भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. जवाहर लाल नेहरू की पुण्य तिथि पर विशेष
27 मई, 1964, हम भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. जवाहर लाल नेहरू की पुण्यतिथि पर बात करेंगे।
27 मई, 1964, हम भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. जवाहर लाल नेहरू की पुण्यतिथि पर बात करेंगे। भारत में उनका जन्मदिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर, 1889 को ब्रिटिश भारत में इलाहाबाद में हुआ था। उनके पिता मोतीलाल नेहरू (1861–1931), एक धनी बैरिस्टर जो कश्मीरी पण्डित थे। जवाहरलाल नेहरू ने दुनिया के कुछ बेहतरीन स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की थी।
सन् 1947 में भारत को आजादी मिलने पर जब देश के भावी प्रधानमंत्री के लिए कांग्रेस में मतदान हुआ तो सरदार पटेल को सर्वाधिक मत मिले। दूसरे नंबर पर आचार्य कृपलानी रहे। लेकिन गांधी के कहने पर सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी ने अपना नाम वापस ले लिया और जवाहरलाल नेहरू को आजाद भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया। कारण साफ था कि गांधी ने नेहरू को उनके राजनीतिक वारिस और उत्तराधिकारी के तौर पर स्वीकार किया। भारत का संविधान 1950 में अधिनियमित हुआ, जिसके बाद उन्होंने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सुधारों के एक महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की।
नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय चुनावों में प्रभुत्व दिखाते हुए और 1951, 1957, और 1962 के लगातार चुनाव जीतते हुए एक सर्व-ग्रहण पार्टी के रूप में उभरी। राजनीतिक संकटों और 1962 के चीनी-भारत युद्ध में उनके नेतृत्व की असफलता के बाद भी वे भारत में लोगों के बीच लोकप्रिय बने रहे।
स्व. जवाहरलाल नेहरू ने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने योजना आयोग का गठन किया, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास को प्रोत्साहित किया और तीन पंचवर्षीय योजनाओं का शुभारंभ किया। उनकी नीतियों के कारण देश में कृषि और उद्योग का एक नया युग शुरू हुआ। नेहरू ने भारत की विदेश नीति के विकास में एक अहम भूमिका निभायी।
आज़ादी के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने निर्गुट आन्दोलन (नॉन-अलाइंड मूव्मेंट) को भारत की प्रमुख विदेश नीति बनाया। इस दौरान भारत ने सोवियत रूस से दोस्ती बढ़यी। सोवियत रूस में समाजवाद था। यूं तो भारत ने समाजवाद को पूरी तरह से नहीं अपनाया पर भारत की आर्थिक नीति में समाजवाद के लक्षण साफ देखे जा सकते थे। भारत में ज्यादातर उद्योगों को सरकारी नियंत्रण के अंतर्गत रखे जाने के लिए कई तरह के नियम बनाए गए। इस तरह की नीति को कई अर्थशास्त्रियों ने लाइसेंस राज और इंस्पेक्टर राज का नाम दिया। जो आज भी जीवित है। बिजली, सड़कें, पानी, टेलीफोन, रेल यातायात, हवाई यातायात, होटल इन सभी पर सरकारी नियंत्रण था। वहीं निजी क्षेत्र को इन उद्योगों में पूंजी निवेश की अनुमति नहीं थी या फिर बहुत ही नियंत्रित अनुमति थी। दूसरे कई उद्योगों में (जैसे खिलौने बनाना, रीटेल, वगैरह) बड़ी निजी कंपनियों को पूंजी निवेश की अनुमती नहीं थी। बैंकों को भी सरकारी नियंत्रण में रखा जाता था।
ब्रिटिश राज में भी भारत में विज्ञान एवं तकनीकी की पर्याप्त प्रगति हुई तथा स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों में तेजी से प्रगति कर रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण स्वतंत्रता के उपरान्त सन् 1949 में किया गया। इसके कुछ वर्षों के उपरान्त सन् 1955 ई. में इंम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया का भी राष्ट्रीयकरण किया गया और उसका नाम बदल करके भारतीय स्टेट बैंक रखा गया। आगे चलकर सन् 1959 ई. में भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम बनाकर आठ क्षेत्रीय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। सन् 1946 ई. में चुनाव में सफलता के फलस्वरूप जब हर प्रांत में कांग्रेस मंत्रिमंडल बने तो चुनाव प्रतिज्ञा के अनुसार जमींदारी प्रथा को समाप्त करने के लिये विधेयक प्रस्तुत किए गए। ये विधेयक सन् 1950 ई. से 1955 ई. तक अधिनियम बनकर चालू हो गए जिनके परिणामस्वरूप जमींदारी प्रथा का भारत में उन्मूलन हो गया और कृषकों एवं राज्य के बीच पुन: सीधा संबंध स्थापित हो गया। भूमि के स्वत्वाधिकार अब कृषकों को वापस मिल गए। 1948 प्रथम औद्योगिक नीति घोषित की गई।
1952 विश्व अर्थव्यवस्था में भारत का हिस्सा 3.8% था। ज्वाहर लाल नेहरू को वर्ष 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनका बच्चों से बहुत लागव था इसलिए बच्चे उन्हें चाचा नेहरू के रूप में जानते हैं। नेहरू निःसंदेह एक उत्तम लेखक थे। राजनीतिक क्षेत्र में लोकमान्य तिलक के बाद जमकर लिखने वाले नेताओं में वे अलग से पहचाने जाते हैं। दोनों के क्षेत्र अलग हैं, परंतु दोनों के लेखन में अध्यन पर्याप्त मात्रा में विद्यमान है।
नेहरू ने लाख प्रयासों के बावजूद भी पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंधों में सुधार नहीं कर पाए। पाकिस्तान के साथ एक समझौते तक पहुंचने में कश्मीर मुद्दा और चीन के साथ मित्रता में सीमा विवाद रास्ते के पत्थर साबित हुए। नेहरू ने चीन की तरफ मित्रता का हाथ भी बढ़ाया, लेकिन 1962 में चीन ने धोखे से आक्रमण कर दिया। नेहरू के लिए यह एक बड़ा झटका था और शायद यही उनकी मौत का कारण भी है। 27 मई 1964 को जवाहरलाल नेहरू को दिल का दौरा पड़ा, जिसमें उनकी मृत्यु हो गयी।
(यह लेखक के निजी विचार हैं)