Tarek Fatah: तारिक फतेह क्यों चुभते थे कठमुल्लों को
Tarek Fatah: तारिक फतेह पहली बार 2013 में भारत दौरे पर आए थे, तब उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, 'पाकिस्तान को तो अब भूल जाइए। इसको एक न एक दिन कई टुकड़ों में टूटना ही है। वो दिन भी दूर नहीं जब बलूचिस्तान और सिंध उससे अलग हो जाएगा।
Tarek Fatah Passed Away: तारिक फतेह को उनके चाहने वाले एक बेखौफ लेखक के रूप में याद रखेंगे। वे सच का साथ देते रहे। वे भारत के परम मित्र थे। उन्हें इस बात का गर्व रहा कि उनके पूर्वज हिंदू राजपूत थे। वे बार-बार कहते- लिखते थे कि भारत,पाकिस्तान और बांग्लादेश के तमाम मुसलमानों के पुऱखे हिंदू ही थे। उन्हें जबरदस्ती मुसलमान बनाया गया था। उनकी इस तरह की साफगोई कठमुल्लों को नागवार गुजरती थी। तारिक फ़तेह हिंदी पट्टी के मुसलमानों के दिल में चुभते हैं। उनकी तारीफ़ यह थी कि वह डंके की चोट पर अपने पूर्वजों को हिंदू बताते रहे। बहुत कम मुसलमान यह हिम्मत दिखा पाते हैं। वह मुस्लिम सांप्रदायिकता पर लगातार चोट करते रहे।
तारिक फतेह पहली बार 2013 में भारत दौरे पर आए थे, तब उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, 'पाकिस्तान को तो अब भूल जाइए। इसको एक न एक दिन कई टुकड़ों में टूटना ही है। वो दिन भी दूर नहीं जब बलूचिस्तान और सिंध उससे अलग हो जाएगा। पाकिस्तानी सेना एक औद्योगिक माफिया है। जिसका अपने देश के अनाज, ट्रकों, मिसाइलों से ले कर बैंकों तक पर नियंत्रण हैं।' यह सुनकर पाकिस्तान के हुक्मरान तिलमिला गए थे। वे मानते थे कि, 'भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां मुसलमान बिना डरे स्वतंत्रतापूर्वक काम करते हैं।'
तारिक फ़तेह से जितने लोग मुहब्बत करने वाले हैं, उससे बहुत ही कम नफ़रत करने वाले हैं। वे कभी इस्लाम की आलोचना नहीं करते थे, बल्कि इस्लाम के नाम पर झूठे गौरव और पाखंड की बखिया उधेड़ देते थे। अच्छा से अच्छा मौलवी उनके छोटे से चुभते हुए तर्क से तिलमिला कर रह जाता था। एक बार एक मौलवी साहब औरंगज़ेब की बहुत तारीफ़ें कर रहे थे और उसे सच्चा और अनुकरणीय मुसलमान साबित कर रहे थे। तारिक फ़तह ने उससे सिर्फ़ एक सवाल किया कि अगर औरंगज़ेब एक सच्चा मुसलमान था तो क्या उसने हज की थी ? मौलवी साहब बग़लें झाँकते नज़र आने लगे।
उनकी सारी पिछली तारीफ़ों पर फ़तेह साहब के एक सवाल ने पानी फेर दिया। किसी मुसलमान पर हज उतना ही बड़ा फ़र्ज़ है जितने कि नमाज़, रोज़ा और ज़कात। इनमें से कोई एक दूसरे की भरपाई नहीं कर सकता। चारों ही अलग अलग फ़र्ज़ हैं। कोई भी मुस्लिम जब बालिग़ हो जाए और हज करने के लायक़ स्वास्थ्य और आमदनी हो तो हज तुरन्त फ़र्ज़ हो जाती है। अल्लाह ने औरंगज़ेब को 96 साल की लम्बी उम्र दी, बचपन से बुढ़ापे तक तंदुरुस्त रखा। पहले शाहज़ादा फिर बादशाह बनाया। हज में दुनियावी मसायल की वजह से कोई माफ़ी नहीं है। अगर सामर्थ्यवान होते हुए भी 96 साल की उम्र तक औरंगज़ेब हज नहीं करता तो या तो उसका हज के फ़र्ज़ होने पर ईमान नहीं है या उसे ईश्वर पर भरोसा नहीं है कि वह हज करने गया तो वापस उसकी गद्दी उसे मिलेगी या नहीं। उसका पंजवक्ता नमाज़ी होना और टोपियाँ सिल कर रोज़ी कमाना सब बेकार गया। हज को महत्व न देना और उसको टालना दोनों ही “गुनाहे कबीरा” यानी घोर पाप हैं ।
