31 अक्टूबर पर विशेष:- राष्ट्रीय एकता के सूत्रधार - लौहपुरूष सरदार पटेल

तब सरदार पटेल ने चीन के प्रति सर्वाधिक संदेह प्रकट करते हुए कहा था कि यदि चीन तिब्बत पर अधिकार कर लेता है तो यह भविष्य में भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा। आज सरदार पटेल की चिंता सच साबित हो रही है।

Update: 2020-10-31 04:31 GMT
Special on 31 October: - The architect of national unity - Iron man Sardar Patel

मृत्युंजय दीक्षित

स्वतंत्रता के पष्चात भारतीय एकता के प्रतीक एक प्रखर देषभक्त जो ब्रिटिश राज के अंत के बाद 562 रियासतों को जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध तथा आजादी के बाद एक महान प्रशासक जिन्होनें स्वतंत्र देश की अस्थिर स्थिति को स्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी ऐसे महान लौहपुरूष सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को ग्राम करमसद में हुआ था। इनके पिता झबेरभाई पटेल थे जिन्होंने 1857 में रानी झांसी के समर्थन में युद्ध किया था। इनकी मां का नाम लाडोबाई था। इनके पिता बहुत ही आध्यात्मिक प्रवृित्त के थे।

आरंभिक परिचय

पटेल की प्रारम्भिक पढ़ाई गांव के ही एक स्कूल में हुई यहां पर कक्षा चार तक की पढ़ाई होती थी। आगे की पढ़ाई के लिए पेटलाद गांव के स्कूल में भर्ती हुए यह उनके मूल गांव से छह से सात किमी की दूरी पर था ।

वल्लभ भाई पटेल को बचपन से ही पढ़ने- लिखने का बहुत शौक था। वल्लभ भाई की हाईस्कूल की शिक्षा उनके ननिहाल में हुई। उनके जीवन का वास्तविक विकास ननिहाल से ही प्रारम्भ हुआ था। उनमें बचपन से ही कुषल नेतृत्व की छाप दिखलायी पढ़ने लग गयी थी।

वे पढ़ाई में तो तेज थे ही गीत, संगीत व खेलकूद में भी उनकी रूचि थी तथा उनमें एक ऐसा जादू था कि वे अपने साथियों के बीच स्कूल के दिनों में ही बेहद लोकप्रिय हो गये थे तथा उनका नेतृत्व करने लग गये थे। पटेल बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के थे तथा उनमें सीखने की गजब क्षमता विराजमान थी।

जिद और हिम्मत

बचपन में एक बार वे स्कूल से आते समय पीछे छूट गये। कुछ साथियों ने जाकर देखा तो ये धरती पर गड़े एक नुकीले पत्थर को उखाड़ रहे थे। पूछने पर बोले ,” इसने मुझे चोट पहुंचायी है अब मैं इसे उखाड़कर ही मानूंगा और वे काम पूरा करके ही घर आये। “

एक बार उनकी बगल में फोड़ा निकल फोड़ा निकल आया। उन दिनों गांवों में इसके लिए लोहे की सलाख को लालकर उससे फोड़े को दाग दिया जाता था। नाई ने सलाख को भटठी में रखकर गरम तो कर लिया पर वल्लभभाई जैसे छोटे बालक को दागने की हिम्मत नहीं पड़ी।

इस पर वल्लभभाई ने सलाख अपने हाथ में लेकर उसे फोड़े में घुसा दिया आसपास बैठे लोग चीख पड़ें लेकिन उनके मुंह से उफ तक नहीं निकला।

कष्टों में शिक्षा

वल्लभभाई की आगे की शिक्षा बहुत ही कष्टों के साथ पूरी हुई तथा इंग्लैंड मेें बैरिस्टरी की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1926 में उनकी भेंट गांधी जी से हुई और वे स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े। स्वतंत्रता आंदोलन में कूदने के बाद वे स्वदेशी जीवन शैली में आ गये।

बारडोली में किसान आंदोलन का सफल नेतृत्व करने के कारण उनका नाम सरदार पड़ा। सरदार पटेल स्पष्ट व निर्भीक वक्ता थे। यदि वे कभी गांधी जी से असहमत होते तो वे उसे भी साफ कह देते थे। वे कई बार जेल गये। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें तीन साल की कैद हुई।

ऐतिहासिक क्षण

स्वतंत्रता के बाद उन्हें नेहरू मंत्रिपरिषद में गृहमंत्री बनाया गया। सरदार पटेल ने चार वर्ष तक गृहमंत्री के पद पर कार्य किया। यह चार वर्ष उनके जीवन के ऐतिहसिक क्षण कहे जाते हैं। मंत्री के रूप में भी वे हर व्यक्ति से मिलते थे और उसकी समस्या का समाधान खोजते थे।

उन्होंने 542 रियासतों का विलय करवाया जिसमें सबसे कठिन विलय जूनागढ़ और हैदराबाद का रहा । यह उन्हीं का प्रयास था कि यह दोनों आज भारत का हिस्सा हैं। सरदार की प्रेरणा से ही जूनागढ़ में विद्रोह हुआ और वह भारत में मिल गया। हैदराबाद में बड़ी पुलिस कार्यवाही करनी पड़ी।

चीन पर चेताया था

जम्मू -कश्मीर का मामला नेहरू जी ने अपने पास रख लिया जोकि आज सिरदर्द बन गया है। सरदार पटेल ने मंत्री पद पर रहते हुए रेडियो एवं सूचना विभाग का कायाकल्प कर डाला।

सरदार पटेल स्वभाव से बहुत कठोर भी थे तो बहुत ही सहज और उदार भी। समय के अनुसार वे निर्णय लेने में सक्षम व्यक्ति थे। वे पीएम नेहरू जी को समय- समय पर सलाह मशविरा भी दिया करते थे।

जब चीन तिब्बत पर अपना अधिकार जता रहा था और नेहरू जी तत्कालीन चीनी नेतृत्व के प्रति काफी उदार थे उन्होंने चीन की विस्तारवादी नीति का विरोध नहीं किया और नेहरू जी के कारण ही तिब्बत पर चीन का नियंत्रण हो गया।

तब सरदार पटेल ने चीन के प्रति सर्वाधिक संदेह प्रकट करते हुए कहा था कि यदि चीन तिब्बत पर अधिकार कर लेता है तो यह भविष्य में भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा। आज सरदार पटेल की चिंता सच साबित हो रही है।

मृत्युंजय दीक्षित

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