Spiritual Lok Katha: शिवजी को चढ़ाया मांस का भोग
Spiritual Lok Katha: भील मंदिर रात भर शिवजी की रक्षा में रुकता और मांस भूनकर शिवजी को खाने के लिए रख जाता ।
Spiritual Lok Katha: घने जंगल में एक भील को शिवमंदिर दिखा। शिवलिंग पर फूल, बेलपत्र का शृंगार किया गया था इससे भील यह तो समझ गया कि कोई न कोई यहां रहता है।
भील मंदिर में थोड़ी देर के लिए ठहर गया। रात हो गई लेकिन मंदिर का कोई पहरेदार आया ही नहीं। भील को शिवजी की सुरक्षा की चिंता होने लगी।
उसे लगा कि सुनसान जंगल में यदि शिवजी को रात को अकेला छोड़ दिया तो कहीं जंगली जानवर इन पर हमला न बोल दें। उसने धनुष पर बाण चढ़ाया और प्रभु की पहरेदारी पर जम गया।
सुबह हुई तो भील ने सोचा कि जैसे उसे भूख लगी है वैसे भगवान को भी भूख लगी होगी। उसने एक पक्षी मारा, उसका मांस भूनकर शिवजी को खाने के लिए रखा और फिर शिकार के लिए चला गया।
शाम को वह उधर से लौटने लगा तो देखा कि फिर शिवजी अकेले ही हैं। आज भी कोई पहरेदार नहीं है।
उसने फिर रातभर पहरेदारी की, सुबह प्रभु के लिए भुना माँस खाने को रखकर चला गया।
मंदिर में पूजा-अर्चना करने पास के गांव से एक ब्राह्मण आते थे। रोज मांस देख कर वह दुखी थे। उन्होंने सोचा उस दुष्ट का पता लगाया जाए जो रोज मंदिर को अपवित्र कर रहा है।
अगली सुबह वह पंडितजी पौ फटने से पहले ही पहुंच गए। देखा कि भील धनुष पर तीर चढ़ाए सुरक्षा में तैनात है।
भयभीत होकर पास में पेड़ों की ओट में छुप गए। थोड़ी देर बाद भील मांस लेकर आया और शिवलिंग के पास रखकर जाने लगा।
ब्राह्मण के क्रोध की सीमा न रही। उन्होंने भील को रोका- अरे मूर्ख महादेव को अपवित्र क्यों करते हो।
भील ने भोलेपन के साथ सारी बात कह सुनाई। ब्राह्मण छाती-पीटते उसे कोसने लगे। भील ने ब्राह्मण को धमकाया कि अगर फिर से रात में शिवजी को अकेला छोड़ा तो वह उनकी जान ले लेगा।
ब्राह्मण ने कहा- मूर्ख जो संसार की रक्षा करते हैं उन्हें तेरे-मेरे जैसा मानव क्या सुरक्षा देगा ? लेकिन भील की मोटी बुद्धि में यह बात कहां आती।
वह सुनने को राजी न था और ब्राह्मण को शिवजी की सेवा से जी चुराने का दोष लगाते हुए दंडित करने को तैयार हो गया।
महादेव इस चर्चा का पूरा रस ले रहे थे। परंतु महादेव ने स्थिति बिगड़ती देखी तो तत्काल प्रकट हो गए।
महादेव ने भील को प्रेम से हृदय से लगाकर आदेश दिया कि तुम ब्राह्मण को छोड़ दो। मैं अपनी सुरक्षा का दूसरा प्रबंध कर लूंगा।
ब्राह्मण ने शिवजी की वंदना की। महादेव से अनुमति लेकर उसने अपनी शिकायत शुरू की- प्रभु में वर्षों से आपकी सेवा कर रहा हूँ।
इस जंगल में प्राण संकट में डालकर पूजा-अर्चना करने आता हूं। उत्तम फल-फूल से भोग लगाता हू किंतु आपने कभी दर्शन नहीं दिए।
इस भील ने मांस चढ़ाकर तीन दिन तक आपको अपवित्र किया, फिर भी उस पर प्रसन्न हैं. भोलेनाथ यह क्या माया है ?
शिवजी ने समझाया, तुम मेरी पूजा के बाद फल की अपेक्षा रखते थे लेकिन इस भील ने निःस्वार्थ सेवा की. इसने मुझे अपवित्र नहीं किया। इसे अपने प्रियजन की सेवा का यही तरीका आता है।
मैं तो भाव का भूखा हूं इसके भाव ने जो तृप्ति दी है वह किसी फल-मेवे में नहीं है!
......हरी ॐ तत्सत्,,,,,,,,,