Parliament Session 2024: संसद में हंगामे के बजाय संवाद, चर्चा और विधेयकों पर कार्य होना चाहिए

Parliament Session 2024: ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्ष ने अपने मुद्दे तय कर लिए हैं। इस बार के संसद सत्र में विपक्ष सत्ता पक्ष को तीन प्रमुख मुद्दों पर घेरने की योजना बना रहा है।

Written By :  Vikrant Nirmala Singh
Update:2024-06-22 12:32 IST

Parliament Session 2024  (photo: social media )

Parliament Session 2024: लोकसभा चुनाव के परिणाम ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बार संसद में विपक्ष की उपस्थिति भी प्रभावी रहेगी। जहाँ एनडीए के 294 सांसद होंगे, वहीं इंडी गठबंधन के 233 सांसद मौजूद रहेंगे। अब सबकी नजर विपक्ष के नेता पर है, और यह देखना रोचक होगा कि कांग्रेस किसे अपना नेता बनाती है, जो लोकसभा में विपक्ष की भूमिका निभाएगा। 18वीं लोकसभा का पहला सत्र 24 जून, 2024 से 3 जुलाई, 2024 तक आयोजित किया जाएगा। इस सत्र में नव निर्वाचित लोकसभा सदस्यों का शपथ ग्रहण, स्पीकर का चुनाव, माननीय राष्ट्रपति का संबोधन और उस पर चर्चा शामिल होगी। राज्यसभा का 264वां सत्र 27 जून, 2024 से शुरू होकर 3 जुलाई, 2024 तक चलेगा। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेता विपक्ष दोनों को बोलने का अवसर मिलेगा। इस पहली चर्चा से ही स्पष्ट हो जाएगा कि विपक्ष सृजनात्मक चर्चा करेगा या फिर हंगामा और शोर-शराबे के बीच सदन की कार्यवाही को बाधित करेगा।

सही यही होगा कि सत्तापक्ष विपक्ष के सभी सांसदों को सुने और उनके आरोपों का जवाब नियमों के अंतर्गत अपनी बारी में दे। विपक्ष भी अमर्यादित और असंसदीय बहसों में न उलझे, खासकर ईवीएम जैसे मुद्दों पर बेवजह समय बर्बाद न करें। जब सदन के नेता बोलें तो विपक्ष नैतिकता का पालन करते हुए सदन में उपस्थित रहे।

कौन से मुद्दे इस बार संसद में चर्चा के लिए प्रभावी होंगे?

वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए, ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्ष ने अपने मुद्दे तय कर लिए हैं। इस बार के संसद सत्र में विपक्ष सत्ता पक्ष को तीन प्रमुख मुद्दों पर घेरने की योजना बना रहा है। पहला मुद्दा नीट परीक्षा में कथित गड़बड़ी और यूजीसी नेट की परीक्षा का रद्द होना रहेगा। जिस प्रकार देशभर में इन परीक्षाओं को लेकर गुस्सा बना हुआ है, विपक्ष इस विषय को भुनाने की कोशिश करेगा। दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा संस्थाओं के दुरुपयोग का है। विपक्ष अभी भी अपनी हार मानने को तैयार नहीं है और उसे लगता है कि संस्थाओं के दुरुपयोग के कारण ही वह चुनाव हारा है, विशेषकर कांग्रेस और राहुल गांधी। जिस तरह से राहुल गांधी ने ईवीएम पर बिना प्रमाण आरोप लगाए हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि वे इस मुद्दे को संसद में उठाने के लिए बेचैन हैं। तीसरा मुद्दा शेयर बाजार में कथित 30 लाख करोड़ रुपये के घोटाले का है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि एग्जिट पोल के माध्यम से खुदरा निवेशकों को 30 लाख करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया गया है। उनका कहना है कि चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने निवेशकों को प्रेरित किया और मीडिया के माध्यम से माहौल बनाने की कोशिश की, जबकि परिणाम सभी को ज्ञात थे। हालांकि वास्तविकता कुछ और है। न तो बाजार में ऐसा कुछ हुआ है और न ही किसी नियम का उल्लंघन हुआ है, लेकिन विपक्ष इस मुद्दे पर, विशेषकर राहुल गांधी, अदानी-अंबानी को घेरने की तैयारी में है।


मोदी सरकार के लिए यह सत्र क्यों महत्वपूर्ण?

