भारत में ई-लर्निंग की सम्भावनाएं और चुनौतियां-डॉ. गिरीश त्रिपाठी

आने वाले समय में ई लर्निंग की संभावनाओं में लगातार विस्तार की उम्मीद है । हमें पूरा भरोसा है इससे विद्यार्थियों का, शिक्षकों का, शिक्षा को समाज के लिए सुगम बनाने का रास्ता आसान होगा। शिक्षा का न केवल मात्रात्मकविस्तार होगा, बल्कि गुणात्मक विस्तार में भी हम सफलता हासिल करेंगे।

Update:2020-05-05 16:33 IST

 

 

 

 

 

 

प्रो. गिरीश त्रिपाठी

जीवन के अनेक क्षेत्रों में मनुष्य ने अपने विकास के क्रम के साथ-साथ तकनीक का भी विकास किया। तकनीक के विकास के चलते जीवन के सभी आयामों में विलक्षण परिवर्तन हुए हैं। ये परिवर्तन न केवल मात्रात्मक विस्तार (Quantitative expansion) के रूप में हैं। बल्कि गुणात्मक भी हैं। जिसके कारण तकनीक का लाभ जीवन के अलग-अलग क्षत्रों में अलग-अलग स्थानों पर, (जो तकनीक का उपयोग करते हैं) लोगों ने उठाया है।

ई-लर्निंग में भारत का विश्व में दूसरा स्थान

भारत में शिक्षा का तन्त्र अत्यन्त व्यापक है। अभी अमेरिका ने एक सर्वेक्षण किया है, उस सर्वेक्षेण के आधार पर ई-लर्निंग पाठ्यक्रम में भारत अमेरिका के बाद विश्व में दूसरा स्थान रखता है। इस सर्वेक्षण में ई-लर्निंग में नामांकन को आधार बनाया गया था।

शिक्षा के क्षेत्र में भी तकनीक के उपयोग से न केवल शिक्षा को आमजन तक पहुँचाने में सहूलियत हुई बल्कि शिक्षा के जो व्यापक उद्देश्य हैं, क्रियेशन ऑफ नाॅलेज, ट्राॅन्समीशन ऑफ नाॅलेज और प्रिजर्वेशन ऑफ नाॅलेज, इन तीनों को पूरा करने का काम भी सफलतापूर्वक किया जा सका।

यही नहीं, साथ ही साथ उद्योग, कृषि, व्यापार एवं सेवा के क्षेत्र में जिस तरह के लोगों की आवश्यकता है, हम उस तरह के लोगों को अलग-अलग क्षेत्रों के लिए उपलब्ध कराने में भी सफल हो सकें। तभी सफल होंगे।

तकनीक ने आज शिक्षा को न केवल सर्वसुलभ बनाने की दिशा में भूमिका निभाई है। बल्कि उसे गुणवत्तापरक बनाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसी के कारण युवाओं और शेष समाज का रूझान आज ई- लर्निंग की तरफ़ लगातार बढ़ रहा है।

ई-लर्निंग का तात्पर्य नेटवर्किंग के माध्यम से दूरस्थ बैठे हुए लोगों को शिक्षण के निर्देश सुलभ कराना है।

डिजीटल लाइब्रेरी ने आसान बनाई पुस्तकों तक पहुंच

डिजीटल लाइब्रेरी के माध्यम से हम उन पुस्तकों तक अपने घर में बैठे हुए पहुँच सकते है जो पहले हमें संभव नहीं लगता था।

इन सब दिशाओं में सफलता के कई सोपान तय भी किये गये हैं। संभावनाओं का विस्तार हुआ है। लोगों की अपेक्षाओं में भी गुणोत्तर वृद्धि हुई है।

आज यह शिक्षा लोगों में लोकप्रिय हो रही है। क्योंकि यह सस्ती है। इसमें लचीलापन है। व्यक्ति अपने स्थान पर अपने समय के अनुसार, अपने रूचि के पाठ्यक्रमों में अपना नामांकन करा सकता है।

आज ई-लर्निगं के जो सोर्सेज और प्लेटफार्म हैं, उनमें ज्ञानवाणी , दूरदर्शन, स्वयं, स्वयंप्रभा, नेशनल डिपाजिटरी ऑफ ओपेन लर्निंग के साथ ही साथ यू ट्यूब, ज़ूम, व्हाटसएप पर अनेक प्रकार के व्यक्तिगत और स्वतत्रं एप भी लोगों ने विकसित किये हैं।

