Reviving Shallow Aquifers : भारत के शहरी जल संकट के समाधान का भाग

Reviving Shallow Aquifers: भारत दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है, जो अमेरिका और चीन में होने वाली जल की कुल खपत से भी अधिक मात्रा में जल का उपभोग करता है। विशेषकर, शहरी क्षेत्र अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूजल पर उत्तरोत्तर रूप से निर्भर होते जा रहे हैं

Newstrack :  Network
Update:2024-09-29 21:10 IST

Reviving Shallow Aquifers ( Pic- Social- Media)

Reviving Shallow Aquifers: भारत में, भूजल शहरों में जल की मांग को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अपेक्षाकृत कम गहराई पर पाए जाने वाले ये जलभृत सदियों से जल के महत्वपूर्ण स्रोत रहे हैं।ऐसे समय में जब लंबी दूरी तक पानी पहुंचाना कल्पना से परे था, तब समुदायों ने अपनी पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए उथले जलभृतों का रुख किया। सुगम्य गहराई पर पाए जाने वाले ये जलभृत बढ़ती आबादी को किफायती और भरोसेमंद जल आपूर्ति प्रदान किया करते हैं। आज भी मौजूद ये कुएं और बावडि़यां, उस दौर की याद की दिलाते हैं, जब उथले जलभृतों का पुनर्भरण करने के लिए वर्षा जल का उपयोग करके पानी की किल्लत दूर की जाती थी।


यद्यपि जैसे-जैसे आधुनिक शहरों का विकास होता गया, वैसे-वैसे इस परिदृश्य में सर्वत्र मौजूद रहने वाले ये साधारण से कुएं गायब होने लगे। अब इन कुओं की जगह काफी हद तक गहरे बोरवेल ले चुके हैं, जो खतरनाक गहराई पर भूजल भंडार का दोहन करते हैं। भारत, दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है जो अमेरिका और चीन में होने वाली जल की कुल खपत से भी अधिक मात्रा में जल का उपभोग करता है। विशेष रूप से, शहरी क्षेत्रों में, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूजल पर निर्भरता निरंतर बढ़ती जा रही है, जिसके कारण उथले जलभृतों में काफी कमी आई है, और बहुत लंबे समय तक, शहरी नियोजन में भूजल प्रबंधन को दरकिनार किया जाता रहा है।


यद्यपि हाल ही में अप्रत्याशित वर्षा, अचानक बाढ़ और शहरी जल संकट- जैसी जलवायु चुनौतियों ने भूजल प्रबंधन के प्रति फिर से दिलचस्पी उत्पन्न की है। समाधान के तौर पर, वर्षा जल संचयन और शहरी जल निकायों के पुनर्भरण की परियोजनाएं उत्तरोत्तर रूप से इन प्राकृतिक भूमिगत जलाशयों का रुख कर रही हैं। अब अतिरिक्त वर्षा जल को संग्रहित करने और बाढ़ में कमी लाने की क्षमता के लिए जलभृतों का अध्ययन किया जा रहा है।वर्ष 2021 में अमृत 2.0 की शुरुआत ने जल प्रबंधन में आमूल-चूल बदलाव किया, जिसमें आखिरकार भूजल को ‘शहरी’ स्तर पर प्राथमिकता दी गई। मिशन ने न केवल भूजल पर निर्भर रहने बल्कि सक्रिय रूप से इसका प्रबंधन और संरक्षण करने की शहरों की आवश्यकता को पहचाना।


इस मिशन के अंतर्गत, वर्ष 2022 में 10 शहरों में उथला जलभृत प्रबंधन (एसएएम) प्रायोगिक परियोजना शुरू की गई थी। इस कदम का उद्देश्य शहर के अधिकारियों और समुदायों के बीच उथले जलभृतों के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाना और भूजल की कमी, प्रदूषण और शहरी बाढ़ जैसी महत्वपूर्ण समस्‍याओं से निपटने के लिए प्रभावी पुनर्भरण संरचनाओं को प्रदर्शित करना था। इसके तहत एक ऐसा वातावरण तैयार करने का प्रयास किया गया, जहां शहर उथले जलभृत प्रबंधन को व्यापक जल रणनीतियों में एकीकृत कर सकें। इसका उद्देश्य सरल और वैज्ञानिक रूप से सही पुनर्भरण विधियों पर जोर देकर, उन तरीकों को पुनर्जीवित करना था जिनकी आधुनिक बुनियादी ढांचे की जद्दोजहद में अनदेखी की जाती रही थी। इस परियोजना ने प्रभावी उथले जलभृत प्रबंधन के संबंध में शहरों को महत्वपूर्ण समझ प्रदान की है।