18वीं लोकसभा का पहला सत्र सरकार के लिए दो कारणों से महत्वपूर्ण रहेगा।

1. डिजिटल इंडिया बिल: इस सत्र में चर्चा है कि सरकार डीपफेक वीडियो और कंटेंट से निपटने के लिए डिजिटल इंडिया बिल पेश करेगी। इस कानून के माध्यम से एआई-जनित डीपफेक वीडियो और अन्य ऑनलाइन सामग्री के खतरों पर लगाम लगाने की तैयारी है। यदि सरकार इस सत्र में यह बिल संसद में पेश करती है, तो उसे सभी दलों का समर्थन प्राप्त करना होगा। ऐसे कानून जो जनहित में हों, यदि सर्वसम्मति से पारित हो जाएं तो यह बेहतर होगा।


2. लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव: इस सत्र का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू सदन के अध्यक्ष का चुनाव होगा। लोकसभा अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए चुनाव 26 जून, 2024 को होगा। बहुमत से दूर बीजेपी को अपना स्पीकर तय करने के लिए सहयोगी दलों पर निर्भर रहना पड़ेगा। खबरें हैं कि नीतीश कुमार की जद(यू) और चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी भी इस पद पर दावा कर रही हैं। हाल के दिनों में हमने महाराष्ट्र जैसे राज्य में स्पीकर की भूमिका को महत्वपूर्ण होते देखा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि एनडीए में किस नाम पर आम सहमति बन पाती है। दूसरी तरफ, विपक्ष भी अपनी तैयारी कर चुका है और स्पीकर के चुनाव में अपना प्रत्याशी उतार सकता है। ऐसे में स्पीकर का चुनाव एक दिलचस्प राजनीतिक घटना बन जाएगा।


स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विधेयकों पर चर्चा आवश्यक

भारतीय संसद की आत्मा सांसदों की संख्या या पारित किए गए कानूनों की संख्या पर निर्भर नहीं करती है। इसकी आत्मा तो सदन में नागरिकों से जुड़े मुद्दों पर की जाने वाली चर्चाओं में निहित होती है। जब किसी विषय पर चर्चा होती है, तो उसके पक्ष और विपक्ष के पहलू उजागर होते हैं, जिससे एक अच्छा कानून बनता है। हाल के दिनों में देखा गया है कि विपक्ष के मोदी विरोध का खामियाजा संसद में होने वाली बहसों पर पड़ा है। 17वीं लोकसभा के कार्यकाल के दौरान पेश किए गए अधिकांश विधेयक (58%) उनके पेश किए जाने के दो सप्ताह के भीतर पारित हो गए। जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 और महिला आरक्षण विधेयक, 2023 दो दिनों के भीतर ही पारित हो गए। 35% विधेयकों को लोकसभा में एक घंटे से कम चर्चा के साथ पारित किया गया। केवल 20% से कम विधेयक समितियों को संदर्भित किए गए, और इनमें से 16% विधेयक विस्तृत जांच के लिए समितियों को भेजे गए, जो पिछले तीन लोकसभाओं की तुलना में कम थे।

लोकसभा में बजट चर्चाओं पर व्यतीत समय भी कम हो गया है। 2019 और 2023 के बीच, औसतन, लगभग 80% बजट बिना चर्चा के पारित किया गया। 2023 में तो पूरा बजट बिना चर्चा के पारित हो गया। पिछली लोकसभा के ये आंकड़े दर्शाते हैं कि लोकतंत्र के लिए विधेयकों पर विस्तृत और सार्थक चर्चा न होना कितना दुर्भाग्यपूर्ण है। स्वस्थ चर्चा से न केवल कानूनों की गुणवत्ता में सुधार होता है, बल्कि यह सुनिश्चित होता है कि नागरिकों के हितों की रक्षा हो सके। इसलिए, 18वीं लोकसभा को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए। विपक्ष का यह अधिकार है कि वह जनता के मुद्दों पर आवाज उठाए, लेकिन उसे गंभीर चर्चाओं में भी सक्रिय रूप से शामिल होना चाहिए। सत्तापक्ष को भी विपक्ष के साथ संवाद और समन्वय स्थापित कर सहयोग करना चाहिए। यह देश के हित में होगा क्योंकि अंततः संसद की कार्यवाही और सांसदों को मिलने वाला वेतन और सुविधाएँ आम जनता के टैक्स से ही आती हैं।


(लेखक राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, राउरकेला में शोधार्थी और फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल के संस्थापक एवं अध्यक्ष हैं।)

Tags:    

Similar News