Petrol Price Hike: पेट्रोल बना सिरदर्द
Petrol Price Hike: मनमोहन सिंह की कांग्रेसी सरकार पेट्रोल पर लगभग 9 रु. प्रति लीटर कर वसूलती थी, जो मोदी-राज में यह बढ़कर 32 रु. हो गया है। सरकार ने इस साल पेट्रोल-डीजल पर टैक्स के तौर पर 2.74 लाख करोड़ रु. वसूले हैं।
Petrol Price Hike: पेट्रोल और डीजल के दाम आज जितने बढ़े हुए हैं, पहले कभी नहीं बढ़े। वे जिस रफ्तार से बढ़ रहे हैं, यदि उसी रफ्तार से बढ़ते रहे तो देश की कारें, बसें, ट्रेक्टर, रेलें आदि खड़े-खड़े जंग खाने लगेंगी। देश की अर्थ-व्यवस्था चौपट हो जाएगी। मंहगाई आसमान छूने लगेगी। देश में विरोधी दल इस बारे में कुछ चिल्ल-पों जरुर मचा रहे हैं लेकिन उनकी आवाज का असर नक्कारखाने में तूती की तरह डूबता जा रहा है।
कोरोना महामारी ने इतनी जोर का डंका बजा रखा है कि इस वक्त कोई भी कितना ही चिल्लाए, उसकी आवाज कोई कंपन पैदा नहीं कर पा रही है। इस समय देश के छह राज्यों में पेट्रोल की कीमत 100 रु से ऊपर पहुंच गई है। राजस्थान के गंगानगर में यही पेट्रोल 110 रु. तक चला गया है। पिछले सवा महिने में पेट्रोल की कीमतों में 22 बार बढ़ोतरी हो चुकी है। उसकी कीमत को बूंद-बूंद करके बढ़ाया जाता है।
पेट्रोल की कीमतें एक साल में लगभग 35 प्रतिशत बढ़ी
दूसरे शब्दों में चांटा मारने की बजाय चपत लगाई जाती है। सरकार ने इधर किसानों को राहत देने के लिए उनकी फसलों के न्यूनतम खरीद मूल्य को बढ़ा दिया है। यह अच्छा किया है लेकिन कितना बढ़ाया है ? एक से छह प्रतिशत तक ! जबकि पेट्रोल की कीमतें एक साल में लगभग 35 प्रतिशत और डीजल की 25 प्रतिशत बढ़ चुकी है। खेती-किसानी की हर चीज पर बढ़े टैक्स के इस दौर में तेल की कीमत का बढ़ना कोढ़ में खाज का काम करेगा।
आज के युग में पेट्रोल और डीज़ल के बिना आवागमन और यातायात की कल्पना नहीं की जा सकती। भारत के एक कोने में पैदा होने वाले माल दूसरे कोने में बिकता है याने उसे दो से तीन हजार किलोमीटर तक सफर करना पड़ता है।
अब तो हाल यह होगा कि किसी चीज की मूल कीमत से ज्यादा कीमत उसके परिवहन की हो जाया करेगी। दूसरे शब्दों में मंहगाई आसमन छूने लगेगी। यह ठीक है कि सरकार को कोरोना से निपटने पर मोटा खर्च करना पड़ रहा है लेकिन उस खर्च की भरपाई क्या जनता की खाल उधेड़ने से ही होगी ?
मनमोहन सरकार में पेट्रोल पर ट्रैक्स 9 रु, मोदी राज में 32 रु
मनमोहन सिंह की कांग्रेसी सरकार पेट्रोल पर लगभग 9 रु. प्रति लीटर कर वसूलती थी, जो मोदी-राज में यह बढ़कर 32 रु. हो गया है। सरकार ने इस साल पेट्रोल-डीजल पर टैक्स के तौर पर 2.74 लाख करोड़ रु. वसूले हैं। इतने मोटे पैसे से कोरोना का इलाज पूरी तरह से मुफ्त हो सकता था। आज से सात-आठ साल पहले अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल की कीमत प्रति बेरल 110 डालर थी जबकि आज वह सिर्फ 70 डाॅलर है। इसके बावजूद इन आसमान छूती कीमतों ने पेट्रोल और डीजल को भारत में जनता का सिरदर्द बना दिया है। सरकार जरा संवेदनशील होती तो अपनी फिजूलखर्ची में जबर्दस्त कमी करती और पेट्रोल पहले से भी ज्यादा सस्ता कर देती ताकि लड़खड़ाती अर्थ-व्यवस्था दौड़ने लगती।