Rajmata Jijabai Punyatithi: छत्रपति शिवाजी की निर्माता-वीरमाता जीजाबाई
Rajmata Jijabai Punyatithi: जिस समय जीजाबाई अपने भाईयों के साथ शस्त्र चलाना सीख रही थीं उस समय भारत पर मुगल आक्रमण हो रहा था। मुगल आक्रमणकारी भयानक रूप से हिंसा, मारकाट और लूट पाट कर रहे थे।
Rajmata Jijabai Punyatithi: बालपन से ही वीरता की प्रतिमूर्ति - मां जीजाबाई, बचपन से ही शस्त्र सञ्चालन सीखना चाहती थीं। उनके पिता लखूजी जाधवराव ने जो अपनी कन्या से अत्यंत स्नेह करते थे उनकी इस इच्छा को पूरा करने में कोई कोई कसर नहीं छोड़ी । शस्त्र कौशल में निपुण जीजा को उनके भाई रणचंडिका कहते थे । समय आने पर पिता जाधवराव वीर पुत्री जीजाबाई के लिए शूरवीर वर खोजा । वीर बालिका जीजा ही शाह जी की पत्नी और छत्रपति शिवाजी की मां के रूप में विख्यात हुईं।
जिस समय जीजाबाई अपने भाईयों के साथ शस्त्र चलाना सीख रही थीं उस समय भारत पर मुगल आक्रमण हो रहा था। मुगल आक्रमणकारी भयानक रूप से हिंसा, मारकाट और लूट पाट कर रहे थे। मुगलों के सैनिक सामान्य हिन्दू जनता पर तरह- तरह के अत्याचार कर रहे थे। चारों ओर से मार काट, महिलाओं के अपहरण तथा शीलभंग, मंदिरों के ध्वंस, लूटपाट व आगजनी की ही सूचनाएं आ रही थीं । मुगलों के अमानवीय और निकृष्ट अत्याचारों के कारण हिंदू समाज विचलित था ।
जीजाबाई के पिता लखूजी जाधवराव स्वयं भी शस्त्रास्त्र चलाने में प्रवीण थे। लखूजी के पिता और दादा खेती में अधिक मन लगाते थे। परंतु लखूजी ने अपने घर के लोगों को सैनिक शिक्षा दी तथा निजी सेना रखना प्रारंभ किया। वे कुलाभिमानी, महत्वाकांक्षी और पराक्रमी थे।
जीजाबाई का विवाह छोटी अवस्था में हुआ
जीजाबाई का विवाह काल और परिस्थिति के अनुकूल छोटी अवस्था में ही हो गया था। होली पर रंगपंचमी का उत्सव लखूजी के घर पर मनाया जा रहा था। उस समय मोलाजी अपने बच्चे के साथ उत्सव में शामिल हुए थे । नृत्य देखते हुए अचानक लखूजी जाधव ने जीजाबाई और मोलाजी के पुत्र शाहजी को एक साथ देखा तो और उनके मुख से निकला वाह क्या जोड़ी है।मोलाजी ने उनकी बात को सुन लिया और बोले, ”फिर तो मंगनी पक्की है। मोलाजी के पुत्र शाहजी भोसले ओर लखूजी की पुत्री जीजाबाई का विवाह संपन्न हुआ। विवाहोपरांत जीजाबाई ने 6 पुत्री व दो पुत्रों को जन्म दिया उसमें से ही एक शिवाजी थे।
शाह जी ने अपने बच्चों एवं जीजाबाई की रक्षा के लिये उन्हें शिवनेरी के दुर्ग में रखा था क्योंकि उस समय शाह जी को अनेक शत्रुओं से खतरा था। जब शिवाजी का जन्म हुआ था, उस समय उनके पिता शाह जी वहां पर नहीं थे। उनको मुस्तफा खां ने बंदी बना लिया था।
कहा जाता है कि माता जीजाबाई जब मुगल अत्याचारों की कहानियां सुनकर दुखी व व्यथित होती थीं । तब वह मां भवानी के मंदिर जाती थीं। मां से पुकार करती थीं कि हिन्दुओं की दुर्दशा को दूर करने के लिए कोई उपाय बतायें। मां भवानी ने ही प्रसन्न होकर जीजाबाई को आशीर्वाद दिया था कि उनके पुत्र द्वारा ही इन अत्याचारों को रोका जायेगा। यही कारण है कि शिवाजी सदा मां भवानी की पूजा करते थे। अपनी मां के द्वारा मिली शिक्षा का निर्वहन करते रहे। शिवाजी की तलवार का नाम भी भवानी ही था ।
जीजाबाई के कारण ही शिवाजी को “छत्रपति शिवाजी महाराज” बने
जीजाबाई ने शिवाजी को बचपन से ही महाभारत एवं रामायण की ऐसी कहानियां सुनाई जिनसे उन्हें अपने धर्म और अपने कर्म का ज्ञान हुआ । जीजाबाई ने अपने पुत्र शिवाजी को ऐेसे संस्कार दिए कि उन्होंने हिन्दवी साम्राज्य को स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। माता जीजाबाई के कारण ही शिवाजी को “छत्रपति शिवाजी महाराज” बने।
शिवाजी के जीवन में उनकी माता जीजाबाई का अप्रतिम योगदान रहा है।कई युद्धों में जीजाबाई की बनाई नीतियों के कारण ही शिवाजी को विजय प्राप्त हुई थी। जीजाबाई व्यक्तिगत व्यवहार में बहुत की कोमल थीं । परंतु राजकाज मे बहुत ही दृढ़ तथा कठोर थीं। जीजाबाई ने बहुत ही कठिन दुर्ग का पता लगवाया और उन पर अपनी सेना भेजकर अपना नियंत्रण स्थापित किया। न्यायदान राजस्व वसूली, प्रजा का संरक्षण, गुप्तचर संस्था आदि विभागों पर वे कड़ी निगरानी रखती थी। अनेक बार वह सेना का निरीक्षण करती और जहाजों पर भी चढ़ा करती थी। उस समय अनेक जटिल समस्याओं को माता जीजाबाई ने बहुत ही कुशलता के साथ सुलझाया।
पुत्र शिवाजी का राज्य देखने के बाद 17 जून, 1674 को वीरकन्या, वीरपत्नी, वीरमाता जीजाबाई का निधन हो गया। शिवाजी अपनी मां को ही अपना मित्र मार्गदर्शक और प्रेरणा स्रोत मानते थे।