कैसी हो क्रिकेट की भावना ?
रात ढले कल कुछ मित्रों का फोन आया। बोले : ''पाकिस्तान टी-20 (pakistan t20) के फाइनल से बाहर हो गया।'' आलोड़ित थे। मानो आस्ट्रेलिया नहीं, भारत जीत गया हो ! तब तक मैं बड़ा आक्रोशित हो रहा था।
रात ढले कल कुछ मित्रों का फोन आया। बोले : ''पाकिस्तान टी-20 (pakistan t20) के फाइनल से बाहर हो गया।'' आलोड़ित थे। मानो आस्ट्रेलिया नहीं, भारत जीत गया हो ! तब तक मैं बड़ा आक्रोशित हो रहा था। कारण था कि फील्डर हसन अली (fielder Hasan Ali) ने बैटर मैथ्यू वेड का बेशकीमती कैच छोड़ दिया। फिर वेड (Australian wicket keeper and batter Matthew Wade) ने साथी मार्कस स्टोइंस की जोड़ी में कप्तान मोहम्मद बाबर आजम की टीम (Captain Mohammad Babar Azam team) को दुबई में टी20 मैच (t20 match in dubai) में हरा दिया। मैंने सोचा अगर पुराना असली बाबर-ए-आजम उजबेकी होता तो आज हसन अली का अबुधाबी में चौराहे पर सर कलम करा देता। या कोड़ों की मार से लहूलुहान बना डालता। यहां दो समान हादसों की तुलना करें। भारतीय बालर मोहम्मद शमी को न्यूजीलैण्ड से हार पर दोषी करार देते हुए उनके मजहब पर कुछ हिन्दुओं ने टीका—टिप्पणी की थी। कप्तान विराट कोहली ने शमी की पुरजोर रक्षा की थी (20 अप्रैल 2019)। मगर कल से पाकिस्तानी मीडिया हसन अली की भारतीय पत्नी सामिया आरजू को भारतीय गुप्तचर एजेंसी की सहायिका बताकर संदेह के घेरे में ला रही हैं। सामिया भारतीय विमान सेवा में परिचारिका थी। एक पुत्री की मां हैं। यहां कप्तान बाबर का हसन अली की मदद में मौन रहना, न आना बड़ा खराब लगता है।
खैर यह सब तो मुझ एक अखबारी रिपोर्टर की मनोरचना है। मुझे कप्तान बाबर और उसकी टीम से हमदर्दी है। मुंह से निवाला निकल गया। विजय के इतने निकट, फिर भी दूर? मुझे याद आया जब मैंने विश्वकप फाइनल शारजाह में देखा था। तब जावेद मियांदाद (दाउद इब्राहीम का समधी) ने चेतन शर्मा की अंतिम बॉल पर छक्का लगाकर भारत को हराया था। मैंने पाकिस्तान की जीत पर ताली पीटी थी। वह तारीख 18 अप्रैल 1986 थी। मेरा वास्ता खेल की भावना से बस इतना है कि राष्ट्रीय सीमाओं से खेल का चिंतन परे होना चाहिये। लखनऊ के चौक स्थित अपने आवास पर कांग्रेस के शिया नेता विधायक रहे सिराज मेहंदी ने मियांदाद से 2007 में मेरी भेंट करायी थी। वे जीटीवी के कार्यक्रम में लखनऊ आये थे। जावेद खुश थे जब मैंने बताया कि उनके छक्के पर ताली बजाने वाले असंख्य भारतीयों में एक मैं भी था। बताता चलूं कि गत मई माह में सिराज मेहंदी ने पार्टी महा सचिव प्रियंका वाड्रा की पांच राज्यों की विधानसभायें तक यूपी के पंचायत चुनाव में कांग्रेस की करारी हार पर भर्त्सना की थी। प्रियंका ने उन्हें बर्खास्त कर दिया।
इसी सिलसिले में मुझे भारत के मुसलमानों से गंभीर शिकायत है कि वे पाकिस्तान से भारत की हार पर जश्न क्यों मनाते हैं? ऐसी घटनाओं पर मुझे मेरे साथी पत्रकार और आईएफडब्ल्यूजे की वर्किंग कमेटी के सदस्य रहे भाजपायी सांसद एमजे अकबर भले लगते हैं। वे कई बार ऐसी मजहबी स्वार्थपरता की निन्दा कर चुकें हैं। बस इसी कारण मुझे कल रात को आस्ट्रेलिया को बधाई देने वाले भारतीयों पर क्षोभ हो रहा था। पाकिस्तान की विजय एक एशियायी टीम की जीत होती। मसलन इस्लामी पाकिस्तान यदि कम्युनिस्ट चीन का भारत को त्रस्त करने हेतु मित्र बन जाये तो यह उसकी मूढ़ता और ओछापन ही होगा। इसी मनोवृत्ति के चलते मुझे खान मोहम्मद इमरान खान पठान पर आश्चर्य होता है कि उसने स्वयं खिलाड़ी होकर क्रिकेट की मान्य भावना को नजरंदाज कर शत्रु के शत्रु (चीन) को मित्र बना लिया। इसी विचार क्रम में मुझे उन भारतीय छात्रों ओर दर्शकों पर कानूनी कार्यवाही का समर्थन करना होगा जिन्हें पाकिस्तान की जीत पर भारत दीपावली—ईद की तरह खुशी व्यक्त की। उनका मकसद अच्छे खेल की तारीफ नहीं थी। बस भारतीय खिलाड़ियों का अपमान करना था। मातृभूमि का उपहास उड़ाना था। वर्ना कल आस्ट्रेलिया की सनसनीखेज जीत पर मस्जिदों से यही नारे बुलंद होते कि परवरदीगार ने बेहतर टीम को जीत बख्शी है। मगर नहीं हुआ, गमजदा खामोशी रही। वहीं विभाजन का कैंसर शेष है।
यहां क्रूरता की एक घटना का उल्लेख कर दूं। क्रिकेट की वास्तविक भावना तो उत्तर जोन के साथ वेस्टइंडीज की 1958-59 के वाकये पर कप्तान की प्रतिक्रिया से जाहिर हुयी थी। तेज बालर राय ग्रिलक्राइस्ट ने बल्लेबाज सरदार स्वर्णजीत सिंह द्वारा चौका लगाने से नाराज होकर अगली गेंद ऐसी फेंकी कि उनकी पगड़ी उछल कर गिर गयी। सर फूटने से बच गया। कप्तान गैरी एलेक्सेंडर ने तत्काल गिलक्राइस्ट को खेल मैदान से निकाल बाहर किया और आदेश दिया कि : ''आप अगली उड़ान से स्वदेश जमाइका जायेंगे।'' हालांकि इस खेल के सौहार्द के वाकये को बाद में नस्लभेद का रंग दिया गया था क्योंकि गिलक्राइस्ट अश्वेत था। एलेक्जेन्डर गोरा था। दुबई का मैच देखकर कथाकार सुदर्शन की कहानी पर गौर कीजिये। बाबा भारती ने डाकू से कहा कि तुमने मेरा घोड़ा चुराया, तुम्ही रख लो। मगर किसी को बताना नहीं कि तुम भिखारी बनकर उसे चुरा ले गये थे। वर्ना लोग हर भिखारी पर चोरी का संदेह करते रहेंगे। अर्थात मेरी राय में हम भारतीयों को पाकिस्तान की बावत बाबा भारतीय वाली संवेदनशीलता संजोनी चाहिये।