इस पहल ने स्थानीय जलभृत स्थितियों के अनुरूप पुनर्भरण संरचनाओं के लिए 12 विशिष्ट दृष्टिकोणों और डिजाइनों को तैयार करने का मार्ग प्रशस्त किया है। इनमें धनबाद, हैदराबाद और बेंगलुरु में मौजूदा कुओं और बावड़ियों के पुनर्भरण से लेकर पुणे में उच्च पुनर्भरण क्षमता वाले क्षेत्रों का जलग्रहण उपचार तक शामिल है। ग्वालियर और राजकोट जैसे शहरों ने जलभृत प्रणालियों और भूजल गहराई का विस्तृत मानचित्रण किया है और शहर के स्तर पर पुनर्भरण संरचनाओं की एक सूची तैयार की है, जिससे भूजल प्रबंधन के लिए सुविचारित निर्णय लेने सुगम होता है।इस परियोजना ने स्थानीय समुदायों की जल संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इन पुनर्भरण संरचनाओं के सतत उपयोग को प्रदर्शित करने की दिशा में भी आशाजनक परिणाम दर्शाए हैं। बेंगलुरु के कांतीरवा नगर में, परियोजना के तहत बनाया गया पुन:संयोजित किया गया एक कुआं अब लगभग 500 घरों को पानी की आपूर्ति कर रहा है, जिसमें से गैर-पेय उपयोग के लिए प्रतिदिन एक लाख लीटर पानी निकाला जा रहा है।इसी तरह, ठाणे के येऊर गांव में जनजातीय समुदाय के लोग गाद निकाले गए और पुन:संयोजित किए गए कुओं से प्राप्त पानी से लाभान्वित हो रहे हैं। धनबाद और राजकोट में, जहां के शहरी क्षेत्र उथले कुओं पर बहुत अधिक निर्भर हैं, वहां इस पहल ने अपने पायलट चरण से आगे बढ़ना शुरू कर दिया है। राजकोट नगर निगम ने एसएएम मैपिंग के आधार पर पूरे शहर में 100 से अधिक अतिरिक्त पुनर्भरण संरचनाओं के निर्माण पर काम शुरू किया है, जो उथले जलभृत प्रबंधन को बढ़ाने की दिशा में नए सिरे से जागरूकता और प्रतिबद्धता को दर्शाता है।


यह परियोजना जलवायु अनुकूलन और जल सुरक्षा के क्षेत्र में प्रमुख विचारों का ध्यान आकर्षित करने में सक्षम रही है। बेंगलुरु की जलवायु कार्य योजना में अब बेंगलुरु को जलवायु अनुकूल बनाने के एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में भूजल प्रबंधन को शामिल किया गया है। पुणे ने शहर की भविष्य की जल योजनाओं में उथले जलभृत प्रबंधन को प्राथमिकता बनाए रखने के लिए नगर निगम में एक समर्पित भूजल प्रकोष्ठ भी स्थापित किया है। वित्त वर्ष 2024-2025 में, पुणे नगर निगम ने जलभृत पुनर्भरण संरचनाओं के लिए 1 करोड़ रुपये का एक समर्पित बजट आवंटित किया है, जो इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्रवाई को दर्शाता है।


एसएएम परियोजना के माध्यम से हासिल प्रगति के बावजूद, बहुत काम अभी भी बाकी है। शहरों को यह स्वीकार करना होगा कि गहरे जलभृतों में सदियों से पानी के विशाल भंडार जमा हैं और उन्हें आम तौर पर सूखे जैसी आपात स्थितियों के लिए आरक्षित रखा जाना चाहिए। इसके विपरीत, उथले जलभृतों में पहली रक्षा पंक्ति के रूप में दैनिक जल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपार संभावनाएं हैं, जो उन्हें शहरी क्षेत्रों के लिए आवश्यक बनाती हैं। हालांकि, जैसे-जैसे शहर बढ़ रहे हैं, इन जलभृतों का पुनर्भरण करने वाली प्राकृतिक प्रक्रियाएं बाधित होती जा रही हैं।वर्तमान स्थिति में, जहां शहरी विकास सतह के अभेद्य होने, वर्षा जल का रिसाव बाधित होने और प्राकृतिक पुनर्भरण बाधित होने के रूप में अभिलक्षित हो रही है, ऐसे में शहरों को झीलों, आर्द्रभूमियों और नदी के बाढ़ के मैदानों के पुनर्जीवन सहित उथले जलभृतों के कृत्रिम पुनर्भरण की दिशा में सतर्क हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है।भारत का भूजल संकट जटिल है,


लेकिन इसका समाधान हमारे बेहद निकट हो सकता है। शहर उथले जलभृतों का प्रबंधन करके अधिक लचीले और टिकाऊ भविष्य को बढ़ावा दे सकते हैं। एसएएम परियोजना इस दृष्टिकोण की रूपरेखा प्रदान करती है, लेकिन इसके सबक को बड़े पैमाने पर लागू करना होगा और पूरे देश में लागू करना होगा। भारत शहरी विकास और पानी की कमी की दोहरी चुनौतियों का सामना कर रहा है, ऐसे में अब समय आ चुका है कि हम अपने पूर्वजों के ज्ञान को अपनाएं और जल-भूविज्ञान या हाइड्रोजियोलॉजी के साथ जुड़ें।उथले जलभृतों का पुनर्भरण करके और इसे एकीकृत शहरी जल प्रबंधन इकोसिस्‍टम का हिस्सा बनाकर, शहर इस अमूल्य संसाधन को भावी पीढ़ियों के लिए पानी का भरोसेमंद स्रोत बना रहने देना सुनिश्चित कर सकते हैं। कबीर के शब्दों में: कुआं एक है, और पानी एक ही है। हमें याद रखना चाहिए कि आज हम जो पानी निकालते हैं, वह हमें कल भी जीवित रखेगा।

1 सह-संस्थापक बायोम एनवायरमेंट सॉल्‍यूशन्‍स, बेंगलुरु

2 वरिष्ठ पर्यावरण विशेषज्ञ, राष्ट्रीय नगर कार्य संस्थान, दिल्ली

एस. विश्वनाथ और इशलीन कौर

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