नॉलेज रूटेड स्वदेशी सिस्टम पर आधारित एप विकसित करने की जरूरत

हमें केवल दूसरों के एप्स को कापी करने की आवश्यकता नहीं है। अपने देश की परिस्थितियों, अपने जीवन मूल्यों, अपनी संस्कृति को समझते हुए, हमें अपने पारम्परिक नाॅलेज में रूटेड एक स्वदेशी सिस्टम विकसित करने की भी चुनौती हमारे सामने है। हालाॉकि इस ओर हमारे विशेषज्ञ, सरकार और विद्यार्थी, शिक्षक भी, सब मिलकर प्रयास कर रहे है।

ये विश्वविद्यालय है दूरस्थ शिक्षा पर आधारित

फेस-टू-फेस टीचिंग में एनीमेशन का अभाव है। जबकि ई-लर्निंग में एनीमेशन को जगह मिली हुई है। इसीलिए ई-लर्निंग के जो प्रजेन्टेशन हैं, उनमें विद्यार्थी की रूचि फ़ेस टू फ़ेस टीचिंग की तुलना में बढ़ रही है । यह उनमें अधिक उत्साह का कारण भी बन रहा है।

यही वजह है कि कई निजी व कई सरकारी विश्वविद्यालय दूरस्थ शिक्षा के माध्यम के रूप में ई- लर्निंग के सफल प्रयोग कर रहे हैं। इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय का नाम लिया जा सकता है। यह पूरा का पूरा विंश्वविद्यालय दूरस्थ शिक्षा और ई- लर्निंग पर आधारित है।

जबकि फ़ेस -टू-फेस टीचिंग में न केवल हमारे सामने कन्टेन्ट साझा होता है, न केवल हम टीचर के सामने इन्टरेक्ट करते हैं। बल्कि जो अपने सहभागी विद्यार्थी होते हैं, उनके साथ भी इन्टरेक्शन के माध्यम से हमारे ज्ञान में अभिवृद्धि होती है।

एक प्रतिस्पर्धा का वातावरण होता है, इस प्रतिस्पर्धा केवातावरण में विद्यार्थियों में जो कौशल और कुशलता की वृद्धि होती है, उसे ई-लर्निगं के माध्यम से हम कैसे और विकसित कर सकते है?

फेस टू फेस टीचिंग व ई-लर्निंग दोनो जरूरी

मेरा अपना व्यक्तिगत अनुभव है कि फ़ेस-टू-फेस टीचिगं और ई-लर्निगं दोनों हाईब्रिड मोड में हमारेटीचर और छात्र के सामने उपलब्ध होना चाहिए ।हमारे लिए शिक्षा की परम्परा, उसके उद्देश्य, विधार्थियों की आवश्यकता, शिक्षकों की गुणवत्ता और इन सबके विस्तार में दोनों ही मोड़ जरूरी है। इसलिए हाईब्रिड मोड अर्थात फेस-टू-फेस टीचिंग और ई-लर्निंग इन दोनों को ही हमें प्रमोट करने की आवश्यकता है।

ई-लर्निंग की अनन्त और अपार संभावनाओं पर अपने सुझाव और इसकी विशेषता अनेकविद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों ने साझा किये है। जो यह बताता है कि इसके आधारपर शिक्षा की गुणवत्ता और उस गुणवत्ता को विद्यार्थियों तक पहुँचाने में सहूलियत हो रही है।

विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों ने अपनाए अपने ई लर्निंग मॉडल

अनेक विश्व विद्यालयों, महाविद्यालयों ने अपने स्तर पर ई-लर्निंग के जो मोड आर्गेनाईज किये है , उनके माध्यम से ई-लर्निंग पाठ्यक्रमों में लगाकर बढ़ रही संख्या भी विद्यार्थियों की रूचि को दर्शाती है।

कई बार हमने इसे अपने पारम्परिक नाॅलेज के रूट्स में स्थापित करके इसे विद्यार्थियों तक पहुँचानेमें सफलता हासिल की। यह शिक्षा न केवल मात्रात्मक विस्तार बल्कि गुणात्मक विस्तार में भी हमारेउद्देश्य को पूरा करने में बड़ी सहायक होगी, इसमें कोई संदेह नहीं है।

इस दृष्टि से जहां भी कभी विचार किया जाता है तो ई-लर्निंग की, अपने देश में, अपने विद्यार्थियों के बीच, अपने शिक्षकों के बीच, अपार संभावनाएं दिखायी पड़ती है।

परन्तु इसकी कुछ चुनौतियां भी है। तकनीक के प्रयोग की कुछ सावधानियां भी होती है। यदि हमने तकनीक को सकारात्मकता के साथ इस्तेमाल किया, तभी यह हमारे उद्देश्य को पूरा करने में सफलहोगी।

