छोड़ा अपनी पत्नी डा. सुधा की देखभाल में। दोनों में संयोग था। उनके का कद, रंग और कट में सादृश्य था। मेरे टेलिप्रिंटर आप्रेटर राम रतन के आकलन में। वह भ्रमित था। फिर मैंने कार उठायी, अकेला ड्राइव करता कानपुर होता हुआ फूलन देवी की रणभूमि (बहमई) पहुंचा। बड़ा वीभत्स दृश्य था। रक्तरंजित लाशें तभी उठाकर पोस्टमार्टम के लिये ले जायी गयीं थीं। मेरे साथ एक दरोगाजी को आईजी साहब ने तैनात कर दिया, पथप्रदर्शक के रोल में था। उसके हावभाव से पूरे ग्रामीण आंचल का मौसम समझ में आ जाता था। जहां ठाकुरों की बस्ती थी, वहां वह खाकी वर्दीधारी दुबका रहता था। मगर जहां दलितों के इलाकें में पहुंचे, दरोगाजी पूरे फार्म में रहते थे। वह स्वयं दलित थे। इतना जिक्र काफी है, आंतकी वातावरण में प्रतिहिंसा को मापने हेतु।

फिलवक्त पूरी खबर लेकर कानपुर सीटीओ (केन्द्रीय तार घर) पहुंचा। पता चला कि दिल्ली की तार लाइन डाउन है। अपनी रपट की गत सोचकर प्रतीत हुआ भ्रूण हत्या हो रही है। उस युग में मोर्स कोर्ड (टिक—टिक ) से तार प्रेषित होता था। इस मोर्स कोर्ड को सैमुअल मोर्स द्वारा 24 मई 1830 को आविष्कृत किया गया था। वाशिंगटन से बाल्टीमोर नगर (केवल 40 किलोमीटर) से उसने टिकटिक कर के पहला संदेश दो सदी पूर्व भेजा था। भारत में भी फूलन द्वारा किये गये संहार के समय तक मोर्सकोड या टेलिप्रिंटर द्वारा ही संप्रेषण होता था। आज की तरह नहीं जब एक क्षण में ही समाचार कोसों चला जाता है। अब मेरी दशा थी कि रपट तैयार है, मोर्सकोड पंगु है। पकवान सामने है, हाथ बंधे हैं। हां, उस वक्त टेलेक्स की व्यवस्था थी। एक शब्द का एक रुपया दर था। अब कंजूस मारवाडी कम्पनी रही टाइम्स आफ इंडिया। तब रुपये की कीमत भी काफी थी। चीनी दो रुपये किलो थी। दफ्तर के नियमानुसार पूर्व अनुमति लेनी पड़ती थी, यदि टेलेक्स के महंगे दर पर खबर भेजा जाये तो। दिल्ली फोन किया।

गनीमत थी कि लेखा विभाग को फूलन की हरकत की जघन्यता का अंदाज लग गया था और पाठकों के प्रति दायित्व का बोध भी संपादक को हो गया था। मैंने टेलेक्स से खबर भेजी। मेरे पत्रकारी नैपुण्य को चुनौती थी। कम से कम, केवल आवश्यक, बिना किसी विशेषण या काव्यात्मकता के रपट भेजी। सिर्फ रुखे तथ्य थे। हर्षित हुआ जब रपट पूरी चली गयी। दिल्ली और मुम्बई आदि संस्करणों में मेरी बाईलाइन से (नाम सहित) लीड स्टोरी छपी। रिपोर्टिंग की मजदूरी पूरी प्राप्त हुयी थी, मान्यता भी मिली। लखनऊ और कानपुर के दैनिकों से प्रतिस्पर्धा में मेरा दिल्ली दैनिक पिछड़ा नहीं। मुझमें बसा पत्रकार खुश हुआ। इसीलिये बहमई काण्ड और फूलन मल्लाह याद रहे।

फूलन मल्लाह से मुलायम सिंह यादव ने यूपी की वर्ण व्यवस्था का बनाया मखौल

बाद में फूलन मल्लाह को तीन बार लोकसभाई बनाने वाले मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने यूपी की वर्ण व्यवस्था का मखौल बनाया। निषाद, केवट, मल्लाह, नाविक जाति के वोटरों का समाजवादीकरण कर दिया। फूलन मल्लाह ने भी दो—दो मुख्यमंत्रियों को अपने आत्मसमर्पण के उत्सव में शरीक किया। यूपी के राजपूत राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह और मध्यप्रदेश के ठाकुर अर्जुन सिंह, दोनों इंदिरा कांग्रेसी थे।

एक निजी घटना उस दौर की याद है। बहमई काण्ड में उनके ही सजातियों की रक्षा का संकट था। अत: विश्वनाथ प्रताप सिंह तब त्यागपत्र की तैयारी कर रहे थे। अपने निर्णय की मुझे सूचना दी। मेरी संक्षिप्त राय थी : ब्रिटिश रक्षामंत्री जॉन प्रोफ्यूमो के एक कालगर्ल क्रिश्चियन कीलर से यौन प्रकरण पर लंदन में हंगामा उठा था तब। हेरल्ड मेकामिलन जो '' सुपर मैक'' (महाबली) कहलाते थे के त्यागपत्र की मांग हुयी। मैकामिलन ने संसद में पूछा : ''क्या आप महान सांसदगण चाहते है कि इतिहास दर्ज करे कि सर्वशक्तिमान ब्रिटिश सरकार को एक वेश्या ने ढा दिया ?'' सबने पुकारा : ''नहीं, नहीं।'' मैकामिलन ने शक्ति दिखा दी। इस किस्से को सुनकर विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भी विपक्ष द्वारा त्यागपत्र की मांग को नकारते हुये उद्घोषणा की : ''राज्य सरकार के पतन का श्रेय एक डकैत नहीं पा सकती।'' इतिहास विकृत नहीं हुआ।

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