Shri Bhagavad Gita Park: कनाडा को भारत-हिन्दू विरोध पर उचित जवाब मिले

Shri Bhagavad Gita park in Brampton: यह समझना कठिन है कि आखिर कनाडा सरकार क्यों भारत विरोधी तत्वों को कायदे से कसने में देरी कर रही है।

Written By :  RK Sinha
Update:2022-10-05 20:11 IST

Canada should get proper answer on Indo Hindu protests (Social Media)

RK Sinha: कभी भारत का मित्र समझे जाने वाले कनाडा का रवैया विगत कुछ वर्षों से कतई मित्रवत नहीं रहा है। वहां पर खालिस्तानी तथा भारत विरोधी तत्वों की लंबे समय से चल रही गतिविधियां और अब हिन्दू मंदिरों पर हमले को नजरअंदाज करना भारत के लिये असंभव है। यह समझना कठिन है कि आखिर कनाडा सरकार क्यों भारत विरोधी तत्वों को कायदे से कसने में देरी कर रही है। अब एक ताजा मामले में कनाडा के ब्रैम्पटन शहर में 'श्री भगवद गीता' पार्क में तोड़फोड़ की घटना हुई।

हालांकि, कनाडा सरकार अभी इस आरोप से इनकार कर रही है। लेकिन, जब साक्ष्य हैं तो कब तक करेगी। कनाडा में भारत के उच्चायुक्त ने ट्वीट किया, ''हमलोग ब्रैम्पटन में श्री भगवद गीता पार्क में घृणा अपराध की निंदा करते हैं।

हम कनाडा के अधिकारियों और पुलिस से मामले की जांच करने और दोषियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई का अनुरोध करते हैं।'' दरअसल कनाडा में भारतीयों, खासतौर पर भारत से पढ़ने के लिए गए नौजवानों पर हमलों की लगातार घटनाएं बढ़ रही हैं।

भारत छात्रों की फीस के रूप में कनाडा को प्रतिवर्ष अरबों डॉलर देता है। यह तो कनाडा की सरकार को याद तो रखना ही होगा। आपको याद होगा कि बीते अप्रैल के महीने में 21 वर्षीय भारतीय छात्र कार्तिक वासुदेव की कनाडा में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। कार्तिक का संबंध उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद से था और वह तीन महीने पूर्व जनवरी में ही पढ़ाई के लिए कनाडा गया था।

भारत सरकार ने कार्तिक की हत्या और कुछ घटनाओं का संज्ञान लेते हुए कनाडा में अपने नागरिकों को ''घृणा अपराध, सांप्रदायिक हिंसा और भारत विरोधी गतिविधियों'' का हवाला देते हुए हाल ही सलाह दी थी कि वे सावधानी बरतें और सतर्क रहें।'' यह सलाह तो ठोस साक्ष्यों पर आधारित है। पर कनाडा सरकार ने अकारण ही अपने नागरिकों को गुजरात, पंजाब और राजस्थान राज्यों के सभी क्षेत्रों की यात्रा से बचने की सलाह दे दी, जो पाकिस्तान के साथ सीमा साझा करते हैं।

यह शर्मनाक है कि कनाडा सरकार अपने नागरिकों को आतंकित कर रही है। वह भारत के जिन सूबों के बारे में बात कर रही है वहां पर तो कनाडा से कहीं ज्यादा अमन है। कहीं कोई गड़बड़ नहीं है। बेशक, कनाडा में भारत विरोधी गतिविधियों की घटनाओं में विगत दिनों में तेजी से वृद्धि हुई है।

दुर्भाग्यवश इन अपराधों के अपराधियों को कनाडा में अब तक न्याय के कठघरे में नहीं लाया गया है। कौन नहीं जानता कि कनाडा में खालिस्तानी तत्व ज़रूरत से ज्यादा सक्रिय हैं। ये भारत को फिर से खालिस्तान आंदोलन की आग में झोंकने का सपना देखते हैं।

