National Education Policy 2020: भारतीय विरासत के स्रोत 'उपनिषद' और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020

National Education Policy 2020: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, शिक्षा प्रणाली और साथ ही व्यक्तिगत संस्थानों दोनों का मार्गदर्शन करने हेतु अपने प्रतिवेदन में कुछ मूलभूत सिद्धांतों का प्रतिपादन करती है, ये मूलभूत सिद्धांत हिंदी के प्रतिवेदन में पृष्ठ संख्या 6 और अंग्रेजी के प्रतिवेदन में पृष्ठ संख्या 5 पर देखे जा सकते हैं, इन सिद्धांतों में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है 'भारतीय जड़ों और गौरव से बंधे रहना'

Update:2023-06-20 17:09 IST
प्रो. आशीष श्रीवास्तव: Photo- Newstrack

National Education Policy 2020: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, शिक्षा प्रणाली और साथ ही व्यक्तिगत संस्थानों दोनों का मार्गदर्शन करने हेतु अपने प्रतिवेदन में कुछ मूलभूत सिद्धांतों का प्रतिपादन करती है, ये मूलभूत सिद्धांत हिंदी के प्रतिवेदन में पृष्ठ संख्या 6 और अंग्रेजी के प्रतिवेदन में पृष्ठ संख्या 5 पर देखे जा सकते हैं, इन सिद्धांतों में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है 'भारतीय जड़ों और गौरव से बंधे रहना' हालाँकि यह दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ का बहुत ही निम्नस्तरीय हिंदी अनुवाद किया गया है यही कारण है कि 'रूटेडनेस एंड प्राइड इन इंडिया' का हिंदी अनुवाद 'भारतीय जड़ों और गौरव से बंधे रहना' किया गया है, जबकि यथार्थ में 'बंधे रहना' भारतीय संस्कृति में कभी भी स्वीकारा ही नहीं गया, ख़ैर अनुवाद के शाब्दिक खेल में उलझना यहाँ मक़सद नहीं है अपितु भावार्थ या मंशा के दृष्टिगत यह चिंतन करना हम सबका दायित्व है कि ये संभव कैसे होगा? अद्वैत आश्रम द्वारा सम्पादित 'द कम्पलीट वर्क्स ऑफ़ स्वामी विवेकानंद'एक बेहद शानदार बौद्धिक संसाधन है जो सरल भाषा में हमारे वेदों के उस ख़ज़ाने को उज़ागर करता है जिसे हम सब 'वेदांत या उपनिषद ग्रंथों' के नाम से जानते हैं।

मुक्तिकोपनिषद के अनुसार 108 उपनिषद हैं, किन्तु प्रामाणिक रूप से 11 उपनिषद मिलते हैं, जिन पर शंकराचार्य जी का भाष्य उपलब्ध है जैसे ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक और श्वेताश्वतर। ये उपनिषद कुछ तो गद्य में हैं, कुछ पद्य में हैं और कुछ गद्य-पद्य दोनों में हैं। यह उपनिषद ही भारतीय दर्शन की निधि भी हैं, उनका मूल स्रोत भी हैं तथा उनका आधार भी हैं।

पिछली कई शताब्दियों में इस अद्भुत निधि का समुचित हस्तांतरण या प्रसारण ना हो पाना सम्पूर्ण समाज के लिए बहुत नुकसानदायक रहा है। भारतीय दर्शनों की ऐसी कोई प्रमुख विचारधारा नहीं मिलती जिसका उद्गम स्रोत उपनिषद न रहा हो। उपनिषद इसलिए भी बहुत महत्पूर्ण रहे हैं क्योंकि उपनिषदों में ज्ञान का प्राधान्य है। गीता जैसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ हों या ऐसा कोई भी ग्रन्थ जो उत्थान की बात करता हो, प्रगति की बात करता हो, उन्नति की बात करता हो, उपनिषद से ही सारतत्व प्राप्त करता है।

