Pune Road Accident: दोषी कौन?
Pune Road Accident: क्या अंजाम हुआ इस अंजाम का? दो परिवारों में मातम और आरोपी के परिवार पर की इस घटना का केस। दोषी किसे कहा जाएगा?
Pune Road Accident: जिंदगी ना मिलेगी दोबारा' यह वाकई सच है लेकिन यह जिंदगी कब, कौन, कहां, कैसे गंवाएगा यह कोई नहीं जानता। कहां जानते थे मध्य प्रदेश के वे दोनों इंजीनियर अनीश अवधिया और अश्वनी कोष्टा जो पुणे जैसे बड़े शहर में रहते थे और जिन्होंने अपने-अपने घर जल्दी ही जाने की टिकट बना रखी थी। वे अपनी अन्य सामान्य रातों की तरह उस रात भी एक पार्टी में शामिल होकर बाइक पर बैठकर जा रहे थे, जब शराब के नशे में एक 17 वर्षीय नाबालिग ने 200 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही अपनी पोर्श कार से उन्हें टक्कर मारी और यह टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि वे सदा के लिए मौत की नींद में सो गए। उनके घर वाले जो कि उनके आने का इंतजार कर रहे होंगे, क्या बीती होगी उन पर जब उनके शवों को उन्होंने देखा होगा।
सड़क हादसे इतने क्रूर होते हैं कि बिरलों की ही इसमें जान बच पाती है अन्यथा मौत के पंजे से कब, कौन , कैसे बच पाया है आज तक। कहीं ड्राइवर को गाड़ी चलाते समय झपकी आ जाती है, जिसके कारण बस या कार सैकड़ों फीट नीचे खाई में जा गिरती है या किसी अन्य वाहन से टकराती है तो कभी सड़क हादसे में नशे की हालत में ड्राइवर लोगों की जिंदगियों से खिलवाड़ कर रहे होते हैं तो कभी सड़क हादसों का एक बड़ा कारण सड़कों की खराब स्थिति, सह चालकों की गलती, तेज स्पीड आदि हो भी होते हैं। इंसान की जान की कोई कीमत नहीं है आजकल। सड़क पर हादसों का शिकार हुए व्यक्तियों की सिर्फ यही गलती होती है कि वह उसे दुर्घटना के समय सड़क पर होते हैं।
फिलहाल बात पुणे सड़क हादसे की। एक नाबालिग अपने 12वीं बोर्ड के रिजल्ट की पार्टी करने अपने दोस्तों के साथ पब में गया था। जहां बताया जाता है कि उसने 48,000 रुपए का बिल भी बनाया था। शराब के नशे की हालत में ही उसने ड्राइवर होने के बावजूद खुद गाड़ी चलाई और इस गैर इरादतन दुर्घटना को अंजाम दिया। क्या अंजाम हुआ इस अंजाम का? दो परिवारों में मातम और आरोपी के परिवार पर की इस घटना का केस। दोषी किसे कहा जाएगा? हमारे अपने द्वारा बच्चों को दी गई अतिशय छूट को, बच्चों के बदलते व्यवहार को जिसमें वे खुद को छोटी उम्र में ही बड़ा मानने लगते हैं, बच्चों की जिद मानने वाले अभिभावकों को, किसको? नाबालिग इस बात से बिल्कुल भी अनभिज्ञ नहीं था कि उसने शराब पी है और इस स्थिति में गाड़ी चलाने का नतीजा क्या हो सकता है। क्या वह अपनी गाड़ी में पीछे बैठे दोस्तों के उकसावे में आ गया था? क्या वह खुद अपना शो ऑफ करने को अधीर था? जरूर उसने गाड़ी पहली बार तो नहीं चलाई होगी। यह कृत्य क्षम्य में तो किसी भी हालत में नहीं है क्योंकि नाबालिग इतना भी छोटा न था कि उसे अपने सही- गलत होने का एहसास भी न हो। जो नाबालिग यह जानता है कि शराब पीने से ही उसकी पार्टी पूरी होगी वह उसका नफा- नुकसान भी अवश्य ही जानता होगा।
जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने 75 हजार रुपए के बॉन्ड और सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखने की सजा सुनाते हुए नाबालिग आरोपी को जमानत दी थी। पूरे देशभर में इस फैसले का विरोध हुआ। पुणे में लोगों द्वारा हड़ताल की गई और यह मीम्स सोशल मीडिया पर वायरल हो रही थी कि अब पुणे में निबंध लिखने का उद्योग लगाया जाएगा। तो महाराष्ट्र सरकार ने बोर्ड से इस फैसले पर फिर विचार करने को कहा। पुलिस द्वारा यह बताये जाने पर कि अपराध क्रूर तरीके से किया गया और आरोपी 17 साल 8 महीने का है। आरोपी महंगी कार चलाता है तथा शराब भी पी रहा है और उसका व्यवहार बालिग जैसा है। इसके बाद बोर्ड ने जमानत का फैसला रद्द कर आरोपी को 5 जून तक के लिए किशोर सुधार गृह भेज दिया।