हालांकि ये सफल नहीं हो सकते। क्या कोई भूल सकता है कनिष्क विमान हादसा? सन 1984 में स्वर्ण मंदिर से आतंकियों को निकालने के लिए हुई सैन्य कार्रवाई के विरोध प्रदर्शन में यह दर्दनाक हमला किया गया था। मांट्रियाल से नई दिल्ली जा रहे एयर इंडिया के विमान कनिष्क को 23 जून 1985 को आयरिश हवाई क्षेत्र में उड़ते समय, 9,400 मीटर की ऊंचाई पर, बम से उड़ा दिया गया था और वह अटलांटिक महासागर में गिर गया था।

इस आतंकी हमले में 329 लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक थे।कनाडा में रहने वाले खालिस्तानी जान लें कि भारत के करोड़ों सिख देश के लिए अपनी जान का नजराना देने के लिए हर पल तैयार हैं। वे खालिस्तानियों के साथ ना पहले थे, न अब हैं।

सारा भारत सिखों का आदर करता है। कुछ मुठ्ठी भर भटके हुए तत्वों के कारण भारत- कनाडा संबंध बीते कुछ समय के दौरान कटु हुए हैं। कनिष्क विमान हादसे के बाद भारत- कनाडा के बीच संबंध बुरी तरह से प्रभावित हुए थे।

भारत के 1974 में परमाणु परीक्षण करने का कनाडा ने विरोध किया था। इस सबके बावजूद दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से संबंधों को सामान्य बनाए जाने की कोशिशें भी होती रहीं। कनाडा में दुनिया के सबसे बड़े भारतीय प्रवासी समूहों में से एक है।

दोनों देश अपने व्यापारिक सम्बंध बढ़ाने के लिए भी उत्सुक रहे हैं। पर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का भारत में चले किसान आंदोलन के पक्ष में बोलने से दोनों मुल्कों के संबंध पटरी से उतरे थे। पता नहीं किसकी सलाह पर जस्टिन ट्रूडो किसानों के आंदोलन का समर्थन करने लगे थे।

ट्रूडो कह रहे थे कि "कनाडा दुनिया में कहीं भी किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ा रहेगा।" पर ट्रूडो यह भूल गए कि उनके देश में भारत विरोधी ताकतें खुलकर सक्रिय हैं। इसके बावजूद वे कोई कदम नहीं उठाते। उनकी बयानबाजी से भारत का खफा होना स्वाभाविक था। भारत के आंतरिक मामलों में कनाडा को मीन-मेख निकालने का हक किसने दिया है?

कनाडा में भारतीय हाई कमीशन के बाहर भी खालिस्तानी लगातार एकत्र होकर हिंसक प्रदर्शन करते हैं। पर मजाल है कि कनाडा सरकार कोई ठोस कदम उठाए। भारत भले की अपने यहां पर रहने वाले तिब्बतियों के हकों का समर्थन करता है। पर वह उनकी तरफ से नई दिल्ली में स्थित चीनी दूतावास में घुसने या उस पर हमला करने की इजाजत नहीं देता। इस लिहाज से कनाडा को भारत से सीखना चाहिए।

देखिए, भारत से बाहर किसी धनी देश में जाकर बसने की हसरत तो बहुत से हिन्दुस्तानियों के दिलों में रही है। अनेकों अज्ञानी यह मानते हैं कि भारत से बाहर बसना स्वर्ग में जाने के समान है। हालांकि, इन्हें जन्नत की हकीकत नहीं पता। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। मेरा कई बरसों से राजधानी के चाणक्यपुरी क्षेत्र से गुजरना होता है। इधर कनाडा उच्चायोग के बाहर बड़ी तादाद में महिलाएं, पुरुष और बच्चे खड़े होते हैं।

ये सब कनाडा जाने के लिए वीजा लेने के लिए आए होते हैं। इनसे बात करके लगता है कि ये भीख मांग रहे हों। यह किसी भी सूरत में कनाडा जाना चाहते हैं। एक उस देश में जहां पर भारत विरोध बढ़ता ही चला जा रहा है। इस बिन्दु पर उन भारतीयों को सोचना चाहिए जो कनाडा जाने का मन बना रहें हैं या बना चुके हैं।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

Tags:    

Similar News