देश में सीएए-एनआरसी के मुद्दे पर हुए दंगो के बाद तारिक फतेह ने कहा था, 'हर वह व्यक्ति हिंदू है, जो हिंदुस्तान के इतिहास और परंपरा की मिल्कियत रखता है।' मुस्लिम समुदाय में तारिक फतेह जैसा बोल्ड और जीनियस लेखक या विचारक मिलना मुश्किल है। इस्लाम की कट्टरता के विरुद्ध बिगुल फूंकने वाला, पाकिस्तान के आतंकवाद-प्रेम पर मुखर होकर निरंतर प्रहार करने वाला कोई दूसरा मुस्लिम लेखक या विचारक मिलना मुश्किल है। इस्लाम सहित तमाम मुद्दों पर मुखर रूप से बोलने वाले तारिक फतेह टीवी डिबेट में अक्सर ख़ुद को हिंदुस्तानी बताते थे और हमेशा सिंध और हिंद का कनेक्शन जोड़ते थे। तारिक फतेह पाकिस्तान के विचार को खारिज करते थे। वे मानते थे कि देश का बंटवारा नहीं होना चाहिए था। दुर्भाग्य यह है कि उनकी मौत का कुछ कथित प्रगतिशील और कठमुल्ले जश्न मना रहे हैं। अगर आपको यकीन न हो तो सोशल मीडिया पर चले जाइये। वहां पर आपको तारिक फतेह को लेकर तमाम तरह की ओछी टिप्पणियां पढ़ने को मिलेंगी।
तारिक़ फ़तेह धार्मिक अतिवाद के ख़िलाफ़ बोलने और एक उदारवादी इस्लाम के पक्ष को बढ़ावा देने के लिये प्रसिद्ध थे। उन्होंने 'यहूदी मेरे दुश्मन नहीं हैं' नाम से एक पुस्तक भी लिखी। पाकिस्तान में बलूचों के आंदोलनों के समर्थक भी रहे। बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के हनन और पाकिस्तान द्वारा बलूचों पर की जा रही ज़्यादतियों के विषय पर भी बोलते और लिखते रहे। तारिक फतेह मुस्लिम इतिहास के भी प्रकांड विद्वान थे, जिस कारण तर्को और तथ्यों में उन्हें पराजित करना किसी के लिये नामुमकिन था।
तारिक फतेह कोराना काल से पहले मेरे राजधानी के हुमायूं रोड के सरकारी आवास में भी कई बार पधारे। उनसे कई अहम मसलों पर चर्चा हुई। वे बहुत बुद्धिमान व्यक्ति थे। वे पाकिस्तान के शहर कराची में जन्मे थे और 1987 से कनाडा में रहने लगे। “तारिक फतेह आप” वाकई पंजाब के शेर और हिंदुस्तान के बेटे थे, जैसा कि आपकी बिटिया नताशा ने कहा है। तारिक फ़तेह ने एक बार मुझसे जानना चाहा कि क्या सच है कि बहरत के संविधान की मूल प्रति पर “हडप्पा और मोहन जोदड़ों” के चित्र हैं। मैंने कहा कि मेरे पास संविधान की मूल प्रति है। आपको नन्द लाल बसु की “हडप्पा और मोहन जोदडे” की पेंटिंग दिखाता हूँ I मैंने जब उन्हें संविधान की मूल प्रति पर “हडप्पा और मोहन जोदडे” की पेंटिंग दिखाई तो वे भावुक हो उठे और उनकी आँखों से आंसू निकल पड़े I
तारिक फ़तेह किसी टीवी के कार्यक्रम में सिंध का इतिहास, पंजाब का इतिहास, पाकिस्तान के वजूद और यूपी के मुसलमानों की बात अवश्य करते थे। वे बार-बार कहते थे कि पाकिस्तान के पंजाबियों पर उर्दू भारत से पाकिस्तान गए मुसलमानों ने थोपी। इस वजह से उनसे भारत और पाकिस्तान का एक तबका खफा रहता था। यह सच है कि पंजाबियों पर उर्दू थोपी गई।
चूंकि वे एक बेखौफ साहसी लेखक थे और खुलकर अपनी राय का इजहार करते थे, इसलिए उनकी जान के दुश्मन भी कम नहीं थे। उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलती रहती थीं। उन्हें 'सर तन से जुदा' जैसी धमकियां भी लगातार ही मिल रही थीं। कुछ समय पहले तारिक फतेह ने अपने ट्विटर अकाउंट पर एक 'ट्विटर स्पेस' का स्क्रीन शॉट शेयर करते हुए लिखा था कि एक सज्जन ने ग्रुप बनाया है जो मेरा सिर कलम (सर तन से जुदा) करने की योजना बना रहा है। तारिक फतेह के न रहने से आज दुनिया ने एक सच्चा लेखक खो दिया है। उनकी जब याद आएगी तो फैज अहमद फैज का यह शेर-
‘कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए।’
याद ही उनके प्रशंसकों का सहारा बनेगा ।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)