एक नाबालिग गंभीर अपराध करता है लोगों की जान ले लेता है ऐसे में उसे समाज में बिना किसी सजा के कैसे वापस भेजा जा सकता है। पीआईबी की रिपोर्ट के मुताबिक बिना लाइसेंस वाले और 17 साल से कम उम्र में गाड़ी चलाने वालों की वजह से साल 2012 से लेकर 2014 तक देश में हजारों दुर्घटनाएं हुई हैं। बात करें बिना लाइसेंस वालों से होने वाली दुर्घटनाओं के बारे में तो साल 2012 में यह आंकड़ा 25463, 2013 में 37176 और साल 2014 में 39314 था। वहीं 17 साल से कम उम्र के लोगों की वजह से साल 2012, 2013 और 2014 में क्रमश: 20110, 21496 और 19187 दुर्घटनाएं हुई हैं। भारत में बिना लाइसेंस वाहन चलाना एक अपराध है। लोगों की सुरक्षा के मद्देनजर सरकार ने नियम बनाया तो है लेकिन सख्ती न होने के चलते लोग आज धड़ल्ले से यह नियम तोड़ते नजर आ रहे हैं। वहीं कम ड्राइविंग के खिलाफ कड़े कानून होने का पता रहने के बावजूद भी मां-बाप इसके परिणाम को दरकिनार कर देते हैं।
इसके पहले भी सन् 2016 में एक सड़क दुर्घटना में 16 साल के एक नाबालिग ने अपने पिता की मर्सिडीज बेंज कार से एक एग्जीक्यूटिव को रौंद दिया था। एक 14 साल का बच्चा दुष्कर्म में लिप्त पाया जाता है, तो एक नाबालिग अपने ही स्कूल के 2 साल के बच्चे की गला रेत कर हत्या कर देता है। कहीं नाबालिग विद्यार्थी अपने ही अध्यापक की हत्या कर देता है तो कहीं कोई नाबालिग अपने माता-पिता या परिवार वालों की सिर्फ इसलिए हत्या कर देता है कि उसे मोबाइल फोन या किसी अन्य शौक के लिए घर से पैसे नहीं दिए गए। क्या है यह सब? आज तकनीक इतनी आगे बढ़ गई है कि हमारे समय में जो जानकारियां हम 18 वर्ष के हो जाने के बाद जान पाते थे वह आज के बच्चे 10 वर्ष की उम्र में ही जान लेते हैं। वह भले ही शरीर से, सोच से परिपक्व न हुए हों पर इंटरनेट की आंधी ने उन्हें समय से पहले ही ऐसी जानकारी तक जल्दी ही पहुंचा दिया है और इनके अंदर अधकचरा ज्ञान भी भर दिया है। यानी जानकारियां तो हैं इनके पास पर इससे नफा-नुकसान क्या है यह नहीं पता होता।
प्रयोग कैसे करना है यह तकनीक वे जानते हैं लेकिन वे यह नहीं जानते कि इसे कब रोकना है या इसे कब स्टॉप कहना है। गाड़ी या दोपहिया चलाने का लाइसेंस देते समय सिर्फ गाड़ी चलाना देखना ही काफी नहीं होता, गाड़ी को रोकना और वह भी सही समय पर रोकना उससे भी अधिक महत्वपूर्ण होता है। अब जबकि सोशल मीडिया और इंटरनेट ने उन्हें समय से पहले ही बड़ा कर दिया है ऐसे में उनके नाबालिग और बालिग होने में बड़ा फर्क ही क्या रह जाता है। कानून में बदलाव तो आवश्यक है ही उससे भी कहीं अधिक आवश्यक है कि हम अपने बच्चों के व्यवहार पर नजर रखें। यह बात आप, हम और सभी जानते हैं कि आपके, हमारे, सबके शहरों में कितने ही नाबालिग बिना किसी लाइसेंस के दोपहिया वाहन या गाड़ियां चला रहे होते हैं जिसकी खबर उनके माता-पिता को भी अधिकतर होती है। फिर भी हम उन्हें न तो रोक पाते हैं, न ही रोक रहे होते हैं। ऐसे में कई बार ट्रैफिक पुलिस वालों की भी चांदी हो जाती है कि वह उन्हें उनके माता-पिता को जेल भेजने का डर दिखाकर अच्छा खासा पैसा बनाते हैं। जब पुणे जैसा हादसा हो जाता है तब इस तरह की घटनाएं संज्ञान में आती है। इस तरह के अनेकों केस हमारे देश में होते रहते हैं । उम्मीद करते हैं कि यह केस जल्दी से हमारी यादों से न उतरे और माननीय अदालत इसमें कोई सही और महत्वपूर्ण फैसला जरूर दें।