भाषाई सीमायें तथा समुचित प्रसार ना हो पाने के कारण इन महत्वपूर्ण ज्ञान के भंडार से पिछली कई पीढ़ियां बड़े पैमाने पर अनभिज्ञ रहीं हैं। आज़ादी के बाद पश्चिम की नक़ल में अपनी अकल का बहना और अपनी अमूल्य विरासत को ना सजों पाना और भी दुर्भाग्यपूर्ण रहा है, शायद यही कारण है कि सतत विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट) की बात हम आज़ाद भारत में तभी शुरू कर पाते हैं जब पश्चिम का 'ब्रन्टडलैंड आयोग' हमें 1980 में इससे अवगत करवाताहै, अन्यथा अतुलनीय विरासत के रूप में ईशोपनिषद् का यह श्लोक-

'ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्‌। तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्‌॥'

हमें दिशा दिखाने के लिए सर्वसमर्थ था, ख़ैर एक प्रचलित कहावत है कि 'जब जागो तभी सवेरा' इसको चरितार्थ करते हुए इस ज्ञान के इन अमूल्य भंडारों को अन्वेषित करते हुए आगे बढ़ना होगा। डॉ. चंद्र प्रकाश द्विवेदी द्वारा निर्देशित, चिन्मय मिशन द्वारा निर्मित तथा 2012 में प्रसारित सरल भाषा और कहानियों के माध्यम से दैनिक अनुभवों से जोड़ते हुआ उपनिषद गंगा के 52 एपिसोड के आसानी से उपलब्ध धारावाहिक, इन उपनिषदों के प्रति 21वीं सदी के युवाओं को प्रेरणा स्रोत के रूप जोड़ने वाला एक सहज उपलब्ध संसाधन है, इसका लाभ तकनीकी के इस युग में और लगभग हर हाथ में उपलब्ध तकनीकी के माध्यम से अवश्य उठाना जा सकता है और उठाया जाना चाहिए भी।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 द्वारा प्रतिपादित 'भारतीय जड़ों से जुड़े रहने' के सिद्धांत का स्कूली पाठ्यचर्या में विशेषकर प्राथमिक से माध्यमिक स्तर के मध्य बीजारोपित करने से ना केवल विश्वगुरु पद पर पुनः आसीन होने की आशा बढ़ेगी अपितु तमाम रूढ़िवादी विचारों से ऊपर उठकर वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टि से अपनी अमूल्य विरासत को समझने, अपनाने और अपने जीवन में उतारने का सुदृढ़ अवसर भी मिलेगा।

इस यात्रा में असल चुनौती होगी उचित विषयवस्तु का पाठ्यचर्या में उचित प्रतिस्थापन, उपनिषद ज्ञान के भंडार हैं तथा यह ज्ञान क्षेत्र एकाधिकार न होकर सर्वाधिकार का विषय है, ऐतिहासिक प्रयासों में हम शाहजहाँ के सबसे बड़े पुत्र, दारा शिकोह के योगदान को देख सकते हैं जिसने भारत की आध्यात्मिक परंपराओं हेतु इस्लाम के अनुकूलन के लिए सबसे बड़ी प्रशंसाकृति ’सिर-ए-अकबर’ (महान रहस्य) का प्रतिपादन कर, जो कि उपनिषदों के पचास अध्यायों का अनुवाद था, एक महान साहित्यिक आंदोलन का हिस्सा बने। इसके साथ ही हम सम्राट अकबर का मकतबखाना (अनुवाद ब्यूरो) देख सकते हैं, जिसने महाभारत, रामायण और योग वशिष्ठ इत्यादि के अनुवाद किए। अतः हमारे राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों को बगैर किसी भेदभाव के उपयुक्त व्यक्तियों को चिन्हित करना होगा ताकि इस विषय को पाठ्यचर्या में सुगम, सुबोध, सरस और रुचिकरतरीके से प्रतिस्थापित किया जा सके, और तभी सही मायने में हम भारतीय जड़ों से जुड़े रह पायेगें।

प्रो. आशीष श्रीवास्तव (लेखक महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, पूर्वी चम्पारण, बिहार में शिक्षा संकाय के आचार्य तथा संकायाध्यक्ष हैं)

(ये लेख उनके निजी विचार हैं)

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