उत्तर प्रदेश में सरकार चलने और चलाने का जहां तक सवाल है,पिछले शासन कालों में देखा गया कि या तो सरकार मुख्यमंत्री सचिवालय से चलती है या प्रभुत्व मुख्य सचिव का रहता है। प्रदेश की वर्तमान सरकार के सन्दर्भ में तो लगता है कि यह दोनों ही स्थानों से नहीं चलती है बल्कि तीसरी जगह की दखल ज्यादा है।
अधिकारियों की एक बड़ी जमात इस समय एक अजीब पशोपेश में है कि उनके आका तो लखनऊ में बैठते हैं लेकिन अधिकंाश निर्देश या तो केंद्र के माध्यम से मिलते हैं अथवा केंद्र की योजनाएं और उनका क्रियान्वयन ही सर्वोपरि है। नीति आयोग की ‘माइक्रो लेवल’ पर दखल अधिकारीयों को चकित किये हुए है। इससे न केवल क्रियान्वयन में दिक्कतें आ रही हैं बल्कि प्रदेश स्तर पर दीर्घकालीन योजनाएं बनाना टेढ़ी खीर हो रहा है।
प्रदेश के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी बताते हैं कि ब्यूरोक्रेसी पर ‘डिलीवरी’ न कर पाने के आरोप तभी से लग रहे हैं जबसे योगी सरकार ने कार्य शुरू किया है लेकिन असली मुश्किल केंद्र और प्रदेश के बीच है। बजाय इसके कि केंद्र और प्रदेश में एक ही पार्टी की सरकार होने का फायदा उठाया जाये जो निश्चित तौर पर होगा भी लेकिन फिलहाल उहापोह की स्थिति है।
अगर सरकार के अंदरूनी सूत्रों की मानी जाए तो प्रदेश के अनेक मंत्री बड़ी योजनाओं के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से सुझाव लेना पसंद करते हैं। वैसे यह एक तरह से गलत भी नहीं है लेकिन इस तरह की आदत न होने की वजह से अधिकारियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ऊर्जा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम का खुलासा न करने की शर्त पर बताया कि हालत यह है कि बिजली आपूॢत शेड्यूल, ट्रांसफार्मर्स की क्वालिटी और उपलब्धता तक पर केंद्र के निर्देश हावी रहते हैं। कुछ मामलों में यह उचित भी है लेकिन दूसरी तरफ ‘लाइन ऑफ कमांड’ गड़बड़ा रही है।
सरसरी तौर पर तो उन्हीं विभागों के अधिकारी काम करते नजर आ रहे हैं जो विभिन्न योजनाओं में अपनी पहल लेते हैं अन्यथा रूटीन में तो दिक्कतें ही दिक्कतें हैं। यह भी लगभग सर्वमान्य है कि मुख्यमंत्री सचिवालय में वो पकड़, प्रशासनिक तेजी और एक हद तक अपेक्षित क्षमता की कमी है जो पिछली सरकार में नजर आती थी। फिर मुख्यमंत्री का विश्वास भी गिने चुने अधिकारियों पर ही दिखाई पड़ता है यानी योगी अपनी टीम नहीं बना सके हैं। यही नहीं, मुख्य सचिव राजीव कुमार के रूप में एक योग्य अधिकारी रहते हुए भी मुख्यमंत्री उसका समुचित इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं, ऐसी आम धारणा है।
अब केंद्र को योगी की प्रशासनिक योग्यता पर विश्वास नहीं है अथवा योगी को रोजमर्रा की योजनाओं में केंद्र की दखल नहीं पसंद है, ये आम आदमी के सरोकार के विषय ही नहीं है। जनता काम चाहती है, तेज काम चाहती है , ऐसे या वैसे। वैसे भी, आम जनता के धैर्य की सीमा पांच साल होती है, अभी तो शुरुआत है। उम्मीद है कि कोई भी सरकार बड़े जनादेश को व्यर्थ नहीं करेगी और उत्तर प्रदेश बहुत-बहुत आशान्वित है।
लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत के कार्यकारी संपादक हैं