कांग्रेस के कद्दावर नेता आनंद शर्मा ने कुछ समय पहले एक ट्वीट किया था कि ‘प्रधानमंत्री जी सांसदों को सात दिनों के भीतर अपना आवास खाली करने का आपका हुक्म बहुत ही सख्त है। यह मनमाना और पक्षपातपूर्ण है। पूर्व सांसदों को एक चपरासी से भी कम पेंशन मिलती हैं। सरकार के सचिवों को भी छह महीने तक आवास बरकरार रखने की अनुमति है।’
सवाल उठता है कि हमारे देश के सांसद, विधायक एवं अन्य माननीय क्या इतने गरीब हैं जैसा आनंद शर्मा ने कहा है? एडीआर की एक रिपोर्ट के अनुसार 91फीसदी सांसद करोड़पति हैं जिनकी कुल सम्पति औसतन 20 .93 करोड़ है। आंकड़ों के अनुसार, 2009 में 58 फीसदी सांसद करोड़पति थे। आज इनकी संख्या 91 फीसदी है। इनमें कांग्रेस के 96 फीसदी, बीजेपी के 88 फीसदी और डीएमके के 96 फीसदी, टीएमसी के 91 फीसदी तथा एलजेपी और शिव सेना के सारे सांसद करोड़पति हैं। महिला सांसदों में 36 फीसदी करोड़पति हैं। इकनोमिक सर्वे के अनुसार सांसदों की सैलरी व अन्य भत्तों के मद में 2015-16 में 1.77 अरब रुपए खर्च हुए। इसमें यात्रा व दैनिक भत्ते का खर्च का आंकड़ा शामिल नहीं है। इन्हीं माननीयों के लोकसभा और राज्यसभा में वाकआउट व हुड़दंग की वजह से 2018 में 1.98 अरब रुपए बर्बाद हो गए। प्रत्येक सांसद पर महीने में करीब 2,70,000 रुपए खर्च होते हैं। यद्यपि दूसरी सुविधाएं जैसे मुफ्त आवास, चिकित्सा और टेलीकॉम की सुविधा इसमें शामिल नहीं है। इनको जो वेतन मिलता है उस पर इनकम टैक्स नहीं देना होता है।
एडीआर के मुताबिक वर्तमान में कुल 475 सांसद करोड़पति हैं जिसमें मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के पुत्र नकुल नाथ (छिंदवाड़ा से सांसद)के पास सबसे ज्यादा सम्पति (660 करोड़) है फिर भी आनंद शर्मा के अनुसार सांसद गरीब हैं। हमारे विधायक भी पीछे नहीं है। उत्तर प्रदेश में एडीआर के अनुसार 2017 में 322 यानी 10 में 8 विधायक करोड़पति थे। 2012 में 271 यानी 67 फीसदी विधायक करोड़पति थे। मध्य प्रदेश में 72 फीसदी विधायक करोड़पति हैं। काश ऐसे गरीबों जैसा, देश का हर गरीब हो जाये।
आनंद शर्मा जी, आंकड़े साफ बताते हैं कि हमारे सांसद इतने गरीब नहीं हैं। हारने के बाद भी महीनों-सालों तक सरकारी बंगलों पर कब्जा जमाए रखने की प्रवृति के खिलाफ मोदी सरकार का फैसला बिलकुल जायज है।
आम आदमी के चेहरे पर खुशियां लाने का हर नेता दावा और दम्भ करता है लेकिन सबसे ज्यादा शोषण भी इसी आम आदमी का होता है। लेकिन तब भी वो देश के भले की सोचता है। प्रधानमंत्री के आह्वन पर गैस सब्सिडी छोड़ देता है लेकिन हमारे माननीय में बस चार पांच हैं जिन्होंने सब्सिडी छोड़ी। बाकी सांसद विधायक जनता के सामने मिसाल बनने की जगह खुद जनता पर बोझ बन गए हैं। हमारे यहां छोटे से छोटा नेता भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट की जगह महंगी गाडिय़ों पर सरकारी खर्चे पर चलता है। क्यों नहीं वह जर्मनी चांसलर एंजेल मैर्केल से सीख लेता है जो पब्लिक ट्रांसपोर्ट से काम पर जाती हैं? इस संदर्भ में नरेंद्र मोदी जी ने सिओल शांति पुरस्कार के रूप में मिली 1.30 करोड़ रुपए की राशि पर लगने वाले टैक्स की माफी को निरस्त करने का अनुरोध करके अन्य सांसदों को देश के कल्याण में योगदान एवं भागीदार बनने की सीख दी। मुझे नहीं लगता इसको हमारे सांसद गंभीरता से लेंगे। संसद की कैंटीन में मिलने वाली सब्सिडी जैसी चीज को जब वे छोड़ नहीं पा रहे तो बाकी का क्या कहें। कायदे से जो जनप्रतिनिधि हैं उन्हें यह सारी सुविधाएं इनकी आर्थिक हैसियत को देखते हुए नहीं मिलनी चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)