राग - ए- दरबारी: हाय..... पब्लिक मनी के लिए दर्द कब पैदा होगा?

Update:2017-12-29 16:34 IST

संजय भटनागर

समय आ गया है कि हम ईमानदारी को पुनर्परिभाषित करें । एक वरिष्ठ और सामाजिक मान्यताओं के अनुसार बेहद ईमानदार आईएएस अफसर के कथन का उद्धरण नितांत समीचीन होगा कि ईमानदारी का मापदंड महज रिश्वत नहीं लेना न होकर उनका जनता के धन यानी ‘पब्लिक मनी ‘ के प्रति संवेदनशीलता होना चाहिए। कारण साफ है क्योंकि जनता का पैसा उच्च कुर्सी पर बैठे नौकरशाह या राजनीतिक नेता का नहीं है बल्कि जनता का है।

पब्लिक मनी से खिलवाड़ उत्तर प्रदेश की खासियत रही है और विडम्बना यह है कि इसके प्रति न तो आला अफसरों में दर्द है न ही जनता में जागरूकता। राजनीतिक स्वार्थ के वशीभूत हो होकर विभिन्न परियोजनाएं चलायी जाती हैं जो कालांतर में अनुपयोगी अथवा सर्वथा निरर्थक साबित होती हैं। यह विकासशील राज्यों अथवा देशों के लिए पशोपेश की स्थिति होती जरूर है लेकिन सिर्फ पॉपुलर पॉलिटिक्स के नाते पब्लिक मनी का बेवजह दुरुपयोग अनियमतता नहीं बल्कि अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए।

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उत्तर प्रदेश में मायावती ने अपने मुख्यमत्री काल में पत्थरों के विशाल भवन खड़े कर दिए। अफसरों ने इसमें सहयोग दिया। अब उसमे भ्रष्टाचार का एंगल छोड़ भी दें तो उसकी जन उपयोगिता पर तो चर्चा होनी ही चाहिए। इसी तरह लखनऊ मेट्रो का पहला चरण एयरपोर्ट से चारबाग रेलवे स्टेशन तक बनाया गया जो चुनाव की टाइमिंग के अनुसार बनाया गया। यह बात कोई आम आदमी भी बता देगा कि मेट्रो की प्रथम उपयोगिता चारबाग से हजरतगंज लाइन की थी। प्रदेश में पिछली अखिलेश सरकार ने वोट लुभावन बहुचर्चित लखनऊ आगरा एक्सप्रेसवे का निर्माण किया लेकिन उसकी उपयोगिता तो है क्योंकि बड़ी संख्या में वहां उस पर चलते हैं।

क्या यही बात लखनऊ में लगभग 1500 करोड़ की लागत वाले गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट और लगभग 700 करोड़ के जयप्रकाश कन्वेंशन सेंटर प्रोजेक्ट के बारे में कही जा सकती है जो इतना पैसा लगाए जाने के बाद भी राजनीतिक भूलभुलैया और जांचों में फंसे हैं?

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सरकार आती है और पब्लिक मनी पीकर बैठे बड़े प्रोजेक्ट अधूरे पड़े रहते हैं। यह अपराध है और गंभीर अपराध है। क्या ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि जनता की तरफ से इसके जिम्मेदारी निर्धारित की जाए, सरकारी ऑडिट अथवा ‘कैग’ की जांच छोड़ दीजिये। प्रदेश में योगी सरकार अखिलेश सरकार द्वारा बनवाई गयी साइकिल ट्रैक को तोडऩा चाह रही है बावजूद इसके कि इस पर जनता का करोड़ों रुपया खर्च हो चुका है।

समय आ गया है कि जनता को और जागरूक होना पड़ेगा अपने पैसे के प्रति। जनता पर अहसान करने के नाम पर अनाप शनाप खर्च सिर्फ ऑडिट नहीं बल्कि और गंभीर प्रावधानों से गुजरना चाहिए। अमेरिका के चतुर्थ राष्ट्रपति जेम्स मेडिसन ने बिलकुल सच ही कहा था कि ‘चैरिटी इस नो पार्ट ऑफ द ड्यूटी ऑफ द गवर्नमेंट’ और यही बात जनता को समझनी है।

(लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत के कार्यकारी संपादक हैं)

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