संकट में फेस टू फेस टीचिंग

इस वैश्विक त्रासदी के अवसर पर फेस-टू-फेस टीचिंग के सामने कठिनाई खड़ी हो गई है। शैक्षणिक हानि हो रही है। इस शैक्षणिक हानि को न्यूनतम करना ई- लर्निंग की सबसे बड़ी चुनौती है।

इसके माध्यम से हम ई-कन्टेन्ट को अपलोड करके इस क्षतिपूर्ति को कम करने में सफलता हासिलकर सकते है । यही नहीं, भविष्य में उनकी रूचि में विस्तार करके हाईब्रिड मोड के माध्यम से अपनी शिक्षा के उद्देश्य को पूरे मानव समाज में व्यापक रूप से प्रसारित करने में भी सफलता हासिल की जा सकती है।

इस संभावना में भी बड़ी चुनौती है। वह यह है कि घर में बैठे हुए विद्यार्थियों की मन: स्थिति व तनाव की स्थिति को समझ कर काउंसिलिंग सेंटर के माध्यम से ई-कंटेंट तैयार करना और उसे अपलोड करना।

इसके लिए हमें शिक्षकों और विद्यार्थियों दोनों को समान रूप से इस दिशा में न केवल अग्रसर करनेबल्कि उन्हें योग्य बनाने के भी प्रयास करने होंगे। यह भी एक बहुत बडी़ चुनौती है।

आज इसमें कोई संदेह नहीं कि इन्टरनेट सुविधा हमारे पास उपलब्ध है, उसके आधार पर हमारे विद्यार्थियों में इस ई-लर्निंग के प्रति जो उत्साह एवं रूचि बढी है,इस चुनौती का मुकाबला करने में निश्चित तौर पर शिक्षण संस्थायें, सरकार सफलता हासिल करेगी, ऐसा विश्वास बनता हुआ दिख रहा है।

विकसित हो रही इंटर डिसीप्लीनरी विशेषज्ञता

क्योंकि इससे लोगों में दक्षता बढ़ रही है। वे लोग जो अनेक कारणों से नियमित कक्षाएं करने में स्वयं को असमर्थ मानते थे, वे आज ई-लर्निंग के माध्मय से न केवल इन पाठ्यक्रमों में नामांकित हो रहे है बल्कि इनमें उनकी गुणवत्ता के विकास के माध्यम से इन्टरडिसीप्लीनरी विशेषज्ञता विकसित हो रही हैं।जिसका लाभ न केवल उनको बल्कि अर्थव्यवस्था और समाज को भी मिल रहा है।

आज स्पेशल इकोनाॅमिक जोन की तरह स्पेशल एजूकेशनल जोन को स्थापित करने की बात हो रहीहै।इन स्पेशल एजूकेशनल जोन के स्थापित होने के बाद ई-लर्निंग के माध्यम से न केवल हमें अपनेदेश के विशेषज्ञों की विशेषज्ञता का लाभ मिलेगा।

बल्कि जो विश्व भर में विशेषज्ञ फैले हुए हैं, जिनके साथ हमारा संवाद नहीं हो सकता, उनके साथ संवाद स्थापित करने के लिए हमें विदेशों कीओर मुँह करने की आवश्यकता नहीं है।

ई लर्निंग का दायरा बढ़ने की उम्मीद

हम घर बैठे, अपने देश में रहते हुए, उन विशेषज्ञों का, उन पाठ्यक्रमों का जो हमारे देश के अन्दर उपलब्ध नहीं है, उनका लाभ भी ई-लर्निंग के माध्यम से उठा सकेंगे। यह संभावना भी आज हमारे सामने व्यापक रूप में बड़ी ई-लर्निंग के अवसर के विस्तार के लिए जिस तरह से दिशा-निर्देश सरकार के स्तर पर लगातार आरहे है, सुझाव आ रहे है, उन सुझाओं और निर्देशों का पालने करते हुए जिस तरह से विश्वविद्यालों और महाविद्यालयों ने इस दिशा में अपनी प्रगति का एक खाका खींचा है ।

आने वाले समय में इनसंभावनाओं में लगातार विस्तार की उम्मीद है । हमें पूरा भरोसा है इससे विद्यार्थियों का, शिक्षकों का, शिक्षा को समाज के लिए सुगम बनाने का रास्ता आसान होगा। शिक्षा का न केवल मात्रात्मकविस्तार होगा, बल्कि गुणात्मक विस्तार में भी हम सफलता हासिल करेंगे।

( लेखक हायर एजुकेशन काउंसिल के अध्यक्ष हैं।)

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