Relation With Soul And Body : आत्मा को अमर क्यो माना जाता है?

Relation With Soul And Body : आत्मा का न कोई रंग है और न कोई रूप, इसका कोई लिंग भी नहीं होता। ऋग्वेद में बताया गया है

Newstrack :  Network
Update:2024-03-19 15:00 IST

Relation With Soul And Body

Relation With Soul And Body : धार्मिक ग्रंथों के अनुसार आत्मा ईश्वर का अंश है, अतः यह ईश्वर की ही भांति अजर-अमर है। संस्कारों के कारण इस दुनिया में उसका अस्तित्त्व भी है। वह जब जिस शरीर में प्रवेश करती है, तो उसे उसी स्त्री या पुरुष के नाम से पुकारा जाता है।आत्मा का न कोई रंग है और न कोई रूप, इसका कोई लिंग भी नहीं होता। ऋग्वेद में बताया गया है

अपाङ्प्राङ्ति स्वधया गृभीतोऽमत्यों मत्त्येना सयोनिः ।

ता शश्वन्ता विषूचीना वियन्तान्यन्यं चिक्युर्न नि चिक्युरन्यम् ॥

-ऋग्वेद 1/164 38

अर्थात् जीवात्मा अमर है और शरीर प्रत्यक्ष नाशवान। संपूर्ण शारीरिक क्रियाओं का अधिष्ठाता आता है, क्योंकि जब तक शरीर में प्राण रहता है, तब तक वह क्रियाशील रहता है। इस आत्मा के संबंध में बड़े-बड़े पंडित व मेधावी पुरुष भी नहीं जानते। इसे ही जानना मानव जीवन का प्रमुख लक्ष्य है। बृहदारण्यक उपनिषद् 8/7/1 में आत्मा के संबंध में लिखा है।आत्मा वह है, जो पाप से मुक्त है, वृद्धावस्था, मृत्यु एवं शोक से रहित है, भूख और प्यास से रहित है, जो किसी वस्तु की इच्छा नहीं करती, यद्यपि उसकी इच्छा करनी चाहिए, किसी वस्तु की कल्पना नहीं करती, यद्यपि उसकी कल्पना करनी चाहिए। यह वह सत्ता है जिसको समझने का प्रयत्न करना चाहिए।


श्रीमद्भगवद्गीता में आत्मा की अमरता के विषय पर विस्तृत व्याख्या की गई है

न जायते म्रियते वा कदाचिन्लायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।

अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे । -श्रीमद्भगवद्गीता 2/20

अर्थात् यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मती है और न मरती ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है, क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता।वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तवा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही। -श्रीमद्भगवद्गीता 2/22

अर्थात् जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को त्यागकर दूसरे नए शरीर को प्राप्त होता है। आगे श्लोक 23 व 24 में लिखा है कि आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु सुखा नहीं सकता, क्योंकि यह आत्मा अछेद्य है, अदाह्य और निःसंदेह अशोष्य है और यह नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला तथा सनातन है।शरीर की मृत्यु के बाद आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए 13 दिनों का समय लगता है। इसलिए इस दौरान आत्मा की शांति व मुक्ति के लिए पूजा-पाठ, दान-दक्षिणा आदि अनुष्ठान किए जाते हैं। इसके बाद आत्मा पितृ-लोक को प्राप्त हो जाती है। आत्मा की अमरता का यही दृढ़ विश्वास है।


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