अमा हम भी अनलिमिटेड हैं। सोचा था कि जिन मुद्दों पर देश में कम से कम दो लॉबी हैं, उन पर कुछ नहीं बोलेंगे लेकिन क्या करें दिल है कि मानता नहीं। अब बताइए ये गलत बात है कि नहीं कि जिन लोगों को चमकी बुखार पर हो रही मौतों को रोकने के लिए दिमाग लगाना चाहिए था, उन सबका कंसंट्रेशन इस बात पर है कि देश के लिए नेहरू से लेकर नरसिम्हा राव तक का क्या-क्या रायता है। जिनको इस बात के लिए आन्दोलन करना चाहिए था कि चमकी बुखार से मौतें क्यों नहीं रुक रही हैं तो वो अपनी पूरी ताकत इस बात पर झोंके हुए हैं कि आखिर एक चोर को भीड़ ने क्यों पीट-पीट कर मार डाला। अब बताइए हम क्या करें। अपना दुखड़ा किससे रोएं।
ये टीवी चैनल वाले भी हमारा कहां ध्यान रखते हैं। जब उनको अपनी टीम भेजकर ये कवरेज कराना चाहिए था कि तुर्की में नुसरत जहां शादी कर रही है तो वो मुजफ्फरपुर के अस्पताल के आईसीयू में घुसकर लाइव करने में व्यस्त थे। पुलिसवालों का मूड भी इसीलिए खराब हुआ कि स्थिति खराब है चिकित्सा व्यवस्था की और सवाल कानून व्यवस्था की स्थिति पर उठाए जा रहे हैं। कभी टीवी वाले आकर आईसीयू में हंगामा मचाए हुए हैं तो कभी नेताजी लोग अस्पताल को डिस्टर्ब किए हुए हैं। फिर जब फिल्मवाले पहुंच जाएं तो भीड़ जुटेगी ही। भोजपुरी हीरो खेसारी लाल यादव काहे वहां न पहुंचें। मनोज तिवारी भाजपा के बड़े नेता हो चुके हैं। रविकिशन इस बार सांसद बन गए हैं। निरहुआ भी अखिलेश यादव को टक्कर देकर नेतागीरी में अपना नाम रौशन कर चुके हैं। ऐसे जब इतने बच्चे मर गए हों तो क्या खेसारी जी को नेतागीरी चमकाने का हक नहीं है।
बस यही भीड़ देखकर पुलिस भडक़ने लगी। अब इन रसूखदारों का तो कुछ कर नहीं पाते तो गरीबों को ही निपटा दिया। चमकी से मौतों के विरोध में वैशाली के हरबंशपुर गांव की गरीब जनता ने 18 जून को राजमार्ग पर जाम लगाया तो पुलिस ने 19 लोगों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज कर ली। अब इनका चमकी से बच्चों की मौत का गम तो काफूर हो गया और तनाव इस बात का हो गया कि गिरफ्तारी से कैसे बचें?
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साफ है कि बिहार का ये मामला चिकित्सा व्यवस्था में अनदेखी का है। अगर वहां के डॉक्टर्स यूपी के मेरठ में लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज से सीख लेते तो शायद इतनी बड़ी समस्या न होती। यहां केयर का ये आलम है कि डॉक्टरों ने एक मुर्दे के इलाज के लिए दस एक्सरे कर डाले। ये तो पता भी न चलता अगर 11 डॉक्टर्स और कर्मचारियों से जवाब तलब न होता। वैसे अस्पताल कह रहा है कि इन एक्सरे के पीछे कोई बुरी मंशा नहीं थी बल्कि वो ये जानना चाह रहे थे कि आखिर मौत किस वजह से हुई। अब सोचिए जहां दुनिया छोड़ चुके लोगों का इतना ख्याल रखा जाता हो, वहां मरीजों की कितनी केयर होती होगी।
लेकिन भैया राव, चोर और चमकी में हम भारतीयों का दिमाग तो ज्यादा लगता नहीं। हम भारतीय तो ठहरे फिल्मी। फिल्मी न होते तो अमिताभ बच्चन, हेमवती नंदन बहुगुणा को न हरा पाते, गोविंदा, राम नाइक जैसे जमीनी नेता तो न हरा पाते। न्यूज चैनल पर सीरियल और फिल्मी कार्यक्रमों की ज्यादा टीआरपी न होती। अरे जमाना बदल रहा है, अब पब्लिक संसद में हेमा, रेखा और जया पर चर्चा नहीं कर रही हैं। अब तो जमाना टीएमसी सांसद नुसरत जहां और मिमी चक्रवर्ती का है। फिर बिजनेसमैन निखिल जैन से पहले हिन्दू और फिर ईसाई रीत से शादी करने वाली नुसरत की खबर में सीरियल जैसी स्टोरी भी थी और फिल्मों जैसा आनंद भी लेकिन न जाने क्यों टीवी वालों ने इस मौके को हाथोंहाथ नहीं लिया। अरे अगर साड़ी पहने, सिन्दूर लगाए नुसरत हाथों में मेहंदी, चूड़ा पहन शपथ न लेती और स्पीकर के पैर न छूती तो ये संस्कार भी हमसे दूर रह जाते। लेकिन हमसे क्या हम तो यही कहेंगे... अमा जाने दो।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)