जनसंख्या नियंत्रण वाला 'अनुदान'

बात इमरजेंसी के दिनों की है.. संजय गांधी (Sanjay Gandhi) के नसबंदी मिशन (Nasbandi mission) का डंका बज रहा था.. पकड़ पकड़ के नस बंद की जा रही थीं

Newstrack :  Network
Published By :  Sushil Shukla
Update:2021-07-13 14:21 IST

शरद दीक्षित (फोटोः साभार सोशल मीडिया)

बात इमरजेंसी के दिनों की है.. संजय गांधी (Sanjay Gandhi) के नसबंदी मिशन (Nasbandi mission) का डंका बज रहा था.. पकड़ पकड़ के नस बंद की जा रही थीं.. सीतापुर (Sitapur) के नजदीक फरसदा में खबरें तो पहुंच गयीं, नसबंदी की मुहिम नहीं पहुंची थी..लेकिन जब सरकारी फरमान पहुंचा तो गांव के लोगों में नसबंदी योग्य पुरुषों की खोज की जाने लगी.. अमीन साहब को क्षेत्र के लोगों की नसबंदी कराने की जिम्मेदारी मिली थी.. जटिल काम था.. अमीन साहब की गांव में धाक थी.. गाहे बगाहे रुपये पैसे से लोगों की मदद कर देते थे सो थोड़ा मान सम्मान भी था। अमीन साहब ने गांव के टुकरू के सामने चुग्गा फेंका.. टुकरू हो! सुनौ.. कोई क बतायेव न..बिलाक प कैंप लागी.. वहिमा सरकार अनुदान देई.. तुमार नाव भेजि दिया है.. टुकरू खुश हो गये.. अमीन साहब! तुमार बहुतै अहसान.. टुकरू के पेट में अफारा मच गया..परपंच की बीमारी थी.. बात पेट से बाहर न निकले तो बैग्वाला बन जाती थी.. रात को पेट पकड़कर कराहने लगे.. बीबी रामरती समझ गयी.. गुर्रा कर बोली .. का है.. काहे मरे जाय रहे हौ.. कोई बात दबाए हौ.. टुकरू ने सिर हिलाया.. रामरती बोली.. तौ बकौ.. बैग्वाला खत्म करने का एकमात्र उपाय यही था.. गैस का कोई चूरन असर नहीं करता था.. टुकरू ने अनुदान वाली बात उगल दी.. अगले दिन अमीन साहब जब लोटा लिये झाड़ा फिर कर वापस आये तो देखा कि घर के बाहर लाइन लगी है.. गजरू, पुक्की, लोटन, सुकुला, तेवारी, डोरी सहित तमाम लोग लाइन लगाये खड़े थे.. अमीन मन ही मन मुस्काये..दिखावे में अनजान बनते हुए रूखी आवाज में बोले.. का बात? . सबेरे सबेरे का घर गासैं आय गयेव.. डोरे उछलकर सामने आ खड़े हुए.. साहब! कौन सा ऐसा गुनाह होय गवा, हम पंचन का अनुदान नाय दिहैयव.. अमीन साहब नकली गुस्सा दिखाते हुए टुकरू को गरियाने लगे..यू सार टुकरूवा चूतियै हय.. चलौ तुमहू सब जन अपनै आव.. समबार क तैयार रहेव.. ये सुन सब गदगद हो उठे और दुआएं देते हुए घर को चले गये..

सोमवार को अमीन साहब ने लढ़ी मंगवाई और अनुदान के इच्छुक गांव वालों को लादकर ब्लाक ले पहुंचे..गांव वाले मुफ्त के अनुदान के सपने देखते हुए भीतर जाने की अपनी बारी का इंतजार करने लगे..बाहर गेट पर थाने के दरोगा जी मय हमराही तैनात थे.. वो भीतर तो आने दे रहे थे लेकिन ब्लाक के स्टाफ खिलावन के इशारे के बगैर किसी को बाहर नहीं जाने दे रहे थे.. सबसे पहले नंबर आया डोरे का.. डोरे मुस्कराते हुए भीतर घुसे.. जिज्ञासा थी.. पता नाय अनुदान कौने काउंटर पर मिलै.. कहूं अइस न होय कि अंगूठा लगावय वाले का अनुदान न दें..इन आशंकाओं के बीच डोरे ने बरमबाबा को सवा रुपये का परसाद मानकर मन ही मन एकतरफा डीलिंग कर ली.. हे बरमबाबा हमका अनुदान दिवाय देव तौ हम तुमका इतवारैक सवा रुपिया केरा परसाद चढ़ाइब.. भीतर घुसने पर एक कर्मचारी ने हरा कपड़ा निकाला और डोरे से कहा.. यू पहिन लेव.. डोरे का माथा ठनका.. इका पहिन क का करब.. कर्मचारी मुस्कराते हुए बोला.. अनुदान इका पहिनेक बादै मिली.. न चाहते हुए डोरे ने कपड़ा पहन लिया.. अंदर कमरे में गये तो होश फाख्ता हो गये.. भीतर मरीजों के लेटने की डेस्क थी.. डाक्टर बैठे थे और सर्जिकल टूल कटोरे में रखे हुए थे.. डाक्टर मशीनी अंदाज में डोरे से बोले.. लेट जाओ.. डोरे समझ चुके थे.. यू ध्वाखा होई गा.. ससुरा अमीनवा फसाय दिहिस.. चिल्लाये.. हमका नाय चाही अनुदान.. जाय देव.. कमरे में मौजूद कर्मचारी इस सीन के अभ्यस्त थे.. दोनो हाथ पकड़कर डेस्क पर लिटा दिया.. डोरे जोर जोर से चिल्लाने लगे.. हाय भैया! हमका छोड़ि देव.. हमका अनुदान न चाही.. हमका बधिया न करव.. हमरे धरमपत्ता अकेले हैंय.. छोड़ि देव ददुआ.. लेकिन डाक्टर न माने.. डोरे की नसबंदी कर दी.. नसबंदी के बाद डोरे कमरे से बाहर निकले और लुटे पिटे तरीके से ब्लाक के गेट की तरफ बढ़ गये.. सुकुल ने डोरे की तरफ देखा बोल उठे.. कै रुपया क अनुदान मिला.. डोरे बिना जवाब दिये गेट पर पहुंच गये.. पीछे खड़े कर्मचारी ने इशारा किया.. आजमगढ़ वासी दरोगा जी ने कहा.. झोपड़िया के! अनुदान मिल गया अब जाओ.. इधर डोरे गेट से बाहर निकले उधर सुकुल मूंछ पर ताव देकर अनुदान लेने के लिए कमरे की तरफ बढ़ लिये..

शरद दीक्षित की फेसबुक वॉल